जमीर के बिक जाने की रसीद नहीं थी

abअजमेर/ ‘दुःख ने दःुखी होकर कहा, लोग मेरे नाम से कांपते हैं और वे मुझे जानते भी नहीं, वहां सभी दुखिया बसते हैं, दुःख नहीं।‘ ये भाव अपनी कविता ‘दुःख मेरी ओर देख रहा है‘ के माध्यम से अभिव्यक्त करते हुए पद्मश्री डॉ. चन्द्रप्रकाश देवल ने दुःख रूपी केंचुए से मनुष्य की वार्ता को रोचकता से प्रस्तुत किया। वे कला व साहित्य के प्रति समर्पित संस्था ‘नाट्यवृंद’ एवं ‘प्रबुद्ध मंच‘ के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार शाम वैशाली नगर स्थित टर्निंग पाइंट स्कूल में आयोजित ‘काव्य गोष्ठी‘ की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने ‘कभी विलग कर सकूं हाथ पर चिपकी लोभ की जोंक को‘ कविता भी सुनाई। गोष्ठी में जयपुर से आमंत्रित अतिथि कवि प्रेमचन्द गांधी ने ‘अभिशप्त है वह छलावों में जीने के लिए‘ पंक्तियों के द्वारा अमरत्व पाने की ललक पर सटीक व्यंग्य किया। उन्होंने ‘सिंदूर प्रेम का प्राचीनतम प्रतीक है किसी भाषा में संभव नहीं इसका अनुवाद‘, ‘तुम्हारी आंखों में एक सुख दिखता है ख्वाब पूरा होने का‘ और ‘छीजते चांद के दिनों में‘ कविताएं सुनाकर विविध प्रतीकों के माध्यम से जीवन के यथार्थ अनुभव को प्रकट किया।
संयोजक डॉ. अनन्त भटनागर ने ‘नये साल की नयी शाम हम भी मनायेंगे‘ और ‘संघर्ष सिरहाने रखकर मैं भी चाहने लगा हूं सुकुन भरी नींद‘ कविताओं के द्वारा जीवन की कशमकश को इंगित किया। संजीदा कवि उमेश कुमार चौरसिया ने ‘उसके गुनाहों का हिसाब मांगें कैसे, जमीर के बिक जाने की रसीद नहीं थी, कल रात इन आंखों में नींद नहीं थी‘ गजल में गिरते मानवीय मूल्यों को तथा ‘जातिवाद में बंटा टुकड़ा-टुकड़ा भारत‘ कविता में देश की वर्तमान स्थिति को स्पष्ट किया। लघु कविताओं के सिद्धहस्त कवि बख्शीश सिंह ने ‘सूरज ने कभी रात नहीं देखी और अंधे ने कभी दिन‘, ‘हर कत्ल लौ की श पर होता है‘ तथा ‘सपना बेचना चाहता हूं, तुम्हारे पास तो कुछ नहीं क्या देकर खरीदोगं‘ कविताआंे के माध्यम से मानव मन के गहरे भावों को अभिव्यक्त किया।
रेडियो गीतकारा डॉ. पूनम पाण्डे ने मधुर स्वर में ‘सरल कहां होता है बीती सी यादों को आंखों से कह देना‘ एवं ‘जीवन में रचना होती है और रचना में जीवन‘ गीत सुनाकर गोष्ठी को संगीतमय बनाया। आधुनिक कवियित्री डॉ. शमा खान ने ‘तन्हा होने पर जीवन का अर्थ समझ में आता है‘ कविता सुनाई तथा बाल कवि गोविन्द भारद्वाज ने ‘आहिस्ता आहिस्ता हवा चल रही है‘ गजल सुनाई। प्रफुल्ल प्रभाकर ने अंग्रेजी कविता ‘सपनों में तितलियों का आना‘, गोपाल माथुर ने ‘ओस की बूंदें आंसुओं सी लगने लगी हैं‘ और कालिंदनंदिनी शर्मा ने ‘मेरा इमरोज‘ कविताएं प्रस्तुत की। गोष्ठी में डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोजी, रामजीलाल अरोड़ा, अमित, राजेन्द्र गुजल, अशोक भागवत आदि भी उपस्थित थे।
-उमेश कुमार चौरसिया
संपर्क-9829482601

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