संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया की भाग्यशालियों ,घर को छोडे बगैर स्थानक में नहीं आया जाता, और पाप को छोडे बगैर धर्म में प्रवेश नहीं हो सकता है। 18 पाप पर हमारी चर्चा चल रही है इसमें चौथ पाप है मैथुन ।यह मिथुन शब्द से बना है। मिथुन का अर्थ है जोड़ा, स्त्री पुरुष का जोड़ा मिथुन है ।इसी के साथ एक और शब्द आता है ब्रह्मचार्य यानी ब्रह्मा यानी आत्मा में रमण करना और आत्मा में रमण नहीं करते हुए पर में रमण करना अब्रह्मचार्य है।इसका अर्थ केवल शरीर तक ही सीमित नहीं है पांचो इंद्रियों का भी ब्रह्मचार्य है जैसे श्रोतेनिंद्रिय का अब्रह्मचर्या क्या है यानी कान को गंदे गीत शब्द बातें आदि सुनने में लगाना। इसके विपरीत कबीर के पद, मीरा के पद आदि को सुने तो उनमें वैराग्य मिलेगा। हमारे यहां भृतहरि के दो तरह के शतक मिलते हैं। श्रृंगार शतक और वैराग्य शतक।
श्रृंगार शतक जब संसार में थे तब रचा और वैराग्य शतक सन्यास में लिखा था। श्रृंगार शतक आदि फिल्मी गाने आदि को सुनने में संसार संबंधी विचार आएंगे मगर वैराग्य शतक को पढ़ने पर वैराग्य उत्पन्न करने वाले भाव आते हैं।
एक विशिष्ठ साधक ने तो मुझसे कहा था कि किसी भी भजन की रचना भी फिल्मी गानों पर नहीं होनी चाहिए ।ब्रह्मचर्य की नववाड में भी आता है कि ब्रह्मचारी पुरुष किसी भी स्त्री आदि की क्रीडा विचारों आदि के शब्द नहीं सुने क्योंकि इससे विकार बढ़ने की संभावना रहती है।
जैसे किसी दुश्मन ने आपको जय जिनेंद्र बोला तो आपको उस पर गुस्सा नहीं आएगा मगर किसी ने गाली बोली तो एडी से चोटी तक करंट आ जाएगा।
दूसरी इंद्रीय है चक्षु इंद्रिय की आंखों के सामने कोई दृश्य आदि को देखकर विकार उत्पन्न हो सकते हैं। स्थूलभद्र जैसी कितनी आत्माएं होती है जो कोशा वेश्या के यहां विकार उत्पन्न करने वाले दृश्य, प्रसंग के बीच रहकर भी निर्लिप्त रह जाए। मगर उनका साथी मुनिराज विचलित हो गया। आज सुबह क्लास में प्रसंग चला अजीवकाय असंयम।यानी अजीव चाहे वस्त्र हो या वस्तु भी हो तो उपयोग नहीं ले जिससे दूसरों के जीवन में असंयम उत्पन्न हो जाए, विचलन पैदा हो जाए ।एक बार विदेश में एक कैस आया कि एक व्यक्ति ने एक महिला के साथ बलात्कार किया, तब उस व्यक्ति ने कहा मेरी कोई ऐसी भावना नहीं थी, जब घर से निकला था, मगर इसके पहनावा को देखकर मैं गलत कार्य कर बैठा ।तब न्यायाधीश ने उस लड़की को बुलाया और कहा कि उस वेशभूषा को वापस पहन कर आओ। जब वह महिला वह वेशभूषा पहन कर आई तब न्यायाधीश ने फैसला दिया कि ऐसी वेशभूषा से कोई भी व्यक्ति विचलित हो सकता है। तब उस व्यक्ति को बाइज्जत बरी करके उस महिला को सजा सुनाई।
वीर दुर्गादास राठौड का प्रसंग, उसको देखकर बादशाह औरंगजेब की बेगम मुग्ध हो गई उसके सामने दो प्रस्ताव रखें कि या तो मुझे स्वीकार कर लो या फिर मरने को तैयार हो जाओ। दुर्गादास ने बात नहीं मानी तो शहजादे को आदेश दिया गर्दन उडाने का, मगर जेलर ने आकर रोक दिया। बेगम पैर पटकते हुए चली गई ।जेलर ने दुर्गादास को मुक्त कर दिया। संयम के पालन से दुर्गादास बच सका। तो आज जो भी सुनने में देखने से संबंधित अब्रह्मचार्य संबंधी चर्चा चली तो इसे सुनकर इनके अब्रह्मचार्य से बचने का ज्यादा से ज्यादा प्रयास करें।
धर्म सभा को पूज्य श्री सौम्यदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।
पदमचंद जैन