गजल को गाली दे गए पत्रकार आलोक श्रीवास्तव

BP269794-largeदैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक, वरिष्ठ पत्रकार व गजलकार डॉ. रमेश अग्रवाल के गजल संग्रह भीड़ में तनहाइयां के विमोचन समारोह में आए मुख्य अतिथि दैनिक भास्कर की ही पत्रिका अहा जिंदगी के संपादक आलोक श्रीवास्तव ने गजल को ऐसी गाली दी कि उसे अजमेर के प्रबुद्ध नागरिक कभी नहीं भूल पाएंगे। यूं तो उन्होंने डॉ. अग्रवाल के गजल संग्रह की तारीफ की, मगर कार्यक्रम में मौजूद जनसमूह का श्रेय उन्होंने डॉ. अग्रवाल के पत्रकारिता के कद को दे डाला। ऐसा कर के उन्होंने जानबूझ कर डॉ. अग्रवाल की अप्रतिम और लाजवाब गजलों को बौना करने की कोशिश की, जिससे समारोह में मौजूद हर शख्स का जायका बिगड़ गया। उनसे अनजाने में ऐसा हुआ, ऐसा इस कारण नहीं माना जा सकता कि क्योंकि वे भी एक जाने-माने पत्रकार हैं, शब्दों के खिलाड़ी हैं और उन्हें अच्छी तरह से पता था कि वे क्या कह अपनी पत्रकारितागत चतुराई का परिचय दे रहे हैं। साफ दिख रहा था कि अलग से कुछ हट कर सत्य को उद्घाटित करने की कोशिश में ही उन्होंने एक सौहार्द्रपूर्ण मंजर पर राई बघारने की यह हरकत की। अगर वे यह कहते कि भले ही डॉ. अग्रवाल के आभा मंडल की वजह से इतना शानदार समारोह हुआ है, मगर उनकी गजलें उससे भी ज्यादा शानदार हैं, तो बात समझ में भी आती, मगर जिस अंदाज में उन्होंने अपनी बात कही, साफ झलक रहा था पेट में इस बात का बड़ा भारी कष्ट रहा कि एक गजल संग्रह का विमोचन समारोह इतना भव्य कैसे हो रहा है?
बेशक उनकी बात इस अर्थ में ठीक मानी जा सकती है कि किसी भी प्रभावशाली व्यक्ति का कार्यक्रम श्रोताओं की पर्याप्त मौजूदगी और कार्यक्रम की गरिमा की दृष्टि से कामयाब होता है, मगर यह तो एक सार्वभौमिक तथ्य है। इसमें नया कुछ भी नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि कार्यक्रम में स्तरीय प्रबुद्ध वर्ग की मौजूदगी के पीछे पत्रकारिता के क्षेत्र में डॉ. अग्रवाल की अब तक की साधना, पहचान और लोकप्रियता ही प्रमुख वजह रही। एक अदद गजलकार के नाते तो लोग जुटे नहीं थे। वे अन्य गजलकारों की तरह कोई प्रतिष्ठित गजलकार हैं भी नहीं और न ही ऐसा उनका कोई दावा है। मगर इससे उनकी उम्दा गजलें छोटी नहीं हो जातीं। स्वाभाविक सी बात है कि शहर के प्रबुद्ध लोग यही देखने-सुनने आये थे कि एक प्रतिष्ठित पत्रकार की गजलें कैसी हो सकती हैं। उन्हें सुन कर समारोह में मौजूद शायद ही कोई ऐसा दर्शक रहा हो, जिसके मुंह से अनायास वाह-वाह न निकला हो। अजमेर के जाने-माने और मूर्धन्य गजलकार व गीतकार सुरेन्द्र चतुर्वेदी व गोपाल गर्ग और लॉफ्टर चैलेंज फेम रास बिहारी गौड़ भी डॉ. अग्रवाल की गजलों की बारीक समीक्षा करते हुए शब्दों की कमी महसूस कर रहे थे। वे कोई उनके एक अच्छे पत्रकार होने के नाते थोड़े ही तारीफ कर रहे थे। ऐसे में आलोक श्रीवास्तव का यह कहना कि कोई अन्य गजलकार होता तो इतना भव्य समारोह नहीं होता, बहुत बेहूदा और भद्दी टिप्पणी लगी। हालांकि उन्होंने आड़ गजल की लगातार हो रही दुर्दशा की ली, मगर ऐसे गरिमापूर्ण समारोह में इस प्रकार टिप्पणी करके उन्होंने अपनी खुद की गरिमा गिरा ली। अव्वल तो वे खुद ही अपने मन्तव्य का अतिक्रमण कर रहे थे। खुद उनके पास भी इस सवाल का जवाब नहीं होगा कि क्या डॉ. अग्रवाल की जगह किसी और अदद गजलकार के गजल संग्रह का विमोचन होता तो वे समारोह के मुख्य अतिथी बनना स्वीकार करते? जब वे खुद गजल मात्र को सम्मान नहीं देते तो दुनिया से क्या अपेक्षा कर रहे हैं?
वस्तुत: पूरा समारोह ही एक अच्छे पत्रकार के उम्दा गजलकार भी होने पर आश्चर्यमिश्रित भाव पर ही थिरक रहा था, मानो पत्रकार तो कवि, गजलगो या साहित्यकार हो ही नहीं सकता। बेशक साहित्यकार होने के लिए पत्रकार होना जरूरी नहीं है, चूंकि साहित्य एक स्वतंत्र विधा है, मगर ऐसा अमूमन देखा गया है कि साहित्यकार वर्ग किसी पत्रकार के साहित्य के क्षेत्र में भी दखल देने पर असहज हो जाता है। उसे इस बात की भी पीड़ा होती है कि शब्दों के असली संवाहक तो वे हैं, फिर महज रूखी खबरों में शब्दों का प्रयोग करने वालों को समाज में उनसे अधिक सम्मान क्यों दिया जाता है?
जहां तक मेरी निजी जानकारी, समझ और अनुभव है, डॉ. अग्रवाल मूलत: साहित्यक प्रतिभा हैं, पत्रकारिता उनकी आजीविका का साधन मात्र है, जिसमें भी उन्होंने उत्कृष्टता से प्रतिष्ठा पाई है। उनके भीतर मौजूद साहित्यकार से साक्षात्कार तो लोग उनके दैनिक नवज्योति में काम करने के दौरान चकल्लस कॉलम और दैनिक भास्कर के दो दूनी पांच कॉलम में ही करते रहे हैं, जिनमें वे जीवन दर्शन, व्यंग्यपूर्ण चुटकी और हास्य रस से युक्त पद्य के साथ गद्य के रूप में एक-दो शेर भी पिरोते हैं। हां, उनकी पहचान जरूर एक वरिष्ठ पत्रकार के रूप में स्थापित हुई है। अब जब कि उन्होंने अपनी गजलों के जरिए हिरण के अंतिम आर्तनाद में छिपी छटपटाहट और वेदना को उभारा है, उनकी पहचान एक स्तरीय गजलगो के रूप में भी हो गई है।
-तेजवानी गिरधर

