मैंने त्रिशूल नहीं बांटे, बच्चों के हाथ में दिए हैं-माउस और की-बोर्ड

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के भूतपूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय डॉ. पी. सी. व्यास के इस जुमले की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी थी
यह शीर्षक है राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के भूतपूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय डॉ. पी. सी. व्यास के उस बेबाक साक्षात्कार का, जो दैनिक भास्कर के अजमेर लाइव पेज पर जवाब-तलब कॉलम के अंतर्गत 20 जनवरी 2003 को प्रकाशित हुआ था। ज्ञातव्य है कि हाल ही उनका निधन हो गया। जैसे ही यह खबर सुनी तो यकायक लगा कि वे आज भी मेरे सामने साक्षात बैठे हैं। साथ ही वह साक्षात्कार भी फिल्म की भांति मेरी आंखों के आगे तैरने लगा। जवाब-तलब कॉलम में मैंने अजमेर की अनेक हस्तियों के साक्षात्कार लिए, मगर इस साक्षात्कार की गूंज दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में सुनाई दी थी।
वस्तुत: साक्षात्कार में सवाल इतने तीखे थे कि आज जब 18 साल बाद उसको पढ़ा तो सहसा यकीन ही नहीं हुआ कि मेरे जैसे सदाशयी पत्रकार ने नश्तर की तरह चुभते निर्मम सवाल कैसे कर डाले थे? एक तरह से इस साक्षात्कार में व्यास जी का पूरा व्यक्तित्व व कृतित्व उभर कर आ गया था। सकारात्मक भी और नकारात्मक भी। राजनीतिक भी, गैर राजनीतिक भी। यह कितना तीखा था, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि उसका आरंभ ही इन शब्दों से हुआ था- कम्प्यूटर युग में नवाचार के जरिये स्कूली शिक्षा को नए आयाम देकर बोर्ड अध्यक्ष डॉ. पी. सी. व्यास ने जितनी शोहरत पाई, कमोबेश उतनी आलोचना के शिकार हुए, अपनी कांग्रेसी कार्यशैली के कारण। कभी वे प्रगतिशील व दूरदृष्टा शिक्षाविद् की झलक देते हैं तो कभी उनके भीतर मौजूद घाघ राजनीतिज्ञ छिपाए नहीं छिपता। इन दो सर्वथा विपरीत व्यक्तित्वों के बीच पैंडुलम बने डॉ. व्यास अपनी हरकतों से सदैव सुर्खियों में बने रहते हैं।
बात आगे बढ़ाने से पहले यह बताना उचित समझूंगा कि दैनिक भास्कर में जवाब-तलब कॉलम तत्कालीन स्थानीय संपादक व सुप्रसिद्ध पत्रकार श्री अनिल लोढ़ा ने आरंभ करवाया था। उन्होंने स्थानीय संपादक रहते स्थानीय संस्करण में पत्रकारिता को अनेक नए आयाम दिए। असल में वर्षों पहले वे जवाब-तलब शीर्षक के नाम से एक साप्ताहिक निकाला करते थे। बाद में दैनिक समाचार पत्रों में काम करने के कारण वह अखबार बंद हो गया। जैसा उसका शीर्षक था, वैसा ही उसका मिजाज था। वे चाहते थे उसी मिजाज का यह कॉलम बने और शहर की टॉप की हस्तियों से तीखे अंदाज में सवाल-जवाब किए जाएं।
खैर, डॉ. व्यास के साक्षात्कार की बात चल रही थी। छपने के बाद वह उनको इतना भाया कि कांग्रेस हाईकमान और दिल्ली व जयपुर के राजनीतिक गलियारों तक प्रचारित किया, हालांकि उसके सारे सवाल उनको बुरी तरह से छीलने वाले थे। स्वाभाविक रूप से भास्कर की इतनी प्रतियां जुटाना संभव नहीं था, इस कारण उन्होंने हजारों फॉटो कॉपियां निकलवा कर उन्हें बंटवाया था। वस्तुत: शीर्षक इतना मारक था कि वह जहां कांग्रेस हाईकमान को बहुत अच्छा लगा, वहीं हिंदूवादियों पर सीधा हमला कर रहा था। यह वह दौर था, जब विश्व हिंदू परिषद के दिग्गज नेता श्री प्रवीण भाई तोगडिय़ा देशभर में त्रिशूल बांटने के लिए निकले थे और उसका आगाज उन्होंने राजस्थान से किया था। अजमेर में त्रिशूल वितरण कार्यक्रम के बाद जयपुर जाते समय रास्ते में तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।
स्पष्ट है कि शीर्षक के जरिए उन्होंने जो कटाक्ष किया था, वह एक तरह से विहिप की मुहिम पर कड़ा प्रहार था। कांग्रेस पृष्ठभूमि का होने के कारण ही उन्हें बोर्ड अध्यक्ष बनाया गया और उसी मानसिकता व विचारधारा को पुष्ट करने के लिए उन्होंने यह जुमला गढ़ा था।
खैर, बाद में वे जब भी अजमेर आते थे, तो मुझे जरूर याद करते थे और मिलने पर यही कहते थे कि आपने तो मुझे दिल्ली तक लोकप्रिय कर दिया।
उनकी एक आदत, जो मैंने नोट की, वो यह कि वे बातचीत के दौरान कई बार सवालियां अंदाज में आंखों की पुतलियों को तब तक ऊपर-नीचे किया करते थे, जब तक कि उनके सवाल का जवाब न दे दिया जाए। यानि कि उनकी बात पर प्रतिक्रिया न दे दी जाए। उनके निकटस्थ रहे लोगों ने यह जरूर पाया होगा।
प्रयास रहेगा कि उनका पूरा साक्षात्कार साझा करूं, ताकि आप भी समझ सकें कि एक जुमले की खातिर वे कितने धारदार सवाल झेलने को राजी थे। मैंने पूछा भी कि क्या आपका जुमला साक्षात्कार का शीर्षक बना दूं, तो वे बोले यही तो मुझे संदेश देना है।
ज्ञातव्य है कि हाल ही उनका बेंगलूरु में निधन हो गया। वे 85 वर्ष के थे। डॉ. व्यास बोर्ड में 1999 से 2004 तक अध्यक्ष रहे और राजीव गांधी स्टडी सर्किल की स्थापना के साथ बोर्ड में कई नए प्रयोग किए। उनमें प्रमुख रूप से प्रदेश के विद्यालयों में कंप्यूटर शिक्षा का आरंभ करना रहा, जिस पर विवाद भी हुआ। वे देश के सभी राज्यों के शिक्षा बोर्डों के समूह कोब्से के अध्यक्ष भी रहे थे।

-तेजवानी गिरधर
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