शुरू से ऐसे दबंग हैं भंवर सिंह पलाड़ा

भंवर सिंह पलाडा
24 जून को अजमेर की जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पतिदेव जाने-माने समाजसेवी श्री भंवर सिंह पलाड़ा का जन्मदिन है। इस मौके पर तकरीबन साढ़े दस साल पहले यानि 21 दिसंबर 2010 को अजमेरनामा में प्रकाशित वह पोस्ट यकायक ख्याल में आ गई, जो उनके मौजूदा व्यक्तित्व और कृतित्व की पृष्ठभूमि का दिग्दर्शन करवाती है।
भाजपा के सारे नेताओं को यह तकलीफ हो सकती है कि उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा भाजपा के बेनर पर वार्ड मेंबर बनीं, मगर टिकट न मिलने पर अपने समर्थक भाजपाई वार्ड मेंबर्स के अतिरिक्त कांग्रेसी मेंबर्स के सहयोग से जिला प्रमुख बन बैठीं। पर्याप्त संख्या बल होने के बावजूद टिकट न दिए जाने पर उनका यह कदम मौजूदा राजनीति के हिसाब से उचित ही प्रतीत होता है। पाटी्र्र के प्रति निष्ठा एक मुद्दा हो सकता है, मगर स्थानीय भाजपा नेताओं का उनके प्रति आरंभ से जो रवैया था, उसे देखते हुए कम से कम उन्हें तो ऐतराज करने का अधिकार नहीं है।
आइये, वह पोस्ट पढ़ कर देख लेते हैं:-
सरकार से अकेले जूझ रहे हैं पलाड़ा, सारे भाजपाई अजमेरीलाल
एक तो प्रदेश में कांग्रेस सरकार, दूसरा ब्यूरोक्रेसी का बोलबाला, दोनों से युवा भाजपा नेता भंवरसिंह पलाड़ा अकेले भिड़ रहे हैं, बाकी सारे भाजपाई तो अजमेरीलाल ही बने बैठे हैं। सभी भाजपाई मिट्टी के माधो बन कर ऐसे तमाशा देख रहे हैं, मानो उनका पलाड़ा और जिला प्रमुख श्री सुशील कंवर पलाड़ा से कोई लेना-देना ही नहीं है।
असल में जब से पलाड़ा की राजनीति में एंट्री हुई है, तभी से सारे भाजपाइयों को सांप सूंघा हुआ है। भाजपा संगठन के अधिकांश पदाधिकारी शुरू से जानते थे कि वे स्वयं तो केवल संघ अथवा किसी और की चमचागिरी करके पद पर काबिज हैं, चार वोट उनके व्यक्तिगत कहने पर नहीं पड़ते, जबकि पलाड़ा न केवल आर्थिक रूप से समर्थ हैं, अपितु उनके समर्थकों की निजी फौज भी तगड़ी है। यही वजह थी कि कोई नहीं चाहता था कि पलाड़ा संगठन में प्रभावशाली भूमिका में आ जाएं। सब जानते थे कि वे एक बार अंदर आ गए तो बाकी सबकी दुकान उठ जाएगी। यही वजह रही कि जब पहली बार उन्होंने पुष्कर विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांगा तो स्थानीय भाजपाइयों की असहमति के कारण पार्टी ने टिकट नहीं दिया। ऐसे में पलाड़ा ने चुनाव मैदान में निर्दलीय उतर कर न केवल भाजपा प्रत्याशी को पटखनी खिलाई, अपितु लगभग तीस हजार वोट हासिल कर अपना दमखम भी साबित कर दिया। उसका परिणाम यह हुआ कि दूसरी बार चुनाव में पार्टी को झक मार कर उन्हें टिकट देना पड़ा। मगर स्थानीय भाजपाइयों ने फिर उनका सहयोग नहीं किया और बागी श्रवण सिंह रावत की वजह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद भी पलाड़ा ने हिम्मत नहीं हारी।
प्रदेश में कांग्रेस सरकार होने के बाद भी अकेले अपने दम पर पत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा को जिला प्रमुख पद पर काबिज करवा लिया। जाहिर है इससे पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट, पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत सहित अनेक नेताओं की दुकान उठ गई है। भाजपा के सभी नेता जानते हैं कि पत्नी के जिला प्रमुख होने के कारण उनका नेटवर्क पूरे जिले में कायम हो चुका है और जिस रफ्तार से वे आगे आ रहे हैं, वे आगामी लोकसभा चुनाव में अजमेर सीट के सबसे प्रबल दावेदार होंगे। कदाचित इसी वजह से कई भाजपा नेताओं को पेट में मरोड़ चल रहा है और वे शिक्षा मंत्री व जिला परिषद की सीईओ शिल्पा से चल रही खींचतान को एक तमाशे के रूप में देख रहे हैं। हर छोटे-मोटे मुद्दे पर अखबारों में विज्ञप्तियां छपवाने वाले शहर व देहात जिला इकाई के पदाधिकारियों के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा है कि प्रदेश की कांगे्रस सरकार राजनीतिक द्वेषता की वजह से जिला प्रमुख के कामकाज में टांग अड़ा रही है। ऐसे विपरीत हालात में भी दबंग हो कर पूरी ईमानदारी से जिला प्रमुख पद को संभालना वाकई दाद के काबिल है।
बहरहाल, दूसरी बार जिला प्रमुख पद पर काबिज होने के बाद जिस बिंदास तरीके से पतिदेव के सहयोग से श्रीमती पलाड़ा काम कर रही हैं, वह सबके सामने है, और स्थानीय भाजपाई सदके में हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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