बदलते समीकरणों में सुरेष टाक एडीए चेयरमेन के प्रबल दावेदार

हालांकि जब से एडीए चेयरमेन पर नियुक्ति को लेकर चर्चा चल रही है, तब से किषनगढ के निर्दलीय विधायक सुरेष टाक का नाम भी दावेदारों की फेहरिष्त में षामिल है। हालांकि वे बहुत गंभीर नहीं माने जा रहे थे। लेकिन बदले समीकरणों में उनको प्रबल दावेदार माना जा रहा है। असल में राज्य मंत्रीमंडल विस्तार के साथ यह चर्चा आम है कि वे विधायक जिन्होंने मुख्यमंत्री अषोक गहलोत को सरकार बचाने में मदद की, उन्हें मंत्री पद न दे पाने के बाद किसी और तरीके से उपकत करने पर विचार किया जा रहा है। ऐसे विधायकों को या तो संसदीय सचिव बनाया जाएगा या किसी बोर्ड या आयोग की जिम्मेदारी दी जाएगी। इस लिहाज से टाक को अजमेर विकास प्राधिकरण का सदर बनाए जाने की प्रबल संभावना बताई जा रही है। बताते हैं कि खुद उनकी रुचि भी इस नियुक्ति में है, ताकि अपने विधानसभा क्षेत्र की बेहतर सेवा कर सकें। ज्ञातव्य है कि प्राधिकरण के क्षेत्र में किषनगढ भी षामिल है। उसका एक लाभ ये होगा कि इस माध्यम से वे अपने राजनीतिक भविष्य का ताना बुनने में कामयाब हो सकेंगे।
हालांकि अब तक राजस्थान स्टेट सीडृस कारपोरेषन लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड को ही नंबर वन दावेदार माना जाता रहा है लेकिन न जाने यह चर्चा कहां से आई है कि एडीए चेयरमेन का पद उनके कद के अनुरूप नहीं है। वे किसी राज्य स्तरीय आयोग या बोर्ड की जिम्मेदारी चाहते हैं इस कारण एडीए में रुचि नहीं ले रहे।
यदि मुख्यमंत्री चाहेंगे तो टाक को अध्यक्ष बनाने में कोई दिक्कत नहीं आने वाली है लेकिन मुख्यमंत्री के ही करीबी पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया को यह नागवार गुजरेगा। अगर एडीए के जरिए टाक मजबूत होते हैं तो उसे भला सिनोदिया व अन्य प्रमुख कांग्रेसी नेता कैसे बर्दाष्त कर सकते हैं।
एक पहलु ये भी है कि टाक को ऑब्लाइज करने से कांग्रेस को आगे चल कर क्या फायदा होने वाला है। वे मूलतः भाजपा मानसिकता के हैं। इस कारण कांग्रेस में तो षामिल होंगे नहीं। अगले चुनाव में भाजपा का टिकट ही लेना चाहेंगे। वैसे भी उनके निजी समर्थकों में भाजपा मानसिकता के मतदाता अधिक हैं। एक बात ये भी कही जा रही है कि ताजा हालात में उन्हें किसी पद से नवाजने की कोई मजबूरी तो है नहीं। सरकार बहुत मजबूत है। यह ठीक है कि उन्होंने कांग्रेस सरकार का साथ दिया मगर उसी के साथ किषनगढ के विकास में सरकार का साथ भी तो ले लिया।
बेषक सरकार बनाते समय उनकी गरज रही मगर उससे कहीं अधिक उनकी गरज रही क्योंकि निर्दलीय रह कर सरकार से अपेक्षित लाभ नहीं उठा सकते थे।
इस मसले का एक पहलु ये भी है कि पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ समझौते के तहत उनकी पसंद के विधायकों को मंत्री पद मिल चुका है। अन्य राजनीतिक व सांगठनिक नियुक्तियों में भी उनकी हिस्सेदारी होगी। जो जिले उनके हिस्से में होंगे उनमें यदि अजमेर भी षामिल हुआ तो टाक के लिए एडीए अध्यक्ष बनना कुछ कठिन होगा।
रहा सवाल अन्य दावेदारों का तो पूर्व विधायक डॉ श्रीगोपाल बाहेती, पूर्व विधायक डॉ राजकुमार जयपाल, अजमेर दक्षिण चुनाव लड चुके हेमंत भाटी व अजमेर उत्तर से चुनाव लड चुके महेन्द्र सिंह रलावता के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे है। पारिवारिक पश्ठभूमि के दम पर जयपाल ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। अगर पायलट की चली तो भाटी का नंबर आ सकता है। बताते हैं कि रलावता की ज्यादा रुचि अगले चुनाव में है। ऐसा भी हो सकता है कि बाहेती को अगले चुनाव में टिकट न मिलने की संभावना के चलते गहलोत उन्हें उपकत कर सकते हैं। वैसे भी सभी दावेदारों में व उनके करीबी हैं। सच बात तो ये है कि पिछले पैंतीस साल से वे ही उनके नंबर वन झंडाबरदार हैं।
खैर, इस सब बातों के बावजूद फिलवक्त माना जा रहा है कि राठौड के अतिरिक्त टाक सबसे प्रबल दावेदार बन चुके हैं। कुछ लोगों का मानना है कि जल्द की उनमें से एक की नियुक्ति का ऐलान हो जााएगा।

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