28 दिसंबर 2012 को अजमेर में जमीनों का धंधा करने वाले अजमत नाम के एक शख्स ने मनोज गिदवानी के जरिये उस वक्त के नगर सुधार न्यास अजमेर के चेयरमेन नरेन् शाहनी भगत पर रिश्वत मांगे जाने का आरोप लगाया था । हालांकि घटना के वक्त शाहनी जयपुर में कांग्रेस के कार्यक्रम में शामिल होने गए हुए थे और मनोज ने भी रिश्वत देने वाले अजमत से पैसे लेने के इनकार कर दिया था । रिश्वत के रूप में किसी भी प्रकार का नकद लेनदेन ना होने के बावजूद एंटी करप्शन के तत्कालीन अधिकारी भीम सिंह बिका ने ना सिर्फ मुकदमा दर्ज किया बल्कि शाहनी समेत अन्य लोगो पर कई गंभीर आरोप भी लगाए । यह घटना मैंने भी प्रमुखता से कवरेज की थी और उस वक्त भी कहीं ना कहीं ऐसा लगा था की शायद नरेन् शाहनी भगत की छवि को धूमिल कर उन्हें अपने रास्ते से हटाने के लिए किसी ने बड़ा षड्यंत्र खेला है । लेकिन उस वक्त इस बात के ठोस प्रमाण मौजूद नहीं थे ।
लेकिन अब जबकि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने नरेन् शाहनी भगत को निर्दोष करार देते हुए सभी आरोपी से मुक्त कर दिया है तो आज यह संदेह साबित हो गया है की वाकई कोई बड़ी राजनैतिक साजिश की गई थी । आपकी जानकारी के लिए बता दूं की जिस वक्त यह घटना अंजाम दी गई उस वक्त नरेन् शाहनी अजमेर की राजनीति में कांग्रेस के एक बड़े नेता के रूप में उभर रहे थे । वे ना सिर्फ तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रहे सचिन पायलेट के नजदीकी लोगो में शुमार थे बल्कि उस वक्त मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भी विश्वसनीय माने जाते थे । शाहनी का मिलनसार स्वभाव और बेदाग़ छवि और यु आई टी चेयरमेन के पद के चलते उन्हें विधानसभा चुनावो में भी अजमेर उत्तर से मजबूत दावेदार माना जा रहा था । लेकिन इसी के बीच एक झूंठे मामले को प्लान करके खेल रचा गया और गुनाहगार ना होते हुए भी शाहनी को आरोपी बनाया गया । जिसके बाद ना सिर्फ उन्हें यु आई टी चेयरमेन से इस्तीफा देना पड़ा बल्कि कांग्रेस के छोटे से लेकर सभी बड़े नेताओ ने भी उनसे किनारा कर लिया । इसके बाद जो अपमान और शर्मिंदगी नरेन् शाहनी ने झेली है इसकी पीड़ा उनके अलावा और कोई महसूस नहीं कर सकता । आज भले ही एंटी करप्शन ने उनको बेदाग़ घोषित कर दिया हो लेकिन उस केस के बाद उन्होंने जितनी जिल्लत और शर्मिंदगी झेली क्या उसकी भरपाई की जा सकती है । क्या उनके कार्यकाल के बचे हुए सालो को लौटाया जा सकता है । क्या उनके बर्बाद हो चुके राजनैतिक जीवन को दुबारा उसी मुकाम पर पहुँचाया जा सकता है ।
इसका जवाब है नहीं ……..
लेकिन अब कम से कम उन लोगो के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए जिनकी साजिश में फंसकर एक ईमानदार व्यक्ति का समूचा राजनैतिक और सामाजिक जीवन ही बर्बाद हो गया । उसी का परिणाम है की शाहनी आज भी राजनीति के जीवन में एक गुमनाम जिंदगी जी रहे है । इस मामले से एंटी करप्शन के अधिकारियो को भी सीख लेनी चाहिए । उन्हें किसी भी केस की गहराई में जाकर पूरी तरह से साक्ष्य जुटाने के बाद ही मुकदमा दर्ज करना चाहिए क्यों की उनकी एक छोटी सी भूल किसी की पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकती है । उम्मीद है जो शाहनी के साथ हुआ वह और किसी के साथ नहीं होगा ।
राकेश भट्ट
प्रधान संपादक
पॉवर ऑफ़ नेशन