अजमेर। इंसानियत व भाईचारे की मिसाल यूं तो हर सूफी संत की बारगाह में देखने को मिल ही जाती है, लेकिन सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के दर की बात ही कुछ और है। बसंत का आगाज भले ही बसंत पंचमी से हो गया हो, लेकिन सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज के दर पर हकीकत में आज बसंत आया। कौमी एकता की ये परंपरा हजारों जायरीन और अनेक धर्म संप्रदायों के लोगों के बीच निभाई गई। हिजरी माह की पांच तारीख के मौके पर दरगाह में बसंत की रस्म अदा की गई। दरगाह के निजाम गेट से दरगाह की शाही चौकी के कव्वाल असरार हुसैन और उनके हमनवा पीले सरसों के फूल और महकते रंगबिरंगे फूलों की खुशबू से सराबोर गुलदस्ते लेकर निजाम गेट से दरगाह के आस्ताना शरीफ तक पहुंचे। कव्वालियों के दौर के बीच अनेक लोगों ने अपनी अकीदत इन गुलदस्तों पर पेश की। असरार हुसैन और उनके हमनवाओं ने मशहूर शायर अमीर खुसरो के सूफियाना फारसी कलाम और बृज भाषा में बसंत के गीत पेश किये तो पूरा माहौल रूहानी हो गया। इस पुरसुकून मौके पर दरगाह दीवान के साहेबजादे सहित खुद्दाम-ए-ख्वाजा और सैकड़ों अकिदतमंदों ने मजार-ए-शरीफ पर बसंत पेश कर कौमी एकता सहित यकजहती की दुआ की।