कितनी पीड़ा हुई होगी देवनानी को?

प्रो. वासुदेव देवनानी
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय को लोहागल स्थित नए भवन में शिफ्ट किए जाने के दौरान पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी को खुद के वहां मौजूद न होने पर कितनी पीड़ा हुई होगी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां शिफ्टिंग की खबर सरकारी तौर पर जारी की गई, वहीं देवनानी को भी उसका श्रेय लेने के लिए अपनी ओर से विज्ञप्ति जारी करनी पड़ी।
उन्होंने महाविद्यालय को नवनिर्मित भवन में शिफ्ट किये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि गत भाजपा सरकार के प्रयास रंग लाए, जिसकी बदौलत संस्कृत कॉलेज को अपना भवन मिलने का सपना साकार हुआ। उन्होंने बताया कि अजमेर के संस्कृत महाविद्यालय का गंज स्थित भवन बहुत छोटा था, जहां पर आवश्यक सुविधाओं की बहुत कमी थी। उनके आग्रह पर गत भाजपा सरकार द्वारा लोहागल में नवीन भवन का निर्माण कराने के लिए 6.54 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई थी। महाविद्यालय का भवन निर्माण 2017 में प्रारम्भ हुआ था, जिसके तहत लगभग 4.18 करोड़ की राशि व्यय कर ग्राउण्ड फ्लोर के साथ ही प्रथम तल पर भी 5 कमरों का निर्माण कराया गया है। स्वीकृत बजट में से बचत राशि लगभग 1.54 करोड़ से महाविद्यालय भवन में शेष निर्माण कराये जाने की भी सरकार ने स्वीकृति दे दी है। लोहागल में कॉलेज के भवन का निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद भी सरकार इसे वहां पर शिफ्ट करने में कोई रुचि नहीं ले रही थी, तब उन्होंने नवनिर्मित भवन में कॉलेज का संचालन जल्द प्रारम्भ कराये जाने का मामला विधानसभा में भी उठाया था तथा सरकार ने इसी सत्र से कॉलेज का नवीन भवन में संचालन प्रारम्भ कराये जाने का आश्वासन दिया था।
देवनानी के इस बयान से समझा जा सकता है कि मन ही मन वे यह पीड़ा दबाए हुए हैं कि सारा किया धरा उनका है, मगर आज वे केवल दर्शक की मुद्रा में हैं। वे यह भी जताना चाहते हैं कि सरकार बदल जाने के कारण भले ही वे शिफ्टिंग के दौरान वे वहां मौजूद न रहे हों, मगर यह है उनकी ही देन। जाहिर तौर पर देवनानी की इस उपलब्धि की जानकारी महाविद्यालय प्रशासन को रही होगी, मगर चूंकि अब वे मंत्री नहीं और विपक्ष में बैठे हैं, लिहाजा उन्हें बुलाना मुनासिब नहीं समझा। मगर अजमेर शहर में ही अपनी उपलब्धि का मजा न ले पाने का मलाल तो उन्हें रहा ही होगा।
अमूमन ऐसा होता है। यह राजनीति की विडंबना ही है कि उसमें सामान्य शिष्टाचार व सदाशयता का कोई स्थान नहीं। कोई काम किसी सरकार के दौरान शुरू होता है और दूसरी सरकार के दौरान पूरा होता है तो मौजूदा सरकार के प्रतिनिधि ही उसका लोकार्पण करते हैं। जैसे किशनगढ़ हवाई अड्डे की सारी मशक्कत पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मौजूदा उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने की, मगर चूंकि जब वह बन कर पूरा हुआ तो सरकार बदल चुकी थी, इस कारण लोकार्पण का श्रेय तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने ले लिया। उस वक्त कांग्रेस जन ने भी अपनी ओर से खबरें जारी कर यह जताया था कि असल में यह पायलट की देन है। अजमेर में जवाहर रंगमंच के मामले में भी कमोबेश ऐसा ही हुआ। उसकी आरंभिक मांग से लेकर बाद के फॉलोअप में वरिष्ठ एडवोकेट राजेश टंडन की अहम भूमिका रही, मगर उद्धाटन के वक्त चूंकि भाजपा की सरकार थी, इस कारण सारा श्रेय उसी ने लिया।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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