7 thoughts on “गजल को गाली दे गए पत्रकार आलोक श्रीवास्तव”

  1. KABHI KABHI ATI UATSAHIT HONA APWAD BAN JATA HAI BAKI AUR UANKI KYA SOCH THI WO AALOCHNA HONE KE BAD JAHIR KARDENGE …

  2. aise kaise bhala koi kisi dusre ki tareef ya khushi dekh sakta hai jalan to honaa hi thi akhir yh koi sat yug nahi kalyug jo thahra yahan saamne wale ko log insaan nahi pratidvandi ki nazar se dekhte hain aur kahin use kisi tarah safalta mil jaaye to wo pratidvandi se dushman ban jaata hai.

  3. yahi vidambna hai ki prabudhjan yoon to sahityik ayojano me logon ke nahin aane ka rona rote rahte hai, par jab log ruchipoorvak gazal sunne aate hain to usme khamiyaan nikali jaati hain…………………bahri duniya me jine wale log atmiyata-prem-sneh ko kahan mahsus karenge…………..

  4. Sahitya Sahee swaroop mein jodne ki disha mein sakaratmak sandesh de jaata hai. bas samay aur sthan ka dhyan rakhna ek sahitykaar ke liye bahut zaroori hai…Ajmernaama ek disha soochak sthal hai.

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