एक और प्रतिभाषाली पत्रकार साथ छोड गया

ravindra singh prajapatiवरिष्ठ पत्रकार और एडवोकेट राजेंद्र हाड़ा के असामयिक निधन से उत्पन्न अभाव के षोक में डूबे अजमेर ने एक और प्रतिभाषाली पत्रकार रविन्द्र सिंह को खो दिया। उन्होंने लंबे समय तक विभिन्न दैनिक समाचार-पत्रों में डेस्क पर कार्य किया। मेरे साथ दैनिक भास्कर में भी रहे। मेरी पिछले दस पंद्रह साल में नए पत्रकारों की जो जमात आई है, उनमें उन चंद पत्रकारों में मैं रविन्द्र सिंह को षामिल मानता हूं, जिनकी न केवल हिंदी षुद्ध थी, अपितु साहित्यिक के क्षेत्र में भी अपनी पकड रखते थे। यही वजह रही कि अखबारों में जल्द ही उन्होंने जिम्मेदारी वाले पदों पर काम किया। षब्दों और वाक्य विन्यास पर उनकी गहरी पकड थी, इसी वजह से कई बार अपने सीनियर संपादकों से भी अड जाते थे और बाकायदा प्रणाम के साथ यह साबित करते थे कि वे जो कह रहे हैं, वह ही सही है। उन्होंने हाल ही दैनिक नवज्योति में प्रथम पेज के संपादन का काम षुरू किया था। मुझे उम्मीद थी कि वे बहुत आगे तक जाएंगे, मगर विधि के विधान को यह मंजूर नहीं था। तीन दिन पूर्व ही उन्हें ब्रेन हेमरेज के कारण नेहरू अस्पताल में भर्ती करवाया गया और ऑपरेषनी की तैयारी चल रही थी कि अचानक हार्ट अटैक भी आ गया। केस क्रिटिकल केस हो गया और डाक्टर भरसक कोषिष के बाद भी उन्हें नहीं बचा पाए।
रविन्द्र सिंह निजी जिंदगी में भी बेहतरीन इंसान थे। राजस्थान पत्रिका में संपादन का काम कर रहे बलजीत सिंह उनके सबसे करीबी मित्र रहे। उनकी जोडी की पत्रकार – गीत – गजलकार के रूप में अलग ही पहचान थी। दोनों टक्कर के कवि माने जाते रहे हैं। अभी पिछले 18 दिसम्बर को ही उन्होंने बलजीत सिंह की एक रचना को अपनी फेसबुक वाल पर षाया किया था।
बेषक मौत अटल है, मगर यदि कम उम्र में ही कोई हमें छोड कर चला जाए तो उसका बडा अफसोस होता है। भगवान उनकी आत्मा को षांति दें और उनके परिवार को इस वज्रपात को सहन की षक्ति प्रदान करें।
-तेजवानी गिरधर

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