अंतहीन है दरगाह दीवान और खादिमों का विवाद

दरगाह में महफिल की सदारत करते दरगाह दीवान

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान और ख्वाजा साहब के सज्जादानशीन सैयद जेनुअल आबेदीन और खादिमों के बीच वर्षों से चल रहा विवाद अंतहीन है। किसी न किसी बहाने ये विवाद आए दिन उभरता है। हाल ही दीवान की ओर से जारी एक बयान पर बवाल हुआ है।
जैसे ही दरगाह दीवान ने यह बयान जारी कर कहा कि फिल्मी कलाकारों, निर्माता और निर्देशकों द्वारा फिल्मों और धारावाहिकों की सफलता के लिए गरीब नवाज के दरबार में मन्नत मांगना शरीयत और सूफीवाद के मूल सिद्धांतों के खिलाफ और नाकाबिले बर्दाश्त है तो खादिमों ने उस पर कड़ी प्रतिक्रिया की।
दीवान ने कहा कि दरगाह शरीफ का इस्तेमाल आस्था और अकीदत के बजाय व्यावसायिकता, प्रचार-प्रसार और ख्याति प्राप्त करने के लिए किया जाना नाजायज है। इसलिए फिल्मी हस्तियों, निर्माता और निर्देशकों को धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले ऐसे किसी भी कार्य से परहेज करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों और शरीयत के जानकारों की खामोशी चिंताजनक है।
ख्वाजा साहब आध्यात्मिक संत थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन कुरान और इस्लामी शरीयत को आत्मसात करके लोगों को कानूने शरीअत के मुताबिक जिंदगी बसर करने का संदेश दिया। इस्लाम में नाच गाने, चित्र, चलचित्र, अश्लीलता को हराम करार दिया गया है। गरीब नवाज ने लोगों को इन सामाजिक बुराइयों से दूर रहकर शरीयत के मुताबिक इबादत इलाही में व्यस्त रहने की हिदायत दी। आज गरीब नवाज के मिशन को दरकिनार करके उनके दरबार में इन गैर शरई कार्यों के लिए मन्नतें मांगी जा रही हैं । फिल्में रिलीज करने से पहले मजार पर पेश की जाकर फिल्म की कामयाबी के लिए दुआएं की जा रही हैं।
हालांकि दीवान ने सीधे तौर पर खुद्दाम हजरात पर कोई टिप्पणी नहीं की, मगर तुरंत उनकी ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आ गई। खादिमों की रजिस्टर्ड संस्था अंजुमन सैयद जादगान के पूर्व सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि दीवान का बयान सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा मात्र है। दीवान अपने दरगाह का मुखिया प्रदर्शित करना चाहते हैं, जबकि दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के मुताबिक खादिम, दरगाह दीवान और दरगाह कमेटी के अपने कार्यक्षेत्र हैं। एक्ट के मुताबिक दरगाह दीवान कमेटी के मुलाजिम हैं और 200 रुपए महीना वेतन हैं।
इसी प्रकार अंजुमन शेख जादगान के सह सचिव एस नसीम अहमद चिश्ती का कहना है कि ख्वाजा साहब का दरबार सभी 36 कौमों के लिए है। मन्नत और दुआ पर आपत्ति सही नहीं है। अमूमन फिल्मी हस्तियों को जियारत करवाने वाले खादिम सैयद कुतुबुद्दीन चिश्ती ने कहा कि ये दीवान का मीडिया स्टंट मात्र है। ख्वाजा साहब के दरबार में कोई भेदभाव नहीं है। हर आने वाला अपनी मुराद लेकर आता है। अंजुमन सैयद जादगान के मौजूदा सचिव सैयद वाहिद हुसैन अंगाराशाह ने प्रतिक्रिया दी कि मुराद और दुआ व्यक्ति के निजी मामले हैं। कौन क्या मांग रहा है, यह कैसे तय किया जा सकता है। उर्स में दरगाह दीवान साहब के मकान के आसपास खासी तादाद में किन्नर ठहरते हैं, दीवान साहब उनकी हरकतों को ही रुकवा दें।
