अब कई नेताओं की नजर मेयर सीट पर

कांग्रेस के सत्तारूढ़ होते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने स्वायत्तशासी संस्थाओं में अध्यक्ष, सभापति व मेयर आदि के चुनाव सीधे कराने के अपने पिछली सरकार के फैसले को फिर से लागू कर दिया है। ज्ञातव्य है कि पिछली भाजपा सरकार ने अध्यक्ष, सभापति व मेयर के चुनाव वार्ड पार्षदों में से चुनने का नियम लागू किया था। इसे यूं समझें कि जिस प्रकार कांग्रेस सरकार के दौरान कमल बाकोलिया सीधे चुनाव से मेयर बने थे, जबकि भाजपा सरकार में धर्मेन्द्र गहलोत पार्षदों में चुन कर मेयर बने। बहरहाल, अब जब कि नया आदेश लागू हो गया है तो कई नेता मेयर बनने का सपना देखने लगे हैं।
जहां तक सीट के रिजर्वेशन का सवाल है, अभी यह खुलासा नहीं हुआ है कि क्या रिजर्वेशन की लॉटरी नए सिरे से निकाली जाएगी, या फिर वर्तमान सामान्य सीट को छोड़ कर लॉटरी निकाली जाएगी। अगर नए सिरे से लॉटरी निकाली गई तो सामान्य वर्ग के लिए संभावनाएं बनी रहेंगी। कुछ का मानना है कि चूंकि अनुसूचित जाति महिला, अनुसूचित जाति पुरुष, सामान्य पुरुष वर्ग से एक-एक बार सभापति-मेयर रहे हैं, इस कारण इस बार ओबीसी पुरुष व ओबीसी महिला को चांस मिल सकता है। कुल मिला कर मेयर बनने के इच्छुक नेताओं की नजर लॉटरी पर टिकी हुई है।
मेयर की सीट सामान्य होने पर भाजपा में पार्षद जे. के. शर्मा, नीरज जैन की नजर है तो निवर्तमान एडीए चेयरमैन शिवशंकर हेडा, पूर्व यूआईटी चेयरमैन धर्मेश जैन सरीखे वरिष्ठ नेता भी मन बना सकते हैं। हालांकि मौजूदा मेयर धर्मेन्द्र गहलोत दुबारा मेयर बनने के इच्छुक नहीं बताए जाते, विशेष रूप से सीधे फाइट करके, चूंकि उनकी रुचि अब लोकसभा चुनाव में है, मगर मेयर की सीट ओबीसी के लिए रिजर्व होने पर वे भी मन कर सकते हैं। अगर मेयर की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होती है तो हाल ही विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण से पराजित हेमंत भाटी, पूर्व मेयर कमल बाकोलिया, पूर्व उप मंत्री ललित भाटी व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल कांग्रेस टिकट के दावेदार हो सकते हैं। इसी प्रकार भाजपा की ओर से मौजूदा जिला प्रमुख सुश्री वंदना नोगिया, पूर्व राज्यमंत्री श्रीकिशन सोनगरा के पुत्र विकास सोनगरा आदि का दावा बन सकता है।
मेयर की सीट ओबीसी के लिए रिजर्व होने पर माली, स्वर्णकार आदि ओबीसी जातियों के नेता दावा ठोक सकते हैं। ये नेता कौन होंगे, इस बारे में अभी से कयास लगाना कठिन है। बानगी के तौर बता सकते हैं कि भाजपा में तुलसी सोनी दावा ठोक सकते हैं, जिनकी विधायक का टिकट हासिल करने की इच्छा पूरी नहीं हो पाई है।
वैसे, एक बात है। मेयर का चुनाव लडऩा आसान काम नहीं है। जो भी नेता पार्टी का टिकट लेकर आएगा, उसको कम से कम तीस लाख रुपए तो केवल पार्षद प्रत्याशियों पर खर्च करने होंगे। साठ वार्डों में प्रत्याशी कम से कम पचास हजार रुपए तो मेयर प्रत्याशी से झटकेंगे, वरना काम नहीं करेंगे।
आखिर में एक फैक्टर का भी जिक्र करना अनुचित नहीं होगा, वो यह कि स्थानीय राजनीति में सिंधियों की अहम भूमिका आंकी गई है। भाजपा जरूर किसी सिंधी को टिकट नहीं देगी, क्योंकि उसका मौजूदा विधायक सिंधी है, मगर कांग्रेस भाजपा मानसिकता के सिंधी वोट बैंक में सेंध मारने के लिए कदाचित किसी सिंधी को टिकट देने पर कम से कम एक बार तो विचार कर ही सकती है।

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