भगत हटे नहीं कि शुरू हो गई जोड़-बाकी-गुणा-भाग

naren shahani 10लैंड फोर लैंड के मामले में रिश्वतखोरी की साजिश के मामले में एडीबी की जांच अभी सिरे चढ़ी नहीं है, नगर सुधार न्यास के सदर नरेन शहाणी भगत का इस्तीफा अभी हुआ नहीं है कि अभी से उनके आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से कांग्रेस का दावेदार न होने पर शहर की राजनीति क्या होगी, इसका गणित शुरू हो गया है। एक ओर जहां भगत के धुर विरोधी और सिंधी समाज के अन्य दावेदारों के चेहरे खिले हुए हैं, वहीं गैर कांग्रेसी दावेदारों के मुंह में भी पानी आने लगा है। जाहिर सी बात है कि भाजपाई खेमे में भी संभावित राजनीतिक समीकरण के तहत माथापच्ची आरंभ हो गई है।
आइये, अपुन भी उस संभावित स्थिति पर एक नजर डाल लें, जिसमें भगत को इस्तीफा देना पड़ेगा व उनका दावा समाप्त सा हो जाएगा। यह बात सही है कि भगत ही अकेले सबसे दमदार दावेदार थे, इस कारण अगर कांग्रेस को पिछली हार से सबक लेते हुए किसी सिंधी को ही टिकट देने का फार्मूला बनाना पड़ा तो उसे बड़ी मशक्कत करनी होगी। फिर से कोई नानकराम खोजना होगा। वजह ये कि सिंधी समाज में एक अनार सौ बीमार की स्थिति हो जाने वाली है। डॉ. लाल थदानी, नरेश राघानी, हरीश हिंगोरानी, रमेश सेनानी, हरीश मोतियानी, राजकुमारी गुलबानी, रश्मि हिंगोरानी इत्यादि-इत्यादि की लंबी फेहरिश्त है। फिलहाल जयपुर रह रहे शशांक कोरानी, जो कि वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. डी. कोरानी के पुत्र हैं, वे भी मन कर सकते हैं। जो वर्षों तक टिकट मांगते-मांगते थक-हार कर बैठ गए, वे भी अब फिर से जाग जाएंगे। इतना ही नहीं संभव है, कुछ नए नवेले भी खादी का कुर्ता-पायजामा पहन कर लाइन में लग जाएं। रहा सवाल गैर सिंधियों का तो उनमें प्रमुख रूप से पुष्कर के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व शहर कांग्रेस के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता अब पहले से ज्यादा दमदार तरीके से दावा ठोकेंगे।
राजनीतिक ठल्लेबाजी करने वालों ने एक नए समीकरण का भी जोड़-बाकी-गुणा-भाग शुरू कर दिया है। वो ये कि बिखरी हुई कांग्रेस को नए सिरे से फोरमेट किया जाएगा। यानि कि ताश नए सिरे फैंटी जाएगी। भगत की जगह रलावता को दी जाएगी, रलावता की जगह पर जसराज जयपाल या डॉ. राजकुमार जयपाल को काबिज करवाया जाएगा और टिकट बड़ी आसानी से डॉ. बाहेती को दे दिया जाएगा। यानि की सब राजी। मगर उसमें समस्या ये आएगी कि सिंधी नेतृत्व का क्या किया जाए? क्या सिंधी मतदाताओं को एन ब्लॉक भाजपा की थाली में परोस दिया जाए? या फिर कोई और तोड़ निकाला जाए?
चलो, अब बात करें भाजपा की। मोटे तौर पर यही माना जाता है कि भाजपा कांग्रेस के पिछली बार की तरह गैर सिंधी के प्रयोग को करने का साहस शायद ही दिखाए, क्योंकि इससे उसकी दक्षिण की सीट भी खतरे में पड़ सकती है। यदि कांग्रेस ने भगत के अतिरिक्त किसी और सिंधी को टिकट दे दिया तो उसे भाजपा के संभावित सिंधी प्रत्याशी से कड़ी टक्कर लेनी होगी। और कांग्रेस ने अगर गैर सिंधी उतरा तो संभव है पिछली बार ही तरह फिर सिंधी-वैश्यवाद सिर चढ़ कर बोले।
जो कुछ भी हो, भगत के खतरे में आते ही अजमेर में राजनीतिक चर्चाएं जोर पकडऩे लगी हैं।
-तेजवानी गिरधर

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