अनिता भदेल ने फालतू ही पंगा ले लिया?

अजमेर में लोकसभा चुनाव की पहली तैयारी बैठक से विधायक श्रीमती अनिता भदेल का बहिश्कार बहुत अधिक सुर्खियों में है। भिन्न भिन्न मत हैं। कोई उनकी नाराजगी को जायज ठहरा रहा है तो कोई इसे गलत अवसर पर उठाया गया कदम मान रहा है। कोई कहता है कि नाराजगी के परिणाम स्वरूप शहर उपाध्यक्ष घीसू गढ़वाल के खिलाफ कार्यवाही होगी तो कोई कहता है कि उनकी इस हरकत को अनुचित मान कर भाजपा हाईकमान गंभीरता से लेगा। कुछ इसको मंत्री न बनाए जाने की वजह से हुई नाराजगी का गुबार निकलने की संझा दे रहे हैं तो कुछ को भाजपा के अंदरखाने पनप रहे असंतोश के दर्षन हो रहे हैं। गुस्से की एक वजह ये भी हो सकती है कि अफसरों को इधर उधर करने के मामने में देवनानी की चवन्नी एक रूपये में चल रही है, जबकि उनकी कोई पूछ नहीं हो रही। प्रषासन भी देवनानी को अतिरिक्त तवज्जो दे रहा है। जरा सोचिये, अनुसूचित जाति की पांच बार जीती हुई विधायक का नाम मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप उभरा हो, जो उपमुख्यमंत्री बनते बनते रह गई, उसे मंत्री तक न बनाया गया हो, तो उस पर क्या गुजरी होगी? क्या इससे अनुसूचित जाति के लोगों पर बुरा असर नहीं पडेगा?
सवाल यह भी उठ रहा है कि उन्होंने किसके दम पर इतना बडा कदम उठा लिया। कुल जमा लगता यही है कि जैसे ही उन्होंने चुनाव में उनके खिलाफ काम करने वाले गढवाल को देखा तो वे अपने गुस्से पर काबू में नहीं रख पाईं। यहां तक कि मौके की नजाकत को भी भूल गईं। उनके बेकाबू गुस्से का जायका पूर्व में भी चखा जा चुका है। इस सिलसिले में यह राय सामने आई है कि पांच बार लगातार जीतने से उनका जो कद बना है, गढवाल को इतनी तवज्जो देने की जरूरत नहीं थी। जरा सब्र रखना चाहिए था। अनिता की हरकत को संभव है उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी जायज गुस्सा मान कर गंभीरता से न भी लें, मगर अनुषासन समिति के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत हल्के में नहीं लेंगे। वैसे भी एक तरह से अनिता ने गढवाल के बहाने लखावत की कार्यविधि पर सवाल उठाया है। लखावत को जानने वालों का पता है कि वे अपनी असहजता का बदला ठंडा करके चुकाते हैं। वे अनिता भदेल के रग रग से जानते हैं, क्योंकि कभी उनके बहुत करीब हुआ करती थीं। वैसे जानकारी यह भी आ रही है कि गढवाल ने अपना पक्ष रखते हुए यह साबित करने का प्रयास किया है कि उन्होंने कोई भीतरघात नहीं की। कदाचित लखावत उनकी दलीलों से सहमत हुए हों, इसी कारण उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं की हो। वासुदेव देवनानी के मामले में तो सुभाश काबरा व जे के षर्मा की बगावत तो जगजाहिर थी, इस कारण उनके खिलाफ कार्यवाही तुरंत हो गई। कुछ लोग गढवाल के खिलाफ कार्यवाही होने को भदेल-देवनानी की चिर स्थाई नाइत्तफाकी से जोड कर देख रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि षहर भाजपा अध्यक्ष रमेष सोनी देवनानी के षागिर्द हैं।
कुल जमा आम धारणा यह है कि भले ही उनका गुस्सा जायज हो, मगर जिस अवसर पर उन्होंने अपनी नाराजगी दर्षाई, उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पडेगा। दूसरा यह भी कि आसन्न लोकसभा चुनाव के समय पर नाराज नेताओं को मनाने का दौर चलेगा, तो माली समाज के प्रभावषाली नेता गढवाल के खिलाफ कार्यवाही की उम्मीद कम ही है। जानकार ताजा प्रकरण को अनिता की हाडा दंपत्ति से नाइत्तफाकी से जोड कर भी देख रहे है।

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