नानकराम जगतराय को कैसे मिला था टिकट?

आपको याद होगा कि स्वर्गीय श्री नानकराम जगतराय को अजमेर पष्चिम विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस का टिकट मिला था और उन्होंने भाजपा के स्वर्गीय श्री लक्ष्मणदास माचिसवाला को हराया था। इस चुनाव में तत्कालीन काबिना मंत्री श्री बी डी कल्ला प्रभारी थे। उनका सहयोग पूर्व विधायक डॉ के सी चौधरी कर रहे थे। राज्य सरकार के अधिसंख्य मंत्रियों ने चुनाव प्रचार के लिए वार्डवार जिम्मेदारी संभाली थी और कांग्रेस ने यह सीट जीती थी।
असल में यह सीट तत्कालीन काबीना मंत्री स्वर्गीय श्री किषन मोटवानी के निधन से खाली हुई थी। उस वक्त कांग्रेस के लिए समस्या ये थी कि उसके पास षहर स्तर कोई भी सषक्त सिंधी दावेदार नहीं था। जो थे वे वार्ड स्तर के थे। नानकराम का कद भी पार्षद स्तर का ही था, लेकिन वे मिलनसारिता और सहज सुलभता की वजह से लोकप्रिय थे।
अब बात करते हैं कि टिकट के लिए नानकराम का चयन कैसे हुआ? हालांकि उन्हें टिकट दिलवाने का कई लोग श्रेय ले सकते हैं, लेकिन इस सिलसिले एक राज मेरे दिल में दफन है, जो आपसे साझा कर रहा हूं। मैं यह कत्तई दावा नहीं करता कि उन्हें टिकट दिलवाने में अकेली मेरी ही भूमिका थी।
स्वाभाविक रूप से कई पैमानों पर जांचने-परखने के बाद उन्हें टिकट दिया गया होगा।
खैर, असल बात पर आते हैं। हुआ यूं कि उन दिनों मैं दैनिक भास्कर में सिटी चीफ के पद पर काम कर रहा था। तत्कालीन अतिरिक्त जिला कलेक्टर, जिनका नाम उजागर करना उचित नहीं होगा, का फोन आया कि मुख्यमंत्री श्री अषोक गहलोत ने तीन सिंधी दावेदारों का पैनल मंगवाया है और अभी तुंरत भेजना है। चूंकि आपकी राजनीति पर अच्छी पकड है, लिहाजा आप बेहतर बता सकते हैं कि कौन कौन सिंधी नेता जीतने के काबिल हैं। यहां ये बताना प्रासंगिक है कि वे मुख्यमंत्री के करीबी थे।
मैने अपनी समझ के हिसाब से नानकराम के अतिरिक्त दो नाम सुझाये। उन्होंने वह पैनल भिजवा दिया। बेषक मेरी सलाह उस वक्त अत्यंत गोपनीय थी, लेकिन चूंकि अपने आप में यह एक खबर भी थी, इस कारण मैंने वह खबर प्रकाषित कर दी। खबर पढ कर नानकराम तो भौंचक्क ही रह गए। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि उनका नाम पैनल में षामिल किया जाएगा। उनका कोई मानस या तैयारी भी नहीं थी। नानकराम का फोन आया कि ये खबर कहां से आई। क्या ये सच है? मैने पूरा वाकया उनको सुना दिया। उन्होंने अपनी दावेदारी को गंभीरता से लिया और उसी दिन उन्होंने जयपुर की राह पकडी। अपने राजनीतिक संपर्कों का इस्तेमाल किया और टिकट हासिल करने में कामयाब हो गए। जीत भी गए। असल में वे जमीन से जुडे नेता थे, जबकि लक्ष्मणदास माचिसवाला संपन्न थे। हालांकि कांग्रेस की एडी चोटी की मषक्कत की तो नानकराम की जीत में अहम भूमिका रही ही, लेकिन साथ ही उनकी खुद की सरल व ईमानदार नेता की छवि भी काम आई।
प्रसंगवष बता दें कि उन्होंने विधायक के तौर पर पूरी ईमानदारी के साथ काम किया। सरल स्वभाव की स्थिति ये थी कि रोडवेज की बस से जयपुर जाया करते थे। एक बार बस स्टैंड से तांगे में बैठ कर आए तो इस खबर ने सुर्खियां बटोरी। ईमानदारी मिसाल ये कि एक बार बातचीत में मुझसे जिक्र किया कि उनके मोती कटला स्थित छोटे से ऑफिस में लगे टेलीफोन का उपयोग हर कोई करता है और टेलीफोन का बिल इतना आने लगा है कि उसे चुकाना ही भारी पड रहा है। हालांकि विधायक के नाते उन्हें टेलीफोन पेटे राषि मिलती है, मगर वह काफी कम है।
उनकी सबसे खास बात ये थी कि उन्होंने किसी को डिजायर के लिए मना नहीं किया। कई लोगों के काम भी हुए।
एक बात और याद आ गई। एक बार मुख्यमंत्री गहलोन ने कहीं ये बयान दिया कि उन्हें जीतने के लिए एक सौ एक नानकराम चाहिए। इसी बयान ने उनमें दंभ भर दिया। उन्हें ख्याल था कि दूसरी बार भी उन्हें हाईकमान बुला कर टिकट देगा, इस कारण हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और श्री नरेन षहाणी टिकट लाने में कामयाब हो गए। नानकराम को उनके षुभ चिंतकों ने लोकप्रियता के दम पर निर्दलीय लडने की सलाह दी। हालांकि दिल्ली से अजमेर आए कांग्रेस के बडे नेताओं ने सरकार बनने पर यूआईटी का चेयरमैन पद ऑफर किया, मगर वे नहीं माने। उन्हें तकरीबन छह हजार से कुछ अधिक वोट ही मिले और कांग्रेस के नरेन षहाणी भाजपा के टिकट पर पहली बार मैदान में उतरे प्रो वासुदेव देवनानी से मात्र ढाई हजार वोटों से हार गए। इस लिहाज से यह माना जा सकता है कि नरेन षहाणी भगत की हार में नानकराम की ही भूमिका रही। देवनानी एक बार क्या जीते वे तो धरतीपकड की तरह लगातार तीन और चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन जानकारी है कि वे पांचवीं बार भी ताल ठोकने के मूड में हैं।

-तेजवानी गिरधर
7742067000, 8094767000

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