सैयद आजम हुसैन : इतिहास के सहेजते-सहेजते वे स्वर्णिम इतिहास हो गए

saiyad azam husainअजमेर के राजकीय संग्रहालय के अधीक्षक सैयद आजम हुसैन का असमय निधन होने पर पूरा अजमेर सन्न रह गया। बेशक, उनसे पूर्व के अधीक्षकों ने भी संग्रहालय की भलीभांति देखभाल की, मगर सैयद आजम हुसैन ने जो कार्य किए, उनका विशेष उल्लेख अजमेर के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया है। उन्होंने अपने कार्यकाल में न केवल संग्रहालय में अनेकानेक आयोजन कर इसे लोकप्रिय किया, अपितु लाइट एंड साउंड शो जैसी बहुप्रतीक्षित योजना को भी मूर्त रूप प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई। अजमेर के स्थापना दिवस पर आयोजन की शुरुआत भी उनके ही खाते में दर्ज की जाएगी। इसके अतिरिक्त तारागढ़ के जीर्णोद्धार में भी उन्होंने विशेष रुचि ली। चंद शब्दों में कहें तो उन्होंने अकबर के किले को नया जीवन प्रदान किया। ऐसे ऊर्जावान अधिकारी से अजमेर को और भी उम्मीदें थीं, मगर काल के क्रूर हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया। और अजमेर के प्रति विशेष दर्द को अपने दिल में लिए ही वे हमसे विदा हो गए।
उनकी सोच से परिचित करवाने के लिए यहां उनका वह आलेख प्रकाशित किया जा रहा है, जो कि अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है। लाइट एंड साउंड शो उनका एक सपना था, जो कि उन्होंने साकार किया, उसका भी इसमें जिक्र है:-
-सैयद आजम हुसैन-
अजमेर में नया बाजार के पास स्थित अकबर के किले में स्थापित राजपूताना म्यूजियम आज स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा के केन्द्र के रूप में भी अपनी भूमिका निभा रहा है। बाहर से आने वाले जायरीन और पर्यटकों के अतिरिक्त इतिहास के शोधार्थी भी इसको देखने में विशेष रुचि रखते हैं। पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग का प्रयास है कि इस ऐतिहासिक स्थल को और अधिक आकर्षक बनाया जाए। संग्रहालय को देखने के लिए आने वाले दर्शक हमारी कला, संस्कृति, स्थापत्य, शिल्प तथा इतिहास को काल क्रमानुसार आत्मसात कर सकें, इसके लिए पुरा सामग्री को काल क्रमानुसार प्रदर्शित किया जा रहा है। प्रदर्शित की जाने वाली सामग्री के पेडस्टल, शोकेस, अलमीरा, परिचय-पट्ट आदि संग्रहालय विज्ञान के अनुसार तैयार किए जा रहे हैं।
चूंकि अकबर का किला अजमेर के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है, अत: पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग का यह प्रयास है कि पर्यटकों को आकर्षित करने केलिए किले में शीघ्र ही लाइट एंड साउंड शो के माध्यम से अकबरी किले में घटित प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं को दिखाया जायेगा। न केवल पर्यटकों अपितु शहरवासियों के लिए भी यह शो आकर्षण का केन्द्र होगा। शो के माध्यम से दर्शक जान सकेंगे कि हल्दी घाटी युद्ध (1576 ई.) के समय सम्राट अकबर द्वारा मुगल सेