सुनो
तुम्हे याद है मैंने एक बार कहा था मैं एक खुली किताब हूं जिसमें रिश्ते-नाते, प्यार-दोस्ती, अपने-पराए, सबने अपनी-अपनी इबारतें लिखी सबकी स्याही के रंग अलग-अलग थे विषय अलग-अलग थे अधिकार-कर्तव्य, आंसू-हंसी खुशी-गम पाना-खोना प्यार -गुस्सा गिले-शिकवे सच-झूठ अरमान-सपने, व्यवहार-व्यापार सपने-हसरतें सभी ने अपने-अपने हिस्से हथिया लिए पर मैंने चोरी से किताब के बीचोबीच का … Read more