जो चाहते थे, वह नहीं कर पाए संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा

भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी अतुल शर्मा 39 वर्ष की राजकीय सेवा के बाद सेवानिवृत्त हो गए। अजमेर में उन्होंने 15 जून 2009 को कार्यभार संभाला और करीब सवा तीन साल तक रहे। इस दौरान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में अध्यक्ष और एमडीएस यूनिवर्सिटी में प्रशासक का दायित्व भी निभाया। शर्मा आमजन के लिए हमेशा उपलब्ध रहे और उनकी समस्याओं को सुनकर निपटाने का प्रयास भी किया। उनके प्रयासों से स्टेशन रोड पर फुट ओवर ब्रिज बना और पार्किंग व्यवस्था के कुछ कार्य कराए। असल में वे अजमेर को अन्य बड़े शहरों की तरह खूबसूरत और सुव्यवस्थित करना चाहते थे, मगर ऐसा हो नहीं पाया।
वस्तुत: यह अजमेर का सौभाग्य रहा कि शर्मा के अजमेर के निवासी हैं, मगर कई बार मजबूत होने के बाद भी राजनीतिक कारणों से मजबूर साबित हुए। अपने कार्यकाल में आखिरी खंड में वे अमूमन इस बात का इजहार भी करते थे।
सब जानते हैं कि यह शहर वर्षों से अतिक्रमण और यातायात अव्यवस्था से बेहद पीडि़त है। पिछले पच्चीस साल के कालखंड में अकेले पूर्व कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता को ही यह श्रेय जाता है कि उन्होंने मजबूत इरादे के साथ अतिक्रमण हटा कर शहर का कायाकल्प कर दिया था। यह सही है कि जैसा वरदहस्त अदिति मेहता को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत का मिला हुआ था, वैसा मौजूदा संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा पर नहीं था। बावजूद इसके उन्होंने कुछ करना चाहा, मगर राजनीति आड़े आ गई।
आपको याद होगा कि कुछ अरसे पहले शर्मा के विशेष प्रयासों से शहर को आवारा जानवरों से मुक्त करने का अभियान शुरू हुआ, मगर चूंकि राजनीति में असर रखने वालों ने केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट का दबाव डलवा दिया, इस कारण वह अभियान टांय टांय फिस्स हो गया।
इसी प्रकार शहर को अतिक्रमण से मुक्त करने पर भी शर्मा ने पूरा जोर लगाया, मगर जब भी इस दिशा में कुछ करते, कोई न कोई राजनीतिक रोड़ा सामने आ जाता। एक बार शर्मा ने तत्कालीन जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल के प्रयासों से टे्रफिक मैनेजमेंट कमेटी की अनुशंसा पर यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए जवाहर रंगमंच के बाहर बनी गुमटियों को दस साल ही लीज समाप्त होने के बाद हटाया तो शहर के नेता यकायक जाग गए। जहां कुछ कांग्रेसी पार्षदों ने वोटों की राजनीति की खातिर गरीबों का रोजगार छीनने का मुद्दा बनाते हुए जेसीबी मशीन के आगे तांडव नृत्य कर बाधा डालने की कोशिश की, वहीं भाजपा दूसरे दिन जागी और कांग्रेसी पार्षदों पर घडियाली आंसू बहाने का आरोप लगाते हुए प्रशासन को निरंकुश करार दे दिया। गुमटियां तोडऩे पर इस प्रकार उद्वेलित हो कर नेताओं ने यह साबित करने की कोशिश की कि प्रशासन तो जन-विरोधी है, जबकि वे स्वयं गरीबों के सच्चे हितैषी। विरोध करने वालों को इतनी भी शर्म नहीं आई कि अगर वे इस प्रकार करेंगे तो प्रशासनिक अधिकारी शहर के विकास में रुचि क्यों लेंगे। केवल नौकरी ही करेंगे न। बहरहाल, विरोध का परिणाम ये रहा कि प्रशासन को न केवल गुमटी धारकों को अन्यत्र गुमटियां देनी पड़ीं, अपितु यातायात में बाधा बनी अन्य गुमटियों को हटाने का निर्णय भी लटक गया।
इसी प्रकार शहर की यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा की अध्यक्षता में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय तो हुए, पर उन पर कितना अमल हुआ, ये पूरा शहर जानता है। उनकी लाचारी इससे ज्यादा क्या होगी कि जिस कचहरी रोड और नेहरू अस्पताल के बाहर उन्होंने सख्ती दिखाते हुए ठेले और केबिने हटाई थीं, वहां फिर पहले जैसे हालात हो गए हैं।
शर्मा ने पशु पालन की डेयरियों को अजमेर से बाहर ले जाने की कार्यवाही शुरू करने का ऐलान किया, मगर आज भी स्थिति जस की तस है। बड़े-बड़े गोदाम शहर से बाहर निर्धारित स्थल पर स्थानांतरित करने की व्यवस्था करने का निर्णय किया गया, मगर आज तक कुछ नहीं हुआ। रोडवेज बस स्टैंड के सामने रोडवेज की बसों को खड़ा करके यात्रियों को बैठाने पर पांबदी लगाई गई, मगर उस पर सख्ती से अमल नहीं हो पाया। शहर के प्रमुख चौराहों को चौड़ा करने का निर्णय भी धरा रह गया। खाईलैंड में नगर निगम की खाली पड़ी जमीन पर बहुमंजिला पार्किंग स्थल बनाने की योजना खटाई में पड़ी हुई है।
कुल मिला कर अजमेर ने एक अच्छा अफसर खो दिया है, जिसके मन में अपनी मातृभूमि का ऋण चुकाने की इच्छा थी, मगर कामयाब नहीं हो पाए।
प्रसंगवश बता दें कि 1987 बैच के आईएएस अतुल शर्मा की राजकीय सेवा में शुरुआत उद्योग विभाग से हुई। पंजीयन एवं मुद्रांक विभाग के महानिरीक्षक के पद पर शर्मा का कार्यकाल उल्लेखनीय रहा। उन्होंने पंजीयन और मुद्रांक महकमे में व्यापक फेरबदल व सुधार किए, जिनमें उप पंजीयक कार्यालयों से दलालों का एकाधिकार समाप्त करना था। शर्मा ने एक ही दिन में रजिस्ट्री करने और 24 घंटे में रजिस्टर्ड दस्तावेज देने की व्यवस्था करते हुए रजिस्ट्री की प्रक्रिया को सरल कर दिया।
-तेजवानी गिरधर

1 thought on “जो चाहते थे, वह नहीं कर पाए संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा”

  1. बिलकुल सही लिखा आपने तेजवानी जी.

    अतुल जी चूँकि यहाँ के मूल निवासी हैं इसलिए उनका अजमेर के प्रति लगाव ज्यादा था पर वो ही हर स्थान पर राजनीति हावी हो गयी.

    एक और पहल उन्होंने की थी की सारे दुधारू पशु वो चाहते थे की शहर से बाहर एक स्थान पर हो और पुरे शहर में न घुमे पर राजनेतिक कारणों से प्रयास शुरू होते ही ख़तम हो गया.
    अफ़सोस…………… अब कौन अजमेर के बारे में सोचेगा.

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