संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि इस संसार की स्थिति पर विचार करें जीवन की क्षणभंगुरता को जानने का प्रयास करें। यह आयुष्य कब पूरा हो जाएगा इसका कोई भी भरोसा नहीं है। जिस प्रकार ओस की बूंद जो तिनके के अग्रभाग पर स्थित होती है, उसका अस्तित्व कितना सा है। जब तक हवा का झोंका नहीं चले या सूर्य का ताप नहीं पड़े तब तक ।उसी प्रकार यह मानव जीवन कब हाथ से चला जाए इस बात का एहसास एक सिंगर को उस समय हुआ जब कार एक्सीडेंट में एक कुत्ते की मृत्यु को अपनी आंखों के सामने देखा और वैराग्य भाव को धारण कर लिया ।वह युवक तो छोटी सी घटना को देखकर जागृति को प्राप्त हो गया, मगर ऐसी कितनी ही घटनाओं को आप भी दिन प्रतिदिन देखते और सुनते हैं मगर अभी तक भी आपका मन संसार से उदासीन हुआ या नहीं ?
इतनी सारी घटनाओं को देखते सुनके भी व्यक्ति को वैराग्य क्यों नहीं आता, इसका कारण यह है कि वह संसार के आकर्षण में उलझा हुआ है। उसको ही सब कुछ मान बैठा है। संसार के सुखों को ही उसने वास्तविक सुख मान लिया है जबकि भगवान तो फरमाते हैं कि संसार के सुख वास्तविक सुख नहीं बल्कि सुखाभाष मात्र है। संसार में सच्चा और वास्तविक सुख नहीं बल्कि सच्चा और वास्तविक सुख तो मात्र संयम और त्याग में ही है।
आप कहते हैं कि बिना मन के संयम जीवन कैसे स्वीकार करें? लेकिन याद रखना बिना मन के भी अगर कोई संयम जीवन स्वीकार करता है, तो भी वह छकाय के अनंत अनंत जिओ को अभयदान देता है । और अनंत जीवो से मैत्री का संबंध स्थापित करता है। अतः अगर बिना मन के भी संयम लेना पड़े तो संयम अवश्य लेने का प्रयास करें ।अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा। आज की धर्म सभा में गुलाबपुरा ,मदनगंज ,जयपुर ,नसीराबाद आदि जगहों से श्रद्धालुजन क्षमा याचना के भाव को लेकर गुरु चरणों में उपस्थित हुए ।श्रीमान विमलचंद जी भंडारी ने 11 उपवास, श्रीमती मोनिका जी सिंह जी ने 9 उपवास एवं श्रीमान अंकित जी सिंह जी नसीराबाद वालों ने 8 उपवास के पप्रत्याखान गुरुदेव के मुखारविंद से ग्रहण किया।
धर्म सभा को पूज्य श्री सौम्यदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया ।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा एवं हंसराज नाबेड़ा ने किया।
पदमचंद जैन
* मनीष पाटनी,अजमेर*