कुल मिला कर खादिमों का पूरा जोर इस बात पर है कि दीवान को जियारत के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वे कोई दरगाह के मुखिया नहीं है, महज दरगाह कमेटी के मुलाजिम हैं। हालांकि यूं तो खादिमों की ओर से कई बार यह बात आती रही है कि दीवान ख्वाजा साहब के वंशज नहीं है, जैसा कि वे अपने आपको बताते हैं, मगर इस बार कदाचित इस बात से बचते हुए यही कह रहे हैं कि वे कमेटी के मुलाजिम मात्र हैं।
असल में यह विवाद काफी पुराना है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में दरगाह दीवान को ख्वाजा साहब का निकटतम उत्तराधिकारी माना है, मगर इसे कम से खादिम समुदाय मानने को तैयार नहीं है। वो इसलिए कि दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के तहत साथ ही उसकी नियुक्ति प्रक्रिया में दरगाह कमेटी का भी दखल है। बस यही है विवाद की जड़। और इसी वजह है कि आए दिन टकराव होता रहता है। इस बारे में कुछ जानकारों की राय है कि चूंकि एक्ट 1955 में बना है, जबकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला 1987 का है। इस कारण वह फैसला एक्ट से ज्यादा प्रभावकारी है। मगर मामले में पेच तो है ही। इसी को लेकर एक बार इस बात पर विवाद हो चुका है कि दीवान साहब के बेटे नसीरुद्दीन उनके कार्यवाहक अथवा उत्तराधिकारी नहीं माने जा सकते क्योंकि दीवान की नियुक्ति दरगाह कमेटी करती है।
हुआ यूं था कि दीवान की अस्वस्थता के कारण उर्स के दौरान जब उनके बेटे गुसल की रस्म में आए तो खादिमों को ऐतराज था। उनका कहना था कि मौजूदा दरगाह दीवान की गैर मौजूदगी अथवा पद खाली होने पर अंतरित व्यवस्था दरगाह कमेटी को करनी चाहिए, वंश परंपरा के अनुसार उनके बेटे को गुसल के समय मौजूद नहीं रह सकते। आखिरकार दीवान को मजबूरी में अस्पताल से व्हील चेयर पर आना पड़ा, वरना उनकी गैर मौजदगी में गुसल हो जाता और यह भी एक नजीर बन जाती कि दीवान की गैर मौजूदगी में भी गुसल हो सकता है। बस इसी से बचने के लिए दीवान आए।
इस पूरे प्रकरण पर एक अहम सवाल ये भी उठा था कि यदि खादिम मौजूदा दीवान के भाई या बेटे को उनका प्रतिनिधि नहीं मानते तो उन्होंने अब तक कई बार उर्स के दौरान उनको महफिल की सदारत क्यों करने दी? क्या महफिल और गुसल में मौजूद रहना अलग-अलग मुद्दे हैं? जब महफिल में उनका बेटा सदारत कर सकता है तो वह गुसल के दौरान क्यों नहीं बैठ सकता? इस बारे में कुछ खादिमों को अफसोस है कि यदि पहले अंजुमन इस मामले पर कड़ा कदम उठाती तो आज यह नौबत नहीं आती। अंजुमन को चाहिए था कि वह जैसे ही दीवान की ओर से उनके बेटा या भाई महफिल की सदारत करने के लिए पहली बार आया तो आज की ही तरह ऐतराज कर देती। उस वक्त की लापरवाही ही आज परेशानी का सबब बन गई है।
वैसे एक बात तो साफ है कि भले ही एक्ट के मुताबिक दीवान की नियुक्ति की कोई औपचारिकता होती होगी, मगर इतना भी तय है कि दीवान का पद है तो वंशानुगत ही। यदि खादिम वंशानुगत तरीके से आठ सौ से भी ज्यादा सालों से खिदमत कर रहे हैं, अकबर के जमाने से मौरुसी अमला वंशानुगत रूप से अपनी जिम्मेदारियों निभा रहा है तो क्या अकेला दीवान का ही पद है, जिसके वंशानुगत होने पर ऐतराज किया जा सकता है।
कुल मिला कर यह विवाद अंतहीन है और समय-समय पर उबलता रहेगा। समाधान कुछ होना नहीं है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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3 thoughts on “अंतहीन है दरगाह दीवान और खादिमों का विवाद”

