स्नेह,विनम्रता,सोहार्द एवँ सच्चाई की विजय का पर्व —दशहरा के पार्ट 3

जरा सोचिये और चिन्तन-मनन कीजिये कि क्या ऐसा हो रहा है?

dr. j k garg
अगर नहीं तो रावणमेघनाथ और कुमंकर्ण के पुतलों को जलाने, भव्य रामलीलायें आयोजित करने और जय श्रीराम के जयकारें बोलने का क्या औचित्य है ? क्यों हम लाखों करोड़ो रूपये पुतले बनाकर उन्हें जलाने में व्यर्थ खर्च करते हैं ? क्यों हमारे मन में कामक्रोध, लोभ, मद , मोह, आलस्य की जड़ें दिन प्रति दिन मजबूत बनती जा रही है ? क्यों हम परनिंदा करने में सबसे आगे रहते हैं? क्यों हमारी बहन बेटियां अपहरणकर्ताओं के हाथों रोजाना बेइज्जत होती है क्यों भ्रष्टाचार का विषाणु हममें आत्मसात हो गया है ? क्यों हमारी कथनी और कथनी में अंतर बढ़ता ही जा रहा है ? क्यों हमारी जुबान पर राम किन्तु बगल में छुरी होती है? क्यों जरासी सत्ता मिलते ही हम अहंकारी बन जाते हैं ?

प्रस्तुतिकरण—डा जे. के. गर्ग

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