न्याय होना ही नहीं चाहिए, दिखना भी चाहिए

भाजपा नेता सोमरत्न आर्य को मिली अग्रिम जमानत से ये तथ्य आज साबित हो गया कि वास्तव में न्याय तब होता है जब न्याय दिखता भी हो।मैंने अग्रिम जमानत स्वीकार करने वाले आदेश का अध्ययन किया है जिसमें सम्मानीय स्पेशल जज (पोस्को अधिनियम) श्री रतनलाल मूड ने प्रकरण की समस्त परिस्थितियों पर विस्तृत विवेचन करते हुए अभियुक्त की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान में रखी गई कमियों और कानूनी पहलुओं का बारीकी से अध्ययन और उल्लेख करते हुए जमानत का विस्तृत आदेश पारित किया है।इसका मतलब ये कतई नहीं है कि अभियुक्त निर्दोष है और परिवादी पक्ष की कहानी झूठी है।इसका मतलब सिर्फ और सिर्फ ये है कि वास्तविकता जो भी हो अभियुक्त की भूतकालीन सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों को देखते हुए उसे सिर्फ एक मौका दिया गया है।और ये संभावना व्यक्त की है कि हो सकता है इसके पीछे कोई साजिश हो।न्यायाधीश महोदय ने प्रकरण की परिस्थितियों पर कोई टिप्पणी नहीं करते हुए अभियुक्त को ये भी निर्देशित किया है कि वह अनुसंधान अधिकारी के समक्ष उपस्थित होकर अनुसंधान में सहयोग करे तथा बिना न्यायालय की अनुमति के भारत नहीं छोड़ेगा।इसको कहते हैं दूध का दूध और पानी का पानी।पिछले 5-7 दिनों से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस सोमरत्न आर्य को अघोषित अपराधी ठहरा चुकी थी।न्यायाधीश महोदय पर मीडिया की थोपी हुई अघोषित दोषसिद्धि बेअसर रही।ये सबसे बड़ी बात है।अन्यथा आज के दौर में ज्यादातर जज मीडिया में आई हुई न्यूज़ के आधार पर फैसला सुनाकर चैन की नींद सोने में ज्यादा विश्वास रखते हैं।जमानत खारिज करने के लिए ज्यादा दिमाग लगाने की आवश्यकता भी नहीं होती लेकिन स्वीकार करने के लिए सबसे पहले एक ईमानदार,निष्पक्ष,बहादुर दिल और दिमाग वाला इंसान चाहिए उसके बाद कानून विशेषज्ञ,तार्किक क्षमता रखने वाला,लेटेस्ट जजमेंट को समझने वाला न्यायिक दिमाग रखने वाला जज चाहिए तब जाकर ऐसा न्याय होता है।सोमरत्न आर्य जी से तो मुझे कोई मतलब ही नहीं है।मैं उन्हें और वो मुझे नहीं जानते लेकिन जज साहब की निष्पक्षता,अनुशासनप्रियता,और न्यायप्रियता को मैं जानता हूं इसलिए कहा कि न्याय होना ही नहीं चाहिए, न्याय दिखना भी चाहिए।जज साहब को सेल्यूट….जय हिंद सर…

मनोज आहुजा, एडवोकेट

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