बेमिसाल डॉक्टर एन. सी. मलिक का एक और दिलचस्प प्रसंग

मैं हूं अजमेर के हृदयस्थल नया बाजार की गोल प्याऊ। हर राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक हलचल के केन्द्र इस बाजार में होने वाली हताई, सुगबुगाहट व गप्पबाजी की गवाह। गर कहें कि यही नब्ज है अजमेर की तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। शहर में पत्ता भी हिले तो उसकी खबर यहां पहुचंती है। सियासी गणित की गणना यहीं पर होती है। यहीं से हवा बनती है। ऐसे अनेक किस्से मेरे जेहन में दफ्न हैं। पेश है ये किस्सा-

मैं राजेन्द्र प्रसाद शर्मा हूं। मेरा छोटा भाई जगदम्बा प्रसाद, जो कि दिल्ली में रहता है, दिसंबर 1995 में बीमार रहने लगा। हम उसे अजमेर इलाज के लिए लेकर आए। तबीयत उसकी काफी ज्यादा खराब थी। जे एल एन हॉस्पिटल में उसे भर्ती करवाया गया। उसका इलाज बहुत ही कुशल डॉक्टर्स की टीम द्वारा किया जा रहा था। उसको भर्ती हुए पच्चीस दिन से भी ज्यादा समय हो गया था। उस वार्ड में रेजिडेंट डॉक्टर दीपक थे, जो की एक नेक इंसान थे। मैने एक दिन निश्चय किया कि क्यों न इस बारे में डॉक्टर मलिक साहब से सलाह ली जाए। मैं पूरे पेपर्स की फोटो कॉपी करवा कर मलिक साहब के पास गया। उन्होंने सारे पेपर्स देखे और बोले कि ये क्या कोई केमिकल से संबंधित काम करता है। मैने बताया कि पहले वह बिरला टैक्सटाइल में कार्य करता था और वहां इसके विभाग में कलर मिक्सिंग का काम होता था। इस पर वे बोले कि इसको टीबी बताई गई है, जबकि कलर की फ्यूम्स इसके लंग्स में जम गई है। इसको जब तक इन दवाओं के साथ कार्टीसोरोन नहीं दोगे, तब तक ये ठीक नहीं होगा। मैने कहा कि सर, मैं वहां से डिस्चार्ज करवा कर आपसे इलाज करवा लूं। उनका जवाब था कि नहीं पेशेंट को इस कंडीशन में हॉस्पिटल में होना जरूरी है। बहरहाल वार्ड के रेजीडेंट डॉक्टर दीपक को कह कर दूसरे दिन कार्टीसोरोन चालू की गई और तीन-चार दिन में तबीयत में सुधार होना चालू हो गया। इस तरह बिना पेशेंट को देखे उन्होंने अपने अनुभव से इलाज में मदद की।

-तेजवानी गिरधर
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