*दूसरों के बदलने का इन्तजार किए बिना खुद को बदल डाले भगवान मिल जाएंगे-आचार्य सुंदरसागर महाराज*

*हम जैन कुल में जन्में इस पर गौरव की अनुभूति होनी चाहिए*
*शास्त्रीनगर हाउसिंग बोर्ड स्थित सुपार्श्वनाथ पार्क में वर्षायोग प्रवचन*

भीलवाड़ा, 28 अगस्त। जिस तरह हीरा सबको प्राप्त नहीं होता वैसे ही सबको जन्म से जैन कुल भी नहीं मिलता है। वह पुण्यशाली होते है जिनका जन्म जैन कुल में होता है। जैन संख्या में अपेक्षाकृत कम है फिर भी किसी से कम नहीं है। गुणवत्ता के हर पैमाने पर दमदार उपस्थिति रखते है। इसलिए जैन शासन का मूल्य है। हम जैन कुल में जन्मे इस पर गौरव की अनुभूति होनी चाहिए। ये विचार शहर के शास्त्रीनगर हाउसिंग बोर्ड स्थित सुपार्श्वनाथ पार्क में श्री महावीर दिगम्बर जैन सेवा समिति के तत्वावधान में चातुर्मासिक(वर्षायोग) वर्षायोग प्रवचन के तहत बुधवार को राष्ट्रीय संत दिगम्बर जैन आचार्य पूज्य सुंदरसागर महाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बाहुबली वश्व में एक है लेकिन पूरे संसार को चरणों में झुका देता है। जैन साधु की साधना उत्कृष्ट होती है। जैन शासन में मनुष्य को भगवान बनाया जाता है। लोग पैसे देकर भगवान को लाते है लेकिन यहां पर पैसे छोड़कर व्यक्ति भगवान बन जाता है। आचार्यश्री ने कहा कि हमे दूसरों के बदलने का इन्तजार किए बिना खुद को बदलना है। हमे तू तू मैं मैं नहीं पड़कर अपने भावों को बदलना है। भाव बदलने से भगवान की प्राप्ति होकर असीम आनंद की अनुभूति होगी। हमे दूसरों को बदलने की बजाय अपनी आत्मा के भीतर झांक कर देखना है कि कितना क्रोध, राग, द्वेष भरा है। तू को छोड़ मैं को देखना होगा। अंदर के भगवान से मिल लिए तो बाहर के भगवान की जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि कभी संख्या कम होने से विचलित नहीं होना चाहिए। तीर्थंकर की माता एक पुत्र को जन्म देती है क्योंकि सूर्य अकेला ही इस धरा को रोशन करने के लिए काफी है। मोक्ष मार्ग पर व्यक्ति को अकेले ही चलना होता है। वह जननी धन्य है जिन्होंने तीर्थंकर की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। इससे पूर्व प्रवचन में मुनि सुधीरसागर महाराज ने कहा कि जैसे मुनियों के लिए आगम है वैसे ही श्रावकों के लिए भी आगम है। हम आगम का अध्ययन कर जाने की स्वयं अभी कहां खड़े है। स्वयं के भीतर झांकते रहना चाहिए ताकि हम अति आत्मविश्वास का शिकार नहीं हो। इस धरा पर मिथ्यादृष्टि जीव अनंत है जबकि सम्यक दृष्टि जीव दुर्लभ है। जो जीव जिनेन्द्र द्वारा कही गई बातों के विपरीत कथन करता है, उनकी पूजा नहीं करता है, आचार्यों के उपदेशों की काट करता है वह मिथ्यादृष्टि होते है ओर अनंतकाल तक संसार सागर में भ्रमण करते रहते है। सांयकालीन सत्र में आचार्यश्री ने श्रावकों की जिज्ञासाओं का आगम से समाधान किया। आर्यिका सुलक्ष्यमति माताजी ने धर्म कक्षा में मनःपर्याय ज्ञान तथा केवल ज्ञान के बारे में बताया। श्री महावीर दिगम्बर जैन सेवा समिति के अध्यक्ष राकेश पाटनी ने बताया कि सभा के शुरू में श्रावकों द्वारा मंगलाचरण,दीप प्रज्वलन,पूज्य आचार्य गुरूवर का पाद प्रक्षालन कर उन्हें शास्त्र भेंट व अर्ध समपर्ण किया गया। मीडिया प्रभारी भागचंद पाटनी ने बताया कि डूंगरपुर प्रगतिनगर से जैन समाज के श्रावकों द्वारा भी आचार्यश्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया गया। संचालन पदमचंद काला ने किया। महावीर सेवा समिति द्वारा बाहर से पधारे अतिथियों का स्वागत किया गया। वर्षायोग के नियमित कार्यक्रम श्रृंखला के तहत प्रतिदिन सुबह 6.30 बजे भगवान का अभिषेक शांतिधारा, सुबह 8.15 बजे दैनिक प्रवचन, सुबह 10 बजे आहार चर्या, दोपहर 3 बजे शास्त्र स्वाध्याय चर्चा, शाम 6.30 बजे शंका समाधान सत्र के बाद गुरू भक्ति एवं आरती का आयोजन हो रहा है।

*भागचंद पाटनी*
मीडिया प्रभारी
मो.9829541515

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