क्या होगा धर्मेन्द्र गहलोत का भविष्य?

अजमेर नगर निगम के दो बार महापौर रह चुके धर्मेन्द्र गहलोत का राजनीतिक भविष्य क्या होगा, यह सवाल सियासी हलकों में भ्रमण कर रहा है। ऐसा इसलिए कि भाजपा में वे गिनती के उन नेताओं में शुमार है, जो ऊर्जावान माने जाते हैं। दो बार महापौर रह लेना कोई कम बात नहीं है। हालांकि इस शहर में पांच बार के सांसद प्रो. रासासिंह रावत, राज्य मंत्री रह चुके श्रीकिशन सोनगरा, पूर्व विधायक हरीश झामनानी, पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा, पूर्व जिला प्रमुख सरिता गेना आदि की स्थिति को देखने के बाद गहलोत के बारे में सोचना बेमानी सा लगता है, मगर चूंकि वे इन सबसे कहीं अधिक मुखर हैं, इस कारण धारणा यही है कि वे घर बैठने वालों में से नहीं हैं। यद्यपि सक्रिय राजनीति में उनके पास सीमित विकल्प हैं, फिर भी माना जाता है कि भाजपा उनका कहीं न कहीं उपयोग करेगी ही।
चूंकि आगामी निगम चुनाव में महापौर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित है, इस कारण निगम की राजनीति करने के रास्ते पांच साल के लिए तो बंद हैं। रहा सवाल विधानसभा चुनाव का तो लगता नहीं कि आजादी के बाद से लेकर अब तक हुए अजमेर उत्तर, जो कि पूर्व में अजमेर पश्चिम कहलाता था, लगातार किसी सिंधी को ही टिकट देती आ रही भाजपा कोई नया प्रयोग करेगी। यानि कि भले ही तकरीबन तीन साल बाद वे दावेदारी करें, मगर टिकट मिलना असंभव सा लगता है। बात अगर लोकसभा चुनाव की करें तो चूंकि यह सीट जाट बहुल है, इस कारण जातीय समीकरण के लिहाज से उन पर दाव खेलना कठिन ही लगता है। फिर भी उनकी दावेदारी रहेगी ही, क्योंकि मालियों के वोट भी कम नहीं हैं।
बात अगर संगठन की करें तो भाजपा को उन जैसे दबंग नेता की जरूरत है, जो कि फिलहाल विपक्ष में रहते हुए पार्टी को आक्रामक बनाए रख सके। बेशक मौजूदा अध्यक्ष डॉ. प्रियशील हाड़ा सज्जन हैं, मगर विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए जिस प्रकार के नेता की जरूरत है, वह क्वालिटी में उनमें नजर नहीं आती। अव्वल तो यह सवाल अनुत्तरित ही पड़ा है कि अजमेर दक्षिण में पहले से कोली समाज की श्रीमती अनिता भदेल के विधायक रहते हुए पार्टी ने क्या सोच कर उनको मौका दिया? दूसरी बात ये कि आगामी महापौर भी अनुसूचित जाति की महिला के रूप में होगा तो क्या लंबे समय तक उन्हें इस पद पर रखा जाएगा या नहीं? ऐसे में भाजपा के पास बेहतर विकल्प के रूप में एक मात्र सशक्त नेता गहलोत ही बचते हैं। उनमें भूतपूर्व नगर परिषद सभापति स्वर्गीय वीर कुमार का प्रतिबिंब देखा जाता है। अजमेर भाजपा में चूंकि आरएसएस की अहम भूमिका है, इस कारण उनको शहर अध्यक्ष की कमान दिए जाने की संभावना बनती तो हैं, क्योंकि वे आरएसएस की पसंद हैं। इसके अतिरिक्त शहर में अपना वजूद बनाए रखने व और बढ़ाने के लिए पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री व मौजूदा अजमेर उत्तर विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी उनका साथ दे सकते हैं। चूंकि स्मार्ट सिटी के कार्य उनके महापौर काल में आरंभ हुए, इस कारण उन्हीं को इसकी गहरी समझ है। दौ बार नगर निगम का बेड़ा चलाने का अनुभव तो है ही। इन सारी बातों को देख कर लगता है कि भाजपा हाईकमान उनका उपयोग शहर अध्यक्ष के रूप में कर सकता है। यही आखिर विकल्प है। बाकी प्रदेश संगठन में कोई पद दे कर गैराज में सजा कर रखने से पार्टी को बहुत बड़ा फायदा नहीं होने वाला।
जरा पीछे नजर डालें तो पिछली बार जब जब उनका पहला कार्यकाल समाप्त हुआ तब भी यह सवाल उठा था कि उनका राजनीतिक भविष्य क्या होगा? उन्होंने भी अपने मूल पेशे वकालत पर ध्यान देना शुरू कर दिया था। महापौर पद जाने के बाद मात्र एक दिन के फासले में ही वे बड़ी सरकारी गाडी से अपने निजी स्कूटर पर आ गए थे। तब निकट भविष्य में कोई चुनाव लडऩे की संभावना नहीं थी। उस वक्त भी ऐसी संभावना थी कि उन्हें संगठन की जिम्मेदारी दी जाए, मगर ऐसा हो नहीं पाया। यह उनका सौभाग्य था कि पांच साल बाद निगम चुनाव आए तो पार्षदों में से महापौर चुनने का नियम लागू हो गया और देवनानी के दम पर वे फिर से महापौर बन बैठे। सामान्य सीट पर फिर से ओबीसी को मौका देने के कारण हालांकि उनका जबदस्त विरोध हो गया। भाजपा के ही पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह शेखावत कांग्रेस के सहयोग से बागी बन कर मैदान में आ डटे। बराबर वोट मिलने पर लॉटरी निकाली गई और यहां भी भाग्य ने गहलोत का साथ दिया। हालांकि इसको लेकर विवाद हुआ, मगर देवनानी के आगे किसी की नहीं चली।
गहलोत के पहले कार्यकाल की समाप्ति पर अपुन ने एक ब्लॉग लिखा था। उसमें साफ इशारा किया था कि जड़ अगर उनकी जिंदा है, तो फिर हरे हो जाएंगे। इस टायर्ड-रिटायर्ड शहर में मुर्दा लोग ही जब मात्र विज्ञप्तियों के सहारे जिंदा बने रहते हैं, तो चैन से नहीं बैठने वाले गहलोत को ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी। हुआ भी वही। इस बार देखें क्या होता है?

-तेजवानी गिरधर
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