गेहूं की कीमतें हुई बेकाबू

नई दिल्ली। सरकार के खाद्य प्रबंधन की खामियों ने गेहूं बाजार को बिगाड़ दिया है, जिससे इसके दाम बेकाबू हो गए हैं। खुले बाजार में स्टॉक की कमी के चलते गेहूं की कीमतें रिकॉर्ड उच्च स्तर को छूने लगी हैं। रबी सीजन में बंपर पैदावार और भारी स्टॉक के बावजूद गेहूं की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। लेकिन इस मंहगाई पर काबू पाने की सरकार के पास कोई योजना नहीं है।

सरकार के पास नया-पुराना मिलाकर कोई पौने पांच करोड़ टन गेहूं का भारी स्टॉक जमा है। वहीं, खुले बाजार में गेहूं की भारी किल्लत है। दरअसल जिंस बाजार में आए गेहूं का शत-प्रतिशत हिस्सा सरकारी एजेंसियों ने खरीद लिया। निजी कारोबारियों के पास गेहूं का स्टॉक न के बराबर है। फ्लोर मिलों, आटा चक्कियों और उपभोक्ताओं की मांग लगातार निकल रही है। इसके विपरीत सरकार खुले बाजार में गेहूं नहीं छोड़ रही है। यही वजह है कि पिछले एक सप्ताह के भीतर गेहूं के मूल्य में 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई है।

गेहूं का खुदरा मूल्य देश की विभिन्न मंडियों में 1,700 रुपये से लेकर 2,600 रुपये क्िवटल तक पहुंच गया है। दिल्ली की अनाज मंडी में गेहूं 1,710 रुपये प्रति क्विंटल तक बिक चुका है। व्यापारियों का कहना है कि सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो कीमतों पर काबू पाना संभव नहीं होगा। सूत्रों के मुताबिक उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के मूल्य निगरानी प्रकोष्ठ ने खाद्य मंत्रालय को बाजार के तेज मिजाज के बारे में जानकारी दे दी है। फिर भी अब तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है।

बीते रबी सीजन में गेहूं की पैदावार 10 लाख टन बढ़ी थी, जबकि सरकारी खरीद में एक करोड़ टन की वृद्धि हो गई। यानी लगभग सारा गेहूं सरकारी एजेंसियों के पास पहुंच गया। कुल खरीद 3.84 करोड़ टन हुई। इस तरह बाजार का नियंत्रण सरकार के हाथ में आ गया है। लेकिन खाद्य मंत्रालय ने जुलाई में गेहूं के मूल्य में खुद वृद्धि कर दी है। पिछले सालों में गेहूं निर्यात पर पाबंदी की वजह से निजी कंपनियां गेहूं खरीद से दूरी बनाए रहीं।

सरकारी ‘बाबुओं’ को जिंस बाजार के मिजाज का अता-पता न होने की वजह से स्थितियां और बिगड़ रही हैं। खाद्य मंत्रालय ने जून से सितंबर के बीच खुले बाजार में बिक्री के लिए 30 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था। लेकिन 13 लाख टन के बाद जुलाई में ही बिक्री बंद कर मूल्य बढ़ा दिए गए। इधर गेहूं की मांग में लगातार इजाफा हो रहा था। लिहाजा बाजार तेज होता जा रहा है।

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