कही छुपा ऐजेन्डा तो नही ? हास्य-व्यंग्य

शिव शंकर गोयल
खबर है (दै. भास्कर, पूना दि.26.8.24) कि महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में एक ऐसा सैलून है, जहां दाढी बनवाने या फिर बाल कटवाने से पहले, वहां रखी किताब पढना अनिवार्य हैं. जब तक आप सैलून में बैठकर किसी किताब के कुछ पन्नें नही पढ लेते, आपको इस सैलून में कोई सेवा नही मिलेगी.
अपने में से कइयों को ज्ञात होगा कि बहुत समय पहले, जब सैलून को बारबर या समझियें हरिराम नाई (फिल्म शोलें वाला) की दुकान के नाम से जाना जाता था, तब वहां ईलाहाबाद से प्रकाशित मनोरमा प्रकाशन की मनोहर कहांनियां मासिक पत्रिका आया करती थी.
एक बार शुरू-शुरू में मेरा जब वहां जाना हुआ तो अपनी बारी का इंतजार करते समय मुझें वह पत्रिका पढने के लिए दी गई. मेरे झिझकने पर बारबर ने जोर देकर कहा कि भाई साहब आप इसे पढियें. मेरे द्वारा बार बार खोदकर पूछने पर भी उसने यही कहा कि यह “राज” की बात है. वह तो बाद में किसी जानकार ने रहस्योदघाटन किया कि इस पत्रिका में जासूसी, सनसनीखेज, कहांनियां होती हैं जिसको पढने से रोमांच से आपके बाल खडे हो जायेंगे, जिसे बारबर को काटने में आसानी होगी. उस रोज छुपे ऐजेन्डें का रहस्य समझ में आया. वैसै भी मुझें मतलब की बात समझने में टैम लगता है. क्या करूं ?

error: Content is protected !!