मजदूर और मेहनतकश कौम के प्रतीक थे कृष्ण गोपाल गुप्ता (गोपाल भैय्या)

30वीं पुण्य तिथि पर विशेष।
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मेरे पिता कृष्ण गोपाल जी गुप्ता की 3 मार्च 2021 को 30वीं पुण्य तिथि है। अजमेर और राजस्थान की पुरानी पीढ़ी के लोग उन्हें गोपाल भैय्या के नाम से जानते थे। गोपाल भैय्या का जीवन भले ही कुल 60 वर्ष का रहा हो, लेकिन कम समय में भी उन्होंने समाज के लिए बहुत कुछ किया। 1960 से लेकर 1985 तक गोपाल भैय्या मजदूर और मेहनतकश कौम के प्रतीक रहे। अजमेर में हाथ ठेला श्रमिक हो या फिर रेलवे और रोडवेज बस स्टेशन के कुली। सभी का नेतृत्व गोपाल भैय्या ने किया। जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में वर्ष 1974 में जब रेल हड़ताल हुई तो अजमेर रीजन में गोपाल भैय्या ने ही नेतृत्व किया। आजादी से पूर्व जो जुझारूपन था, वह अंत तक बना रहा। नगर परिषद के पुराने वार्ड संख्या 33 (पाल बीसला और तोपदड़ा क्षेत्र) से दो बार पार्षद चुने गए। बनास नदी का पानी अजमेर तक लाने में गोपाल भैय्याद की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बनास जल प्रदाय योजना ही बाद में बीसलपुर पेयजल योजना में तब्दील हुई। मुझे यह लिखते हुए गर्व होता है कि मेरे पिता ने स्वयं के लिए कोई सम्पत्ति अर्जित नहीं की। यहां तक की एक इंच जमीन भी नहीं खरीदी। जबकि कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे बालकृष्ण कौल, ज्वालाप्रसाद शर्मा, केसरीचंद चौधरी जैसों से गहरी मित्रता थी। असल में पुरानी पीढ़ी के लोगों में सम्पत्ति अर्जित करने की कभी इच्छा नहीं रही। राजस्थान में पूर्व शराब बंदी के लिए भी गोपाल भैय्या कई बार जेल गए। आज पूर्ण शराब बंदी के लिए गोपाल भैय्या जैसे सत्याग्रहियों की जरुरत है। हालांकि अब शराब बुराई नहीं बल्कि फैशन बन गई है और ऐसे दौर में पूर्ण शराब बंदी की मांग बेमानी होती जा रही है। अब गोकुल भाई भट्ट जैसे नेता भी नहीं रहे हैं। मुझे याद है जब 1975 में देश में आपातकाल लागू हुआ तब प्रेस पर भी सेंसरशिप थोपी गई। उस समय गोपाल भैय्या अपना भभक पाक्षिक समाचार पत्र भी निकालते थे। भभक में प्रकाशित होने वाली खबरों को देखते हुए तत्कालीन जिला कलेक्टर रणजीत सिंह ने भभक के प्रकाशन पर रोक लगा दी। इमरजेंसी में जब सरकार के खिलाफ बोलने की कोई हिम्मत नहीं करता था, तब गोपाल भैय्याद ने जिला कलेक्टर के फैसले को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में चुनौती दी। काउंसिल ने जिला कलेक्टर का आदेश निरस्त कर दिया। भभक राजस्थान का एक मात्र अखबार रहा, जो इमरजेंसी में शुरू हो गया। इस बात का उल्लेख 1978 में तत्काली सूचना एवं प्रसरण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में भी किया। एक रेल दुर्घटना में पैर खराब होने के बाद भी गोपाल भैय्या ने कभी हिम्मत नहीं हारी। परिवार की आजीविका के लिए आटा चक्की लगाई। पार्षद रहते हुए भी स्वयं गेहंू पीसने का काम करते थे। इसे मेहनत की पराकाष्टा ही कहा जाएगा कि एक पैर खराब होने के बाद भी 20-25 किलो वजन के गेहंू जौ के पीपे स्वयं उठाते थे। लेकिन उन्होंने स्वयं को कभी भी गरीब नहीं माना, इसलिए वे मजदूर और मेहनतकश कौम के प्रतीक माने जाते थे। रेल दुर्घटना के बाद जब खून की जरुरत पड़ी तो एक हजार मजदूरों ने खून देने के लिए अपना नाम अस्पताल में लिखवा दिया। यह थी गोपाल भैय्या की कमाई। आज भले ही गोपाल भैय्या हमारे साथ नहीं है, लेकिन मेरी माता जी श्रीमती कुंती देवी को इस बात से संतोष है कि सात पुत्र-पुत्रियों का भरा पूरा परिवार खुशमय है। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि जो हिम्मत गोपाल भैय्या में थी वो हमारे परिवार पर बनी रहे। गोपाल भैय्या के बारे में और अधिकारी मेरे बड़े भाई कमल मित्तल के मोबाइल नम्बर 978439229 पर ली जा सकती है।
S.P.MITTAL BLOGGER

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