पहले क्यों नहीं रोका मोइनी को वीआईपी खादिम बनने से?

dargaahहर वीआईपी-वीवीआईपी की जियारत कर तरह राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को दरगाह की जियारत कराने को लेकर भी विवाद होता दिखाई दे रहा है। दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान का कहना है कि चूंकि राष्ट्रपति का पहले से कोई खादिम नहीं है और वे पहली बार दरगाह आ रहे हैं, ऐसे में अंजुमन का ही हक है वो राष्ट्रपति को जियारत कराए। अंजुमन ने बाकायदा सदर सैयद हिसामुद्दीन नियाजी की सदारत में बैठक कर निर्णय किया कि प्रशासन किसी खादिम को थोपता है, तो अंजुमन इसका विरोध करेगी। अंजुमन सचिव सैयद वाहिद हुसैन अंगाराशाह के अनुसार प्रशासन ने जबरदस्ती किसी खादिम को जियारत के लिए थोपा तो अंजुमन के सभी लोग के दौरान आस्ताना से बाहर आ जाएंगे।
सवाल उठता है कि आखिर हर बार वीआईपी-वीवीआईपी की जियारत को लेकर विवाद होता क्यों है? खादिमों के बीच विवाद तो फिर भी समझ में आता है, उसके कई कारण बन जाते हैं, मगर अंजुमन और खादिम के बीच विवाद अनूठा है। स्वाभाविक सी बात है कि राष्ट्रपति भवन की ओर से प्रशासन को पूछा गया होगा कि जियारत कौन करवाएगा तो उन्होंने सैयद मुकद्दस मोइनी का नाम प्रस्तावित किया गया होगा। कारण सिर्फ यही है कि वे अघोषित रूप से वीआईपी खादिम हैं। चाहे जिला प्रशासन का कोई अधिकारी हो या फिर जयपुर-दिल्ली से पहली बार आने वाला वीआईपी, उन्हीं से संपर्क किया जाता है। यह एक परंपरा सी बन गई है। इसी प्रकार की परंपरा खादिम कुतुबुद्दीन सकी को लेकर है। वे भी फिल्म जगत के अघोषित खादिम हैं। कारण ये है कि वे फिल्म जगत के संपर्क में रहते हैं। किसी भी एक्टर-एक्ट्रेस को जियारत के लिए अजमेर आना होता है तो उनके मित्र उन्हीं का नाम सुझा देते हैं। इसी कारण आज वे अघोषित रूप से फिल्मी खादिम हो गए हैं। इसका कभी कोई विरोध नहीं हुआ। विरोध का आधार बनता भी नहीं है। यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे आपका कोई मेहमान आप पर दरगाह जियारत कराने की जिम्मेदारी सौंपे तो आप अपनी पसंद के खादिम से संपर्क करते हैं। इसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं होता। बात जहां तक मुकद्दस मोइनी की है, वे चूंकि लगातार प्रशासन के संपर्क में रहते हैं, इस कारण वे भी अघोषित रूप से वीआईपी खादिम हो गए हैं। अब चूंकि मामला देश के राष्ट्रपति प्रणब मुकर्जी का है और वे पहली बार अजमेर आ रहे हैं, इस कारण अंजुमन दावा कर रही है।
इस बारे में मोईनी का दावा है कि प्रशासन के पास उनके नाम का फैक्स राष्ट्रपति कार्यालय से पहुंच चुका है, इसलिए वे जियारत कराएंगे। बेशक ऐसा हुआ होगा, मगर राष्ट्रपति भवन के अधिकारियों को क्या पता कि उन्हें मोइनी का नाम भेजना है, जरूर प्रशासन ने ही उनका नाम सुझाया होगा, इसी कारण उन्हीं के नाम का फैक्स आया होगा।
अब जब विवाद की स्थिति बन रही है तो सवाल उठता है कि अंजुमन ने इससे पहले प्रशासन को यह स्पष्ट क्यों नहीं कह रखा है कि पहली बार आने वाले वीवीआईपी के लिए खादिम का नाम तय करने का जिम्मा कायदे के अनुसार अंजुमन का है, अत: मोइनी का नाम न सुझाया करें और अंजुमन से पूछ कर ही तय करें। प्रशासन को क्या पता कि अंजुमन इस पर विवाद करेगी? खैर, अब देखते हैं क्या होता है? बेहतर तो यही है कि कम से कम मुकर्जी के सामने तो विवाद न हो, उससे पहले ही सुलह हो जाए और आगे के लिए भी तय हो जाए कि पहली बार आने वाले वीवीआईपी के बारे में क्या नीति रहेगी?
-तेजवानी गिरधर

error: Content is protected !!