सादगी, सौम्यता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे ‘बाजी’

29 अगस्त को पुण्यतिथि पर एक याद …..
zz‘बाजी’, जी हां, पिताजी को हम इसी नाम से पुकारते थे। सादगी और सौम्यता उनमें रची-बसी थी। सालों तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक के रूप में जी-जान से जुटे रहे।राजनीति में पद की कभी लालसा नहीं रखी। प्रिटिंग प्रेस के काम में भी उनका कोई सानी नहीं था। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की किताबों का प्रकाशन और मुद्रण का काम पूरी इमानदारी से किया। मुद्रण व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों में उनकी अपनी पहचान थी। हृदय की बीमारी के बावजूद जीवटता में कमी नहीं थी। पत्रकारिता के प्रति उनके विशेष रूझान था। यही वजह है कि उन्होंने जनदीप साप्ताहिक के नाम से तब समाचार पत्र प्रकाशित और मुद्रित किया, जबकि आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी। इमरजेंसी के दौरान सरकार ने अखबार पर रोक भी लगा दी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दुबारा अखबार शुरू किया। प्रिटिंग लाइन में इमानदारी की वजह से उन्हें भारी आर्थिक नुकसान भी उठाने पड़े लेकिन उन्होंने उसूलों से समझाैता नहीं किया। माताजी चांद देवी ने भी उनकी इस इच्छा का सदैव सम्मान किया और आर्थिक समस्याओ्, दुख व तकलीफों के बावजूद परिवार को संभाले रखा। बाजी चाहते थे कि पत्रकारिता में उनकी पीढ़ी का योगदान आगे भी बना रहे। उनकी इसी इच्छा को पूरा करते हुए मैंने वकालत के व्यवसाय को छोड़कर पत्रकारिता का मार्ग चुना।

पंकज यादव
पंकज यादव
इस मार्ग में मुझे बाजी के आशीर्वाद की वजह से ही डॉ रमेश अग्रवाल, श्री एसपी मित्तल, डॉ इंदु शेखर पंचोली,श्री वीरेंद्र आर्य, श्री आेम माथुर, श्री प्रताप सनकत सरीेखे कलम के धनी सम्मानीयजन का साथ मिला। उनकी पत्रकारिता की विरासत का कुछ अंश संभालने की कोशिश मैंने की है। बड़े भाई श्री अरविंद यादव ने भी संघ व भाजपा में पिताजी के काम को अागे बढ़ाया है। बड़े भाई साहब स्वर्गीय श्री रामेदव प्रकाश यादव के पुत्र और मेरे भतीजे अजय यादव ने भी पत्रकारिता के क्षेत्र को चुना और अपने दादा की इच्छा को सम्मान प्रदान किया है। बाजी को ब्रह्मलीन हुए आज बीस साल पूरे हो गए हैं। उनकी कमी हमेशा अखरती रही और वह सदैव बनी रहेगी, लेकिन यह कोशिश रहेगी कि उनके मार्ग पर चल सकूं।
सादर श्रद्धांजलि!

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