अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ?

ashok mittal(1) हर वर्ष महा शिवरात्रि पर पूजा, अर्चना, ध्यान, साधना, रुद्राभिषेक, व्रत, उपवास, भंडारा, भांग, ठंडाई न जाने किन किन अन्य उपायों से महादेव को मनाने में अपनी ऊर्जा खर्च करते हैं लोग। सामूहिकता में भजन कीर्तन वो भी फ़िल्मी धुनों पर, ये भी एक विधि है उसे जगाने की, याद दिलाने की। हरेक की अपनी समस्या है उसे वो सुनता है और दूर भी करता है, तभी तो सब फ़रियाद करते हैं।
अजमेर की समस्याओं का रोना किसके आगे रोया जावे ???? ये सबसे गंभीर प्रश्न है! कौन है वो महादेव ? क्या वो मेयर है? कमिश्नर है या कलेक्टर है ? या यहां के वो चुने हुए नेता हैं जो मंत्री पदों को सुशोभित कर रहे हैं। विपक्ष में बैठे कांग्रेस के नेता हैं या सरकार से मोटी मोटी तनखा उठाने वाला सरकारी तामझाम??
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ?
(2) दूसरा प्रश्न है शहर के महादेवों की स्तुति किस विधि से की जाये, कैसे उन्हें याद दिलाया जाये की शहर दिन पर दिन कम गंदे से ज्यादा से ज्यादा गंदा हो रहा है ? आना सागर पानी से भरा है लेकिन रोजाना इसमें हज़ारों लीटर तरल, गन्दी नालियों का मिक्स हो रहा है, झील के चारों ओर जगह जगह प्लास्टिक की थैलियां एवं अन्य तरह के कचरों का ढेर, उस ढेर में से छोटे छोटे बच्चे कुछ ढूंढ़ कर – बड़े बड़े बोरों में भरते सुबह सुबह दिखते रहते है ! ये बच्चे शायद एक वक़्त की रोटी के जुगाड़ में अपनी जिंदगी की रोटी उस गन्दगी में हैं?
ऐसे कई ज्वलन्त प्रश्न आज अजमेर शहर के नागरिकों के मन में हैं ?
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ?
(3) गन्दगी और सफाई! इस समस्या को लेकर अजमेर में “रन फॉर अजमेर” नामक दौड़ में स्वच्छ और स्वस्थ अजमेर की मनो कामना लिए कई युवाओं, वृद्धों, मीडिया से पत्रकारों, कई अन्य संस्थानों के लोगों व् नगर निगम के अधिकारियों को भी बड़ चढ़ कर पूरे जोशो खरोश के साथ पटेल मैदान टू पटेल भागते देखा गया था। दिखावे के लिए शहर की मुख्य सड़कों की सफाई कर दी गयी थी। सबने अपनी अपनी पीठ थपथपाकर कहा हमने वो कर दिया जो आज तक नहीं हुआ? ये तो सही है की बहुत अच्छा काम किया। लेकिन मीडिया को ये नहीं भूलना चाहिए कि जब महादेव को ही रोज़ रोज़ अपनी समस्याएं स्मरण करानी पड़ती हैं तो आज के इन महादेवों को क्या “RUN for AJMER” की सिर्फ एक डोज़ काफी है?
अजमेर के अच्छे दिन कब आएंगे ?
(4) जनता जनारदन के लिए तो मीडिया ही है नारद मुनि, जो कहीं भी जाकर जनसाधारण की बात सत्ता और पदों पर बैठे इन आज के महादेवों तक पहुंचा सकते हैं, उनसे मनवा सकते हैं। तो निष्कर्ष ये निकला कि प्रजा का महादेव तो मीडिया ही है। अजमेर का मीडिया और नागरिक दोनों साथ साथ जागें, आवाज़ बुलंद करें तो ही कुछ शहर के साफ़ होने की, विकास / प्रगति (ये भी बहस का मुद्दा है – क्या हो !!) होने की संभावना है।
(5) याने कि जनता मीडिया से, मीडिया पदाधिकारियों तक अपनी बात पहुंचाए। यहाँ “हम लोग” यह भी समझ लें कि आज का सबसे पावरफुल मीडिया है – सोशल मीडिया। जिसने आम आदमी की मीडिया पर निर्भरता को नगण्य सा कर दिया है। इ-मेल, फेसबुक, व्हट्सऐप, बल्क ऐस.एम.एस, ब्लॉग, फोटो अटेचमेंट, वॉइस् मेल, विडिओ मेल आदि आपके हाथ में देकर। समझो हर व्यक्ति के हाथ में कलम है, अखबार है, चैनल है, अपना खुद का मीडिया है। अपनी आवाज़ उठाने के साधन हैं।
मैनें एक समस्या और उसका साधन आपके हाथ में ही है ऐसा आपको बताने का प्रयास किया है। यदि आप भी अजमेर के लिए सोचते हैं तो आइये और करिये इस का उपयोग।
डॉ. अशोक मित्तल

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