कहां गए बरसाती मेंढक…..

दोस्तों सरकार अगर अभी पंचायती राज चुनावों की तारीख डिक्लेयर कर दें ना तो अभी कई बरसाती मेंढक टर्र टर्र करते हुए समाज सेवक बन जाएं।आज असली समय है सेवा का।समाजसेवा का जज्बा दिखाने का तो कहां गए वो लोग,कहां गए वो भामाशाह जो दस रुपये का सामान देकर अपने आपको मीडिया में बसे समाजसेवी और भामाशाह कहलाते हैं।दोस्तों आदमी की पहचान इसी समय में होती है।इस समय जो व्यक्ति सामाजिक सरोकार में लगा हुआ है वो वास्तव में समाज सेवक है और ऐसे समाज सेवकों को ही राजनीति में आने का मौका दिया जाना चाहिए।अभी दो महीने पहले ही हम सबने पंचायत राज चुनाव देखे हैं।कितने मेंढक साफे लगाके,साड़ियां पहनके,शॉल ओढ़कर समाज सेवक व समाज सेविकाएं बन रही थी।बड़े बड़े पोस्टर,बैनर, होर्डिंग्स लगाकर हाथ जोड़ रहे थे और अनगिनत वादे कर रहे थे।कहां है वो सब लोग।ऐसे गायब हो गए जैसे गधे के सिर से सींग।दोस्तों हम लोग सीधे हैं, सहज है, हम लोगों की बातों में आकर ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुन लेते हैं जो जीतते ही अपनी औकात ऐसे बताते हैं जैसे अब हम सांस भी इनकी मर्जी से लेने वाले हैं।ऐसे दोगले चरित्र के नेताओं का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए तथा अभी जो लोग वास्तविकता में आप और हम सबके बीच सामाजिक सरोकार निभा रहे हों,कुछ कर रहे हों और उन्हें यदि राजनीति का शौंक हो,वो ऐसा जज्बा रखते हों तो उन्हें चुनें।बाकी जो लोग हमें बेवकूफ समझते हैं, गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं उन्हें रंगहीन कर दो।हम जिन्हें बनाना जानते हैं हमें उन्हें बिगाड़ना भी आता है।ऐसे उदहारण हमने पहले भी जनता को दिए हैं।मेरी यह पोस्ट किसी स्थानीय नेता या सरपंच के लिए नहीं है लेकिन पहले ऐसा यहां हो चुका है।आप सब जानते हैं।मैंने,आप सब लोगों ने मिलकर एक साधारण आदमी को असाधारण बनाकर कहां पहुंचा दिया था उसने क्या किया हमारे लिए।हमें तो खैर जरूरत भी नहीं है कि कोई हमारे लिए करे।लेकिन उसने तो अपने ही लोगों के पैर काटने की कोशिश की।उससे हमारी लोकप्रियता बर्दाश्त नहीं हुई।आप भी बनो न लोकप्रिय।काम तो करो भाई।जेब से दाम भी निकालने पड़ते हैं।चाय तो आप अपनी जेब से पियो नहीं और उम्मीद करो कि आपको ये जनता माथे पर बिठाए।तो मेरे दोस्तों आप सभी से यही निवेदन है कि बरसाती मेंढकों को बरसात में ही रहने दें।ये बरसात किसी की सगी नहीं।इस बरसात ने पता नहीं कितने गरीब काश्तकारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।इसलिए आप लोग भी इनसे कोई उम्मीद नहीं करें।खुद अपना घर रोशन करें।दोस्ती और व्यवहार ऐसे लोगों से बनाएं जो अभी अपना सामाजिक सरोकार दिखा रहे हों।डॉक्टर है,पुलिस है,सामाजिक कार्यकर्ता है, मीडिया के साथी हैं और भी जो लोग इस राष्ट्रीय आपदा में अपना सहयोग कर रहे हैं।वो दिख जाते हैं उनके लिए किसी अखबार की जरूरत नहीं है।ऐसे लोगों से ही रखें रिश्ता,जो सहज हो,सरल हो,ईमानदार हों,मौका आने पर साथ देने वाले हों।बाकी को दूर भगाओ।लात मारो मौकापरस्त लोगों को,गिरगिटों को….

डॉ. मनोज आहूजा एडवोकेट एवं पत्रकार
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