आज वेद को व्यवहार में लाने की आवश्यकता-डॉ.दास

ved sammelan 02अजमेर/ आज हम वेद को भूल गए हैं। केवल भाषणों में, शोधपत्रांे में वेद की शिक्षाओं का उल्लेख पुरजोर शब्दों में कर देने भर से कुछ होने वाला नहीं हैं, आज आवश्यकता है वेदों को अपने व्यवहार में उतारने की। विविध भाषा और प्रादेशिक रहन-सहन के उपरान्त भी पूरे देश को एक सूत्र में बांधे रखने के पीछे जो शक्ति है वह हैा भारतीय सनातन संस्कृति। राष्ट्र की एकता में वेदों की एकता का संदेश विद्यमान है। ये विचार राजस्थान संस्कृत अकादमी, ग्लोबल सिनजी, परोपकारिणी सभा, नाट्यवृंद व अ.भा.साहित्य परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में पुष्कर रोड़ स्थित ऋषि उद्यान में आयोजित हो रहे दो दिवसीय ‘राष्ट्रीय वेद सम्मेलन‘ का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि असमिया व हिन्दी के सुविज्ञ साहित्यकार डॉ. देवेन्द्रचन्द्र दास ने कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे परोपकारिणी सभा के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. धर्मवीर ने कहा कि मनुष्य का अस्तित्व व्यक्ति, स्थान या वातावरण से नहीं अतिपु अपने मौलिक विचारों और अपने धर्म व संस्कृति के कारण है। वेद हमें मनुष्य मात्र बनके अपने भीतर दिव्यता को जन्म देने का संदेश देते हैं। वेद से आधुनिक और वेद से प्राचीन कुछ भी नहीं है। वेद में मानव जीवन की सभी समस्याओं का समाधान है, आवश्यकता है वेद को पढ़ने और उससे अधिक वेदों को समझने व जीवन में अपनाने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत ने कहा कि वेदों से जीवन को श्रेष्ठ तरीकेे से जीने का मार्ग हमें मिलता है। वेदचर्चा में अद्भुत आत्मिक आनन्द मिलता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. जसवन्त सिंह कहा कि वेदों को जितना हम जीते हैं, उतनी ही हमारी भ्रांतियां दूर होती चली जाती हैं। प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजक डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली ने वर्तमान में विश्वभर में मनुष्य ही मनुष्य का बैरी हो गया है, सर्वत्र अशांति का वातावरण व्याप्त हो गया है, ऐसे में वेद ही हैं जो मनुष्य को मनुष्य होने का विचार और विश्वास दे सकते हैं। भारत कर्मप्रधान भूमि है और कर्मनिष्ठा की शिक्षा हमें वेदों से ही मिली है। उद्घाटन सत्र का संचालन साहित्यकार उमेश कुमार चौरसिया ने किया तथा राजस्थान संस्कृत अकादमी की निदेशक डॉ. रेणुका राठौड़ ने आभार अभिव्यक्त किया।
ved sammelan 01पहले दिन हुए तीन सत्रों में प्रो. शिवनारायण उपाध्याय, डॉ. नवल किशोर भाभड़ा व प्रो. सुरेन्द्र भटनागर ने अध्यक्षता की तथा संचालन डॉ. प्रतिभा शुक्ला व डॉ. मोक्षराज ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. अनन्तराम शर्मा ने वेद संस्कृति को भारतीय जीवन में रचा-बसा हुआ बताते हुए कहा कि वेदों को सही अर्थाें में ग्रहण करने का प्रयास हमें करना चाहिये। कल 10 फरवरी को प्रातः 9.30 बजे से दो विचार सत्र होंगे तथा शाम 4 बजे समापन समारोह होगा, जिसकी अध्यक्षता राजस्थान संस्कृत अकादमी की अध्यक्षा डॉ. सुषमा सिंघवी करेंगी।
लोकार्पण- इस अवसर पर सम्मेलन में विचारणीय विषयों पर विशिष्ट आलेखों को संग्रहित कर डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली द्वारा संपादित स्मारिका ‘श्रुति प्रवाह‘ सहित भाष्यकार स्वामी ओमानन्द योगतीर्थ की डॉ. मोक्षराज द्वारा संपादित पुस्तक ‘गीता तत्व दर्शन‘ तथा अभिनव प्रकाशन द्वारा प्रकाशित गोविन्द खुशलानी लिखित पुस्तक ‘देश तो मेरा‘ का लोकार्पण अतिथियों ने किया।
शोधपत्र हुए प्रस्तुत- वीडीयो प्रस्तुति के माध्यम से कनाडा से आये चिन्तक डॉ. रोहिताश्व शेखावत ने व्यवहारिक धर्म की अवधारणा विषय पर तथा संस्कृत अकादमी की निदेशक डॉ. रेणुका राठौड़ ने मन के द्वारा स्वयं की पुनःखोज विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किये। ग्लोबल सिनर्जि की राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ. श्रद्धा चौहान ने आर्य शब्द का व्याख्यात्मक विवेचन प्रस्तुत किया। भावना गौड़, रंजना पुराहित, रश्मि, डॉ. अरूणा शुक्ला, डॉ. सहदेव शास्त्री, डॉ. कामना सहाय, रूचि सक्सेना इत्यादि शोधार्थियों ने भी अपने विविध विषयक पत्र पढ़े।
-डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली, संयोजक
0145 2425664

Comments are closed.

error: Content is protected !!