जरा सोचिये और चिन्तन-मनन कीजिये कि क्या ऐसा हो रहा है?
अगर नहीं तो रावणमेघनाथ और कुमंकर्ण के पुतलों को जलाने, भव्य रामलीलायें आयोजित करने और जय श्रीराम के जयकारें बोलने का क्या औचित्य है ? क्यों हम लाखों करोड़ो रूपये पुतले बनाकर उन्हें जलाने में व्यर्थ खर्च करते हैं ? क्यों हमारे मन में कामक्रोध, लोभ, मद , मोह, आलस्य की जड़ें दिन प्रति दिन मजबूत बनती जा रही है ? क्यों हम परनिंदा करने में सबसे आगे रहते हैं? क्यों हमारी बहन बेटियां अपहरणकर्ताओं के हाथों रोजाना बेइज्जत होती है क्यों भ्रष्टाचार का विषाणु हममें आत्मसात हो गया है ? क्यों हमारी कथनी और कथनी में अंतर बढ़ता ही जा रहा है ? क्यों हमारी जुबान पर राम किन्तु बगल में छुरी होती है? क्यों जरासी सत्ता मिलते ही हम अहंकारी बन जाते हैं ?
प्रस्तुतिकरण—डा जे. के. गर्ग