हाय री खूनी परम्परा

कुछ दिनों पहले अखबार में बड़ी संख्या में व्हेल पारम्परिक के शिकार की सचित्र खबर पढ़ी। चित्र देखकर मन बड़ा विचलित हुआ। किनारे का पूरा पानी खून से लाल हो रखा था। ढेरों व्हेल मछलियां किनारे पर पड़ी हुई थीं। लोग वहां जश्न मना रहे थे। मुझे यह समझ नहीं आया कि लोग किस बात … Read more

लोकतंत्र ?

क्या है लोकतंत्र ! मोटो मोटी भाषा में कहें तो लोकतंत्र शासन व्यवस्था का वो मापदंड जिसमे जनता अपने शासन चलाने वाले एक समूह को चुनती है और वह समूह अपने एक मुखिया को चुनता है । यहां तक तो सब ठीक है इसके लिए लिखित में एक संविधान है जसके अंतर्गत अनेकों क़ानून हैं … Read more

तो फिर वेतन क्यों ले रहे सांसद

काम नहीं तो वेतन नहीं का नियम सांसदों पर लागू हो। संसद का मानसून सत्र गत 21 जुलाई से शुरू हुआ था। आज 3 अगस्त भी गुजर गया, लेकिन संसद में एक दिन भी कार्य नहीं हुआ। सवाल यह नहीं है कि कांग्रेस के हंगामे की वजह से संसद नहीं चल रही है। सवाल यह … Read more

सबसे ही आँखियां मीचें हैं

सबके पास काम है हम करते आराम है सबकी वाहवाही है हमने बगैरती पाई है सब नाम खूब कमाते हैं हम सपने में खुश हो जाते हैं सबके पास अदद मौका है अपने को मिलता धोखा है सबके पास कई च्वाइश है हमारे पास बस ख्वाहिश है सब की तेज़ सवारी है अपनी वही बैलगाड़ी … Read more

त्वरित न्याय !

जैसा की क़ानून का सिद्धान्त है की भले ही सौ गुनाहगार छूट जाएँ पर एक भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए ! क्या यह संभव है हम तो यही कहेंगे कि हाँ यह सब कुछ संभव है। वह भी भारत में ही संभव है ! लेकिन सबसे पहली बात तो यह है कि किसी … Read more

ऐसी खबर आ सकती है क्या कभी

देश की सभी अदालतें अब 24 घंटे खुली रहेगी। अदालतों में जज रात-दिन तीन-तीन शिफ्टों में काम करके लाखों बकाया पड़े मामलों की सुनवाई करके पीड़ितों को न्याय दिलाएंगे। सुप्रीम कोर्ट,हाईकोर्ट व जिला अदालतों में रविवार व बड़े त्यौहारों के अलावा वकील और जज कोई छुट्टी भी नहीं मनाएंगे। उम्मीद है इसके बाद पेंडिंग मामलों … Read more

एपीजे अब्दुल कलामः छात्रों को खुद बताई थी अपनी ईमेल आइडी…!!

-तारकेश कुमार ओझा- साधारण डाक और इंटरनेट में एक बड़ा फर्क यही है कि डाक से आई चिट्ठियों की प्राप्ति स्वीकृति या आभार व्यक्त करने के लिए भी आपको खत लिखना और उसे डाक के बक्से में डालना पड़ता है। लेकिन इंटरनेट से मिलने वाले संदेशों में इसका जवाब देने या अग्रसारित करने की सुविधा … Read more

मौत/ मृत्यु /डेथ

यूँ तो यह कटु सत्य है की जो जीव इस संसार में पैदा होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित है परन्तु समय और स्थान निश्चित नहीं होता / अभी आज ३० जुलाई २०१५ को जिन दो भारतीय व्यक्तियों को इस देश की मिट्टी में दफनाया (सुपुर्दे ख़ाक किया) जाएगा उनकी प्रसिद्धि और बदनामी भी पूरी … Read more

याकूब मेमन जैसे हत्यारे को सेलिब्रिटी जैसी कवरेज क्यों ….

मुम्बई सीरियल ब्लास्ट के मुख्य आरोपियों में से एक याकूब मेमन को फांसी दिए जाने से पहले जिस तरह भारतीय मीडिया ने उसे सेलिब्रिटी जैसी कवरेज दी उसे देखकर मन बहुत उदास है । सम्माननीय सुप्रीम कौर्ट द्वारा कल शाम फांसी दिए जाने के फैसले को यथावत रखने के आदेश के बाद जिस तरह से … Read more

घृणा से घृणा ही पनपती है.,प्यार नही

एक मित्र ने याकूब को फांसी का समर्थन करते हुए मानवाधिकार पर प्रश्न उठाया है।अपना मत साझा कर रहा हूँ। मानवाधिकार की दृष्टि से बात करें तो फांसी की सजा एक अमानवीय व्यवस्था है। जान के बदले जान लेना उच्च मानवीय मूल्य नही है।जिस जान को हम दे नही सकते तो उसे छीनने का भी … Read more

इसलिए पत्रकार हैं सबसे अलग….

27 जुलाई… शाम का वक्त… एडिटोरियल कक्ष में सभी काम में व्यस्त थे। न्यूज चैनल चल रहा था। गुरदासपुर के दीनानगर में आतंकी हमले को लेकर चर्चा थी और इस पर तैयार हो रहे समाचार और विशेष पन्नों का भी इंतजार हो रहा था। एकाएक समाचार आए कि पूर्व महामहिम, मिसाइलमैन कलाम साहब नहीं रहे। … Read more

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