6 दिशाओं में हेरात अंगेज़ ड्राइविंग है यहाँ पर

dr. ashok mittal
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अजमेर (स्मार्ट सिटी घोषित शहर) की यातायात व्यवस्था के क्या कहने !! 6 दिशाओं में हेरात अंगेज़ ड्राइविंग है यहाँ पर।
अजमेर में यातायात व्यवस्था के जो वर्तमान हालात हैं उससे निकल कर लोग-बाग़ किस प्रकार से अपने गंतव्य तक सही सलामत पहुँच जाते हैं, इस प्रश्न पर यदि गौर करें तो दुनिया के बड़े से बड़े ट्रैफिक मैनेजमेंट के धुरंधर भी दातों तले अंगुली दबा लेंगे ।
इसे निम्न बिंदुओं (कोई एक चौराहा, सड़क आदि ) में बाँट कर समझने का प्रयास करते हैं।
१. चौराहों में से शहर का सबसे प्रमुख है – गांधी भवन याने मदार गेट चौराया। इस चौराहे पर ट्रेफिक पुलिस भी तैनात रहती है। सबसे ज्यादा वाहन स्टेशन रोड से पृथ्वीराज मार्ग की तरफ या फिर पृथ्वीराज मार्ग से स्टेशन रोड की ओर दौड़ते हैं। जैसे ही एक और लाल बत्ती होती है वैसे ही सामने से बत्ती हरी हो जाती है। इस लाल से हरी और हरी से लाल होने के बीच जो ३० से ६० सेकंड का पीली बत्ती का समय होना चाहिए वह बहुत कम है। साथ ही एक तरफ यदि बत्ती लाल है दूसरी तरफ हरी होने से पहले कम से कम आधा से एक मिनट तक लाल ही रहनी चाहिए साथ ही पीली बत्ती भी नहीं होनी चाहिए ऐसा भी यहाँ प्रावधान नहीं है। जिससे की उस दौरान पैदल चालक सड़क पार कर सकें. पैदल यात्री के लिए कोई ट्रैफिक सिग्नल की व्यवस्था नहीं है। न तो पुलिस वाले ही इन्हे किसी प्रकार से रोकते हैं और ना ही ये पेडल वाहक सड़क पार कर सकें, इसके लिए वाहनों को रोका जाता हैं। फलस्वरूप पैदल यात्री, साइकिल सवार, रिक्शा सवार आदि बहते ट्रैफिक में से ही सड़क पार करने की हाबड़ – तोबड़ करते हुए आपको दिख जायेंगे।
सड़क के किनारे पटरी तो बिलकुल गायब ही हो गयी है. गांधी भवन की दीवार से चिपक कर भी पेदल यात्री चल पाये तो भगवान का शुक्र मनाता है.
सबसे ज्यादा तकलीफ तो बुजुर्गों व छोटे बच्चों के साथ वालों को इन हालात में रोड क्रॉस करने में होती है।
२. गांधी भवन के सामने कार पार्किंग की जगह है जहाँ 8 – 10 कारें कचहरी रोड साइड और इतनी ही स्टेशन रोड वाली साइड पर खड़ी हो सकती है। इस जगह का हाल ये है कि बड़े-बड़े खड्डे, भयंकर बदबू और अनचाहे वाहन व फेरी वालों के अतिक्रमण ने इस जगह का हाल इतना बुरा कर रखा है की वाहनों के पीछे खड़े होकर लोग मॉल -मूत्र का त्याग करते करते रहते हैं। स्मार्ट सिटी का सपना संजोने वालों को ये कटु सत्य पढ़ कर शायद काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़े। लोगों की भी मजबूरी है की ऐसी परिस्थिति में वो कहाँ जाये। क्या कोई साफ सुथरे शौचालय हैं वहां। मदारगेट के सुलभ शौचालय भी बदबूदार होने से नागरिक खुले में जाना ठीक समझते हैं.
३. कचहरी रोड पर दोनों ओर वाहन बेतरतीब ढंग से खड़े रहते हैं। जिससे वाहनों की गति चींटी की चाल की माफिक रहती है ।कोटा कचौरी और पंडित कचोरी खाने वाले तो सड़क का 60% से 70% हिस्से पर बेतरतीब वाहन छोड़कर ऐसे लपकते हैं जैसे की या तो बरसों बाद खाने को मिली है।
४. धूआँ और ध्वनि प्रदुषण उन ऊंचाईयों पर पहुँच गया है जहां से सीधे बहरे पन और दमा जैसी घातक बीमारियों की तरफ ही रास्ता जाता है। हरेक को जल्दी है, हर एक को हॉर्न बजाना है, बजाते ही रहना है तथा हाथ का या बत्ती का सिग्नल देकर या बिना दिए ही मुड़ जाना है।
५. करीब हर 10 में से 4 वाहन काला और ज़हरीला धुआँ छोड़ते धड़ल्ले से दौड़ रहे है। ये ज्यादातर ऑटो, सिटी बसें, दूध वाली सफ़ेद जीपें, सरकारी बसें आदि हैं। शायद पोलूशन कंट्रोल का सर्टिफिकेट इन ज़हरीले धुँआ वाले वेहिकल पर लागू नहीं है।
यह सर्टिफिकेट उन पर लागु है जो प्राइवेट कारें पहले से ही यूरो3, यूरो4 मॉडल हैं। ये पहले से ही तकनीकी रूप से इतनी ईको- मित्र बनाई गई हैं कि इनसे प्रदूषण संभव ही नहीं हैं है। फिर भी इन्हे ही हर ३ से ६ माह में लाइन में लग लग कर यह सर्टिफिकेट लेना होता है।
६. रीजनल कॉलेज से ज़ी- सिनेमाल ताल एक बहुत ही सुसज्जित डिवाइडर गया है। इस मार्ग पर यातायात 6 दिशाओं में चलता है। डिवाइडर से सट कर के दोपहिया उलटी दिशा में शार्ट कट लेते हुए तथा इसी तरह दुकानों से सटकर भी उलटी दिशा में 2, 3, व 4 पहिया वाहन बे रोक टोक चलते रहते हैं। याने डिवाइडर के दोनों तरफ 3 – 3 ओर बहता यातायात। कुल छः दिशाओं में। इन के अलावा आज के वयस्क और अल्प वयस्क युवा बहते ट्रैफिक के आगे से, क्रिस -क्रॉस, साइड से 90* कोण पर अचानक बाएं से दायें या दायें से बाएं कब और कैसे निकल जाते हैं ये भी किसी हैरत-अंगेज़ कारनामे से काम नहीं है। जिन्हे देखकर कोई अचंभित होता है, कोई गुस्सा होता है, कोई घबरा जाता है तो कोई इन से बचने के चक्कर में अपना संतुलन खो बैठता है या गिर कर हाथ पैर तुड़ा लेता है। जिसके परिणाम स्वरुप हड्डियों के फ्रेक्चर, हड्डी विशेषज्ञ व हड्डी अस्पतालों की भी दिन दूनो बढ़ोतरी हो रही है। और जो इन सबसे बचता बचाता सही सलामत अपने ठिकाने पहुँच जाता है वह अपने आपको भाग्यशाली और स्मार्ट नागरिक समझता है।
डॉ अशोक मित्तल ashokmittal.blog
Dr. Ashok Mittal
Director & Chief Orthopedic Surgeon
Old Mittal Hospital

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