लोक पर्व एवं संस्कृति सागर संस्थान

आज दिनांक 24 सितम्बर – लोक संस्कृति की महक को बिखेरता यह सांझाी पर्व नारी के स्वाभीमान को अभिव्यक्त करता है एवं श्री राधे कृष्ण के प्रेम विहार का उत्सव के साथ पूर्वजों के प्रति श्रृद्धा प्रकट करने, धरती के श्रंृंगार, प्रकृति प्रेम के अतिरिक्त कलात्मक सौन्दर्य बोध का संदेष देने वाला पर्व है। सांझी एक अनूठी परम्परा वैष्णवजन के हर घर के आंगन और तिवारे में बनाने की परम्परा है जो रसकि भक्त राधा रानी के स्वागत के लिए सजाते रहे है। राधा रानी अपने पिता वृषभान जी आंगन में सांझी पितृ पक्ष मे प्रतिदिन सजात थी। उनके भाई एवं परिवार का मंगल हो इसके लिए वह फूल एकत्रित करने के लिए बगीचो में जाती थी और इसी बहाने श्री राधा कृष्ण का मिलन होता था। उसी मार्यादा को जीवित रखते हुए अविवाहित कन्याएं आज भी पितृ पक्ष में अपने घरो में गाय के गोबर से सांझी सजाती है। इसमें राधा कृष्ण की लीलाओं का चित्रण अनेक सम्प्रदाय के र्ग्रंथो में मिलता है। विष्वास है कि श्री राधा कृष्ण उनकी सांझी को निहारने के लिए अवष्य आयेगे। शुरू में पुष्प और सुखे रंगो से आंगन को सांझी से सजाया जाता था। लेकिन समय के साथ सांझी सिर्फ सांकेतिक रह गयी है। सरसमाधुरी काव्य में सांझी का कुछ इस तरह उल्लेख किया गया है – सलोनी सांझी आज बनाई, श्यामा संग रंग सो राधे, रचना रची सुहाई। सेवाकंुज सुहावन कीनी, लता पता छवि छाई। कला, प्रेम, भक्ति, एकता, सौहाद्र और सामाजिकता का संदेष देने वाला यह पर्व आज भी हमारी भावनाओं को जींवत रखे हुये है। यदि हमंे हमारी वैभावषाली सांस्कृतिक धरोहर को जीवन्त रखना है तो ऐसे पर्वाे को पुनजीर्वित करने एवं भव्यता से सामूहिक रूप से मनाने की नितान्त आवष्यकता है।
इसी क्रम में गत वर्षाे की भांति इस वर्ष भी प्रेम की पराकाष्ठा का पर्व सांझी सुंदर विलास स्थित कर भवन में आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रिया प्रियतम भगवान राधा कृष्ण की लीलाओं का रंगो एवं फूलों के माध्यम से चित्रण कर आरती एवं पूजन किया गया।
भवदीय
उमेश गर्ग
मो. 9829793705

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