धर्मेन्द्र राठौड के दोनों हाथ में लड्डू

आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ कौतुहल का विशय बने हुए हैं। जितने मुंह उतनी बातें। कोई उनकी अजमेर से रूखसती होने की बात कर रहा है तो कोई यहीं धरती पकड बनने का दावा कर रहा है। जो कुछ भी हो, अपनी अनुस्थति के बाद भी चर्चा में बने रहना उनकी कामयाबी ही कही जाएगी। आइये जानने की कोषिष करते हैं, उनके भावी राजनीतिक भविश्य के बारे में। आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ की अजमेर में सक्रियता एक गुत्थी सी बनी हुई है। कांग्रेस कार्यकर्ता असमंजस में हैं। कुछ लोग मानते हैं कि उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए अलवर का पर्यवेक्षक बनाए जाने के बाद यहां ज्यादा गतिविधियां नहीं कर पाएंगे। वे यह समझते हैं कि विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने के बाद अन्यत्र पर्यवेक्षक बनाए जाने से उनका अजमेर से निर्वासन हो गया है। अगर चुनाव में कांग्रेस जीती तो निर्वाचित सांसद उन्हें अजमेर की राजनीति में फिर प्रवेष करने में बाधक बनेगा। उनके विरोधियों के लिए यह संतोशजनक है, लेकिन उनकी ओर से यहां बनाया गया समर्थक समूह अब भी आषावान है। उन्हें लगता है कि चुनाव के बाद वे फिर सक्रिय होंगे। वे अब भी उनके सम्पर्क में हैं। हों भी क्यों नहीं, उन्होंने उनको उपकत जो किया हुआ है। तर्क ये है कि उनका जन्म स्थल पुष्कर के निकट नांद गांव है। मंगलवार को अपने पैतक गांव जाते वक्त अजमेर में अल्प प्रवास के दौरान उनके समर्थकों ने उनका स्वागत किया। वे कार्यकर्ताओं से संवाद भी करेंगे। दूसरी ओर उनके विरोधी मानते हैं कि वे बाहरी हैं, इसलिए स्वीकार्य नहीं हैं। सवाल यह है कि जब वे अजमेर में दरबार लगा कर अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे, विरोधी उनका क्या बिगाड पाए। उस वक्त स्थानीय कांग्रेसी क्या कर रहे थे? एकजुट क्यों नहीं हुए? मठाधीष तक पलक पांवडे बिछाये हुए थे। हकीकत तो ये हैं कि जयपुर के एक कार्यक्रम के लिए जो बैठक षहर अध्यक्ष को करनी थी, वह उन्होंने आयोजित की। अधिसंख्य नेता उसमें षामिल थे। यह एक कडवा या मीठा सच है कि उन्होंने तो अजमेर उत्तर पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था। संगठन का पूरा ढांचा उनकी मुट्ठी में था। ब्लॉक अध्यक्ष से लेकर बूथ तक उनकी पकड थी। जाहिर तौर उनकी तैयारी यहां से चुनाव लडने की ही थी। यह दीगर बात है कि उन्हें टिकट नहीं मिल पाया। वस्तुतः मुख्यमंत्री अषोक गहलोत के करीबी होने के कारण बहुत प्रभावषाली थे। उनका विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी। खैर, ताजा स्थिति यह है कि अजमेर में तो उन्होंने टांग फंसा ही रखी है, अलवर में नई टीम बनाने का मौका मिल गया है। यानि दोनों हाथ में लड्डू है।

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