अजमेर में ऐसे मनाई जाती रही कृष्ण जन्माष्ठमी

शिव शंकर गोयल
देश के अन्य भागों की तरह अजमेर के धर्मावलम्बी भी भादवां बदी अष्टमी को श्री कृष्ण जंमाष्टमी मनाते आएं है. शहर के कई मंदिरों में यह उत्सव बडे उत्साह के साथ मनाया जाता था, विशेष तौर पर पट्टी कटला, घास कटला, कड्डका चौक आदि में तरह तरह की झांकियां बनाई जाती थी. इसी तरह डिग्गी बाजार के ठठेरा चौक स्थित रामायण मंडल में यह त्यौहार नाटक मंचन के साथ मनाया जाता था.
इस त्यौहार पर यहां की सांस्कृतिक संस्था दो दिनों तक श्री कृष्ण जंम संबंधी नाटक का आयोजन भी करती थी. जंमाष्टमी के एक रोज पहले यह नाटक सिर्फ महिला दर्शकों के लिए होता था तथा जंमाष्टमी के रोज सभी दर्शकों के लिए होता था.
नाटक का समय (रात्रि में) ऐसा रखा जाता था कि समापन होतो होते रात्रि के बारह बज जाय और फिर कृष्ण भगवान के जंम की लीला दिखाई जाय. बाद में सभी को चरणामृत और पंजीरी का प्रसाद बांटा जाता था. नाटक में मुख्यत: वासुदेव-जानकी के विवाह एवं बिदाई, उसी समय आकाशवाणी द्वारा, कंस के लिए, यह घोषणा होने कि इनकी आठवी संतान द्वारा तुम्हारा (कंस का) वध होगा, कंस का क्रुध्द होकर देवकी को मारने का प्रयास करना और फिर वासुदेवजी द्वारा कंस को यह विश्वास दिलाने पर कि वह अपनी होने वाली संतानों को कंस को सौंप देंगे, कंस का उन्हें जेल में डालना, जेल में ही श्री कृष्ण का जंम और फिर वासुदेवजी का ऊफनती यमुना को पार कर उन्हें चुपके चुपके गोकुल लेजाना आदि सीन दिखायें जाते थे.
कहना न होगा कि नाटक के सभी कलाकार मंजे हुए होते थे. उनमें भी एक प्रमुख थे श्री रोबिन मास्टर. यह बंगाली बंधु थे और नाटक में कंस बना करते थे. यह मेक-अप करने में भी माहिर थे तथा उसरी गेट-रावण की बगीची पर भरने वाले दशहरे के रामलीला के पात्रों का मेक-अप यही किया करते थे.
उल्लेखनीय है कि रामायण मंडल सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है. यहां पाठशाला भी चलती थी और समय समय पर शहर के साहित्यकारों की काव्य गोष्ठियां होती रहती थी.

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