गजब का जूनून और बेमिसाल जज़्बा बना विरासत की पहचान

b l samra
हमारे राजसमन्द जिले की शान में चार चांद लगाने वाले भारतीय जीवन बीमा निगम के सेवा निवृत्त अधिकारी ने अपने बहुआयामी व्यक्तित्व से हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के वारिस बनकर उसके संरक्षण में जो अनूठा योगदान किया है, काबिले तारीफ है । हम इनके जज्बे जूनून और साहस को दिल से सलाम करतें हैं । वे एक समर्पित और निष्ठावान अधिकारी के रूप में सदैव कार्यरत रहे ।प्रलोभन और धमनियों को नजरअंदाज करते हुए ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन किया, इस कारण वे अपने कार्य क्षेत्र में किसी पहचान के मोहताज नहीं रहे । अपने विद्यार्थी जीवन से रचनात्मक लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र सक्रिय रहकर अन्याय के खिलाफ संघर्ष में अग्रणी रहे और भारतीय जीवन बीमा निगम के साथ विपणन, प्रशिक्षण एवं प्रशासनिक क्षेत्र में अभिकर्ता, विकास अधिकारी , शाखा प्रबंधक और प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अपनी भूमिका सफलता पूर्वक निर्वहन करने के साथ राजभाषा अधिकारी तथा विभिन्न प्रशिक्षण केंद्र पर संकाय सदस्य के रुप में बतौर प्रशिक्षक भी ड्यूटी को अंजाम दिया और इन सबके साथ पचास वर्षों से हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के विविध अवशेष और अभिलेख इत्यादि का विपुल संग्रह जुटाने का उल्लेखनीय योगदान का उत्कृष्ट कार्य भी संपादित किया ।उनके इस क्षेत्र में किये गए विशिष्ठ योगदान के कई जिला मुख्यालय पर इन्हें सम्मानित किया गया ।
हम आपकी मुलाकात करवा रहे हैं,हमारे जिले राजसमन्द की एक मशहूरशख्सियत श्री बीएलसामरा से ,जो भारतीय जीवन बीमा निगम के निवर्तमान प्रशासनिक अधिकारी है और हाल ही मंडल कार्यालय अजमेर से सेवानिवृत्त हुए हैं । अपने विद्यार्थी जीवन से ही सक्रिय पत्रकारिता से जुड़े रहे सामरा ने छात्र जीवन में एक साप्ताहिक और एक पाक्षिक समाचार पत्र का संपादन किया ।
रचनात्मक लेखन और राजभाषा हिंदी से गहरा लगाव रखने वाले सामरा पत्रकारिता एवं साहित्य क्षेत्र में सुरेंद्र नीलम के नाम से पहचान रखते हैं और अपनी एक विशिष्ट अभिरुचि के कारण अपने कार्य क्षेत्र में मिली व्यापक शोहरत के कारण आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है ।वे पिछले 50 वर्षों से हमारी सांस्कृतिक धरोहर से संबंधित सामग्री का संचालन कर रहे हैं ।
राजस्थान के मेवाड़ अंचल में राजसमंद जिले के एक छोटे से गांव आसन ठीकरवास में 8 जून 1958 को एक सामान्य वणिक परिवार में जन्मे सामरा 11 वर्ष की आयु में जब छठी कक्षा के विद्यार्थी थे , तभी परिवार में घटी एक छोटी सी घटना ने बालक सामरा के जीवन की दिशा बदल कर रख दी तथा जीवन का मकसद और मिशन तय कर दिया
