नगर निगम चुनाव में नई पीढ़ी दस्तक देने को आतुर

नगर निगम के चुनावों में जहां हर बार कुछ नए चेहरे पार्षद बन कर आते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जो दो या तीन बार पार्षद बन चुके हैं। मगर इस बार ऐसा प्रतीत होता है कि स्थापित राजनेताओं की नई पीढ़ी दस्तक देने को आतुर है।
ज्ञातव्य है कि महापौर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित होने के बाद दो बार महापौर रह चुके धर्मेन्द्र गहलोत के लिए कम से कम पांच साल निगम की राजनीति के रास्ते बंद हो गए हैं। पांच साल बाद क्या होगा, कुछ पता नहीं। ऐसे में उन पर समर्थकों का दबाव है कि वे अपने पुत्र रनित गहलोत को आगे लाएं। जैसा कि गहलोत कह चुके हैं कि हालांकि उनकी अपने पुत्र को राजनीति में लाने की रुचि नहीं है, लेकिन पार्टी का अगर आदेश हुआ तो वे उसे रोक भी नहीं पाएंगे। इसका अर्थ ये ही है कि उनके पुत्र के चुनाव लडऩे की पूरी संभावना है। अगर वे चुनाव लड़े व जीते तथा भाजपा का बोर्ड बना हो निश्चित रूप से उप महापौर पद के दावेदार भी होंगे।
इसी प्रकार कांग्रेस के दिग्गज नेता महेन्द्र सिंह रलावता का कद निगम की राजनीति से ऊंचा हो गया है, इस कारण उनके पुत्र शक्ति सिंह रलावता का नाम उभर कर आया है। उनके समर्थकों ने आसमान सिर पर उठा रखा है और अभी से सीधे उप महापौर पद की दावेदारी ठोक रहे हैं।
निगम जब परिषद था, तब सभापति रहे सुरेन्द्र सिंह शेखावत निवर्तमान बोर्ड में पार्षद थे। हालांकि उन्होंने सभापति बनने के लिए पार्टी से बगावत भी की, मगर सफलता हाथ नहीं लगी। अब चूंकि महापौर पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित हो गया है तो इतने सीनियर लीडर के लिए अब निगम में केवल पार्षद या उप महापौर पद के लिए रुचि लेने का कोई मतलब ही नहीं है। हालांकि वे अपने पुत्र हर्षवद्र्धन सिंह शेखावत उर्फ टूटू बना को राजनीति में लाने वाले हैं या नहीं, कुछ पता नहीं, मगर अंदरखाने की खबर बताई जाती है कि उनके समर्थकों की इच्छा है कि पुत्र की राजनीतिक यात्रा आरंभ करवाई जाए। सार्वजनिक जीवन में उनकी एंट्री रग्बी फुटबॉल संघ, अजमेर का अध्यक्ष बनने के साथ हो ही चुकी है।
कांग्रेस में महापौर पद की प्रबल दावेदार पूर्व पार्षद श्रीमती तारादेवी यादव मानी जाती हैं, मगर सतह से भीतर चल रही हलचल से इशारा मिल रहा है कि इस बार उनकी पुत्री को भी आगे लाया जा सकता है। इसी प्रकार पूर्व राज्यमंत्री श्रीकिशन सोनगरा की पुत्र वधु का नाम भाजपा खेमे से महापौर पद की दावेदारी के लिए आगे आ ही चुका है। निवर्तमान जिला प्रमुख श्रीमती वंदना नोगिया भाजपा की ओर से प्रबल दावेदार के रूप में आगे आ रही हैं। हालांकि वे जिला प्रमुख पद पर रह चुकी हैं, मगर उन्हें भी नई पीढ़ी का इसलिए माना जा सकता है कि उनकी उम्र कोई ज्यादा नहीं है। चर्चा ये भी है कि पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की बहिन का नाम भी दावेदारों में शामिल किया जा रहा है। चूंकि वे अभी विधायक हैं, इस कारण उनका नाम तो दावेदारों में नहीं है, लेकिन यदि भाजपा को बहुमत मिलता है और अनुसूचित जाति की कोई पढ़ी-लिखी महिला जीत कर नहीं आती है तो हो सकता है कि उन्हें हाईब्रिड फार्मूले के तहत महापौर बनाने की कोशिश की जाए।
बात संभ्रांत लोगों के अजमेर क्लब के पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल की की जाए तो उनको खुद को भले ही लंबे समय से जनप्रतिनिधित्व वाली सक्रिय राजनीति में मौका नहीं मिला, मगर उनकी पत्नी के लिए जरूर रास्ता खुल गया है। इसी प्रकार पूर्व महापौर कमल बाकोलिया के लिए यही विकल्प है कि पत्नी को चुनाव मैदान में उतारें। एक नया नाम डॉ. नेहा भाटी का है। वे प्रतिष्ठित परिवार रामसिंह शंकर सिंह भाटी के परिवार से हैं।
दो या तीन बार पार्षद बन चुके कुछ नेताओं की मजबूरी है कि उनके प्रभाव वाले वार्ड यदि महिलाओं के लिए आरक्षित हो चुके हैं तो उन्हें पत्नियों को मैदान में उतारना होगा। यानि वे भी नए चेहरे होंगे।
इस बार शहर को एक साथ ढ़ेर सारे नए नेता भी मिलने जा रहे हैं। पहले 60 वार्ड थे, जो बढ़ कर 80 हो गए हैं। यदि मोटे तौर पर माना जाए कि हर वार्ड में जीते, हारे व तीसरे नंबर पर रहने वाले नए नेता पैदा होने जा रहे हैं तो साठ से भी अधिक नए चेहरे उभर कर आएंगे।
कुल मिला कर आसन्न चुनाव की तस्वीर कुछ अलग ही होगी और नई पीढ़ी निगम की दहलीज पर कदम रख सकती है।

-तेजवानी गिरधर
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