  1. जब अकबर बादशाह अजमेर आया उस वक्त दरगाह के सज्जादानशीन हज़रत ख़्वाजा हुसैन अजमेरी थे जो की ख़्वाजा साहिब के पड़ पोते हैं, और उन्ही के पास दरगाह शरीफ़ का पूरा निजाम था ख़्वाजा साहिब के मजार की चाबी भी उनके पास थी, फिर खादिम कहाँ से कहते हैं की 800 सालों से उनके पास चाबी है, वेसे गौर देने लायक बात तो यह भी है की 800 सालों से ख़्वाजा साहिब का मज़ार पर गुम्बद नहीं था गुम्बद बने तकरीबन 400 से 500 साल ही हुवे हैं,
    ख्वाजा साहब के खादिम हैं कौन?
    “(Their case was that the Khadims were and are no more, than servants of the holy tomb and their duties are similar to those of chowkidars. AIR 1961SC 1402)”
    ख्वाजा के खादिम मूलतः आदिवासी है… पर खादिमों को यह बताते हुए शर्म आती है…”यह जानना काफी आश्चर्यजनक हो सकता है पुष्कर के पण्डे और ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के खादिम एक ही खानदान के वंशज है. मूल रूप से भील आदिवासी पूर्वजों की इन आधुनिक संतानों ने तरक्की, दौलत और शोहरत के नशे में अपने बुजुर्गों को न केवल भुला दिया है बल्कि अपना शिजरा भी फखरुद्दीन गुर्देजी और मोहम्मद यादगार से जोड़ दिया है” (डायमंड इण्डिया अगस्त 2004 पेज 29).
    also see
    that the khuddam are descended from converts originally belonging to the Bhil tribe. It is said that there were five brothers called Laikha-, Taikha, Shaikha, Jhoda and Bhirda. Jhoda and Bhirda never accepted Islam and settled in Pushkar. The other three brothers became converts through Mu’in al-din himself.  “The Shrine and Cult of Muin Al-Din Chishti of Ajmer page 147”

  2. अजमेर और खास तौर पर दरगाह क्षेत्र का विकास त्रिभुज के तीन कोण की वजह से नहीं हो पाया. अंजुमन, दरगाह दीवान और दरगाह कमेटी. क्योंकि तीनो की भुजाएँ और कोण अलग अलग है इसलिए दुनिया की सबसे बड़ी दरगाह में जायरीन की मूलभूत सुविधा हेतु शौचालय तक नहीं है बुजुर्ग और महिलाएं कितना परेशान होती है ये आप सर्वे करा कर कभी पूछिए.
    बाकी बातें फिर कभी.

  3. इस बयान को इतना टूल क्यों दिया जा रहा है ? हर धर्मं और मजहब के अपने अपने कानून कायदे होते हैं, दरगाह दीवान ने फिल्म स्टार को दरगाह में आने से मन नहीं किया है , उन होने अनुरोध किया है की वो अपनी अश्लील फिल्मों की सीडी दरगाह में लाकर मिडिया बुलाकर इस अश्लील फिल्मों की सीडी की ख़्वाजा साहिब के मज़ार पर चढा कर अश्लीलता की कामयाबी की दुआ नहीं मांगे, और इस बेहूदा काम को सार्वजनिक न करें । इससे दुनिया में एक गलत मेसेज जा रहा है की ख़्वाजा साहेब ऐसी अश्लील फिल्मों को हित करवा रहे हैं ?
    रही बात खादिमों के बयान बाज़ी की को दरगाह में जियारत करवाना खादिमों ने एक धंदा बना लिया है, एक फिल्म की सीडी को ख़्वाजा साहेब के मज़ार पर रखवाने के 5-10 लाख रूपये ले लिए जाते हैं खादिमों के द्वारा उनको सिर्फ पैसे से मतलब है, वो क्यों अपने धंदे में नुकसान खाना चाहेंगे । खादिमों को पेसो से मतलब है ।
    और ख़्वाजा के वंशजों पर ऊँगली उठाने से पहले उनको अपने गिरेहबान में झाँक लेना चाहिए वो शायद भूलते जा रहे हैं की वो पृथ्वीराज चौहान के अवैध वंशज हैं और ये बात कोर्ट में साबित हो चुकी है ।

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