हुआ यह था कि इनके दादा जी ने जो मेवाड़ की रियासत में कामदार थे ,इन्हें एक तांबे का पुराना पैसा दिया जिसको अपनी बाल सुलभ बुद्धि से इन्होंने अनुपयोगी मांग कर फेंक दिया । उनके दादा जो यह सब देख रहे थे ,उन्होंने प्यार भरी डांट लगाते हुए इन्हें अपने पास बुलाया और पूछा कि पैसे को क्यों फेंक दिया इस पर उन्होंने जवाब दिया कि यह पैसा पुराना और खोटा है तो दादा ने उनके सिर पर हाथ फेरकर नसीहत देते हुए कहा बेटे ! पैसा पुराना हो गया तो क्या हुआ मगर पैसा लक्ष्मी का रूप होता है और उसको फेंक कर उस की बेकद्री नहीं करना चाहिए उन्होंने फिर आगे कहा कि दुनिया में ईश्वर ने ऐसी कोई चीज नहीं बनाई है जो फिजूल और फालतू है । कुदरत ने जो कुछ भी इस दुनिया मे बनाया है, उस सबकी अपनी उपयोगिता है ।भले ही हम नहीं जानते मगर धरती का एक एक कण और वनस्पति का एक तिनका भी औषधि हो सकता है । दादा जी ने उन्हें समझाया ईश्वर की बनाई हुई इस दुनिया में कुछ भी फिजूल और फालतू नहीं है ,
अगर हमें हिफाजत करें तो एक कोडी की चीज भी करोड की बन सकती है और हिफाजत नहीं करें तो करोड़ की चीज भी कौड़ी की बन जाती है । भले ही हमें समझ और जानकारी नहीं है पर दुनियां में जिस किसी चीज का अस्तित्व है ,उस सबकी अपनी उपयोगिता है ।किसी वनस्पति का एक तिनका भी औषधि हो सकता है और इस वसुंधरा पर मिट्टी का एक एक कण और कंकड़ पत्थर की भी अपनी उपयोगिता है ।भले ही हम उसके बारे में नहीं जानते और उसे बेकार और फालतू मानकर
कूड़ेदान या कबाड़ीके हवाले कर देते हैं मगर कभी कचरा और कूडा समझे जाने वाली सामग्री भी हमारी विरासत और धरोहर का हिस्सा हो सकती है ।जब कूडा भी कंचन में बदल सकता है अगर हम समझदारी और हिफाजत से चीजो का संरक्षण किया जाए । बस फिर क्या था
दादा जी की डांट भरी नसीहत ने सामरा के जीवन का मकसद निर्धारित कर दिया और उन्होंने इसे जुनून के साथ अपने शौक और अभिरुचि सहित अपना मिशन बना दिया और आप एक पारखी की तरह पिछले 50 वर्षों से हमारी सांस्कृतिक धरोहर से संबंधित सामग्री का संचय करने में जी जान से जुटे हुए हैं ।आज इनके संग्रहमेंसैकड़ोपांडुलिपियां , स्टैंप पेपर पोस्टकार्ड एवं विविध डाक सामग्री और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी प्रत्येक वह सामग्री जिससे हमारी बुजुर्गों की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की झलक मिलती है ,उसका संग्रह करने में जी जान से जुटे हुए है। आजउनकेसंग्रहमेंसैकड़ों,घड़ियां ,ताले , हस्तलिखित पांडुलिपियां बेहतरीन किताबें सिक्के डाक टिकट पोस्टकार्ड स्टांप पेपर तथा हमारे बुजुर्गों की कला साधना के विविध नमूने , रियासतकालीन राजकीय पत्र व्यवहार , जन्म कुंडलियां जो 20 -25 फीट लंबी है, कलम दवात, लेखन सामग्री पेन स्टैंड ,लेम्प स्टैंड , इत्र की खूबसूरत बोतलें , इत्रदान फूलदान आदि सैकड़ों वस्तुओं के बेहतरीन नमूनों का नायाब खजाना है। इनकी श्रमसाधना , इच्छाशक्ति और एक निष्ट संकल्प सहित अनवरत अग्रसर जीवन यात्रा , आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है । श्री सामरा विरासत के वारिस बनकर उसकी हिफाजत के लिए जी जान से जुटे हुए हैं ।हम इनके इस जज्बे ,साहस और जुनून को सलाम करते हैं ।

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