*”बहुआयामी प्रतिभा’ के धनी प्रोफेसर साहब

एमडीएसयू के प्रो अग्रवाल की प्रतिमा के क्या कहने, रिश्वत लेते पकड़े गए, फिर भी माथे पर तनिक शिकन नहीं
पहले भी कर चुके हैं ऊंचे कारनामे, फर्जी डिग्री से नौकरी पाने का भी है आरोप

प्रेम आनंदकर
लोग इस बहुआयामी प्रतिभा और व्यक्तित्व के धनी प्रो सतीश अग्रवाल से बेवजह “जलते” हैं। यह अजमेर में महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में मैनेजमेंट डिपार्टमेंट के प्रोफेसर हैं। किसी समय इस विभाग के मुखिया यानी विभागाध्यक्ष भी हुआ करते थे, लेकिन गम्भीर वित्तीय व शैक्षिक अनियमितताओं के चलते सस्पेंड कर दिए गए थे। करीब छह साल सस्पेंड रहे। भाग्य ने जोर मारा तो बहाल हो गए, लेकिन अपनी करतूतों व हरकतों से बाज नहीं आए। हर महीने डेढ़ से दो लाख रूपए तनख्वाह मिलने के बाद भी इनकी भूख नहीं मिट रही थी। इसीलिए अपने अधीन पीएचडी कर रही एक छात्रा को मिलने वाली सालाना छात्रवृत्ति का भुगतान रोक लिया था और डेढ़ लाख रुपए रिश्वत की मांग कर डाली। जैसे तैसे बात एक लाख में तय हुई। छात्रा व उसके परिजन ने 25 हजार तो पहले दे दिए। बाकी राशि देने में असमर्थता जताने के बावजूद अग्रवाल नहीं माने और पूरी राशि लेने पर अड़ गए। इनसे परेशान छात्रा ने हिम्मत दिखाई और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में शिकायत कर दी। ब्यूरो ने उन्हें 15 अक्टूबर को उनके चैम्बर में ही रिश्वत लेते हुए दबोच लिया। बेशर्मी की हद देखिए, जब कार्यवाही हो रही थी, तब यह महाशय घूमने वाली कुर्सी पर पसर कर ऐसे बैठे हुए थे, मानो इनकी कोई ताजपोशी हो रही हो।इनके माथे पर तनिक भी शिकन नहीं थी। बल्कि मन्द मन्द ऐसे मुस्करा रहे थे, मानो उन्होंने कोई बहुत बड़ा तीर मार कर यूनिवर्सिटी का नाम रोशन कर दिया हो। ऐसे में यही ख्याल आता है कि इस महान प्रतिभा और व्यक्तित्व के धनी को तो शिक्षा के क्षेत्र में कोई बहुत बड़ा सम्मान दिया जाना चाहिए। उन पर फर्जी दस्तावेजों से नौकरी पाने का भी आरोप है, जिसकी जांच कभी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। शुरुआती जांच में उन्हें दोषी करार दिया जा चुका है, किन्तु और जांच कमेटी बनाकर लीपापोती तथा मामले को दबाए रखने के सिवाय कुछ नहीं हुआ। नौकरी के फॉर्म में उन्होंने पीएचडी होने का जिक्र करते हुए फर्जी दस्तावेज लगाए थे, जबकि जिस सब्जेक्ट में नौकरी के लिए आवेदन किया था, उसमें उस वक्त पीएचडी नहीं थे। यूजीसी के मापदंडों के अनुसार यूनिवर्सिटी में टीचर के लिए पीएचडी योग्यता अनिवार्य है। खैर साहब, अंधों की ऐसी जमात यूनिवर्सिटी और सरकार में ऐसी बैठी है कि आज तक इन साहब का कुछ भी नहीं बिगड़ा। उल्टे तरक्की करते हुए असिस्टेंट प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर और फिर प्रोफेसर भी बन गए। यूनिवर्सिटी प्रशासन की मेहरबानी से कुछ समय के लिए कामचलाऊ रजिस्ट्रार भी रहे। उस दौरान करीब साढ़े 38 लाख रुपए का अनियमित करने का ऑब्जेक्शन ऑडिट में लग चुका है। कई अन्य मामलों में भी ऐसा ही हुआ और करीब ढाई करोड़ रुपए की इनसे वसूली के आदेश भी सरकार से मिल चुके हैं। लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। यानी ऊपर वाले के साथ साथ नीचे वालों की भी भरपूर मेहरबानी रही। अब बताओ, इन महाशय के हौंसले बुलंद क्यों नहीं होंगे। कहते हैं कि भगवान के यहां देर है, अंधेर नहीं है। बहरहाल एसीबी ने फिलहाल इनका अच्छा खासा ताबीज बना दिया है। भगवान ने चाहा तो जिस लक्ष्मी मैया के लिए उन्होंने इतने पापड़ बेले और रिस्क उठाई, उसकी पूजा यह महाशय दीपावली पर घर नहीं, कहीं और करेंगे।

-प्रेम आनन्दकर, अजमेर, राजस्थान। सम्पर्क 08302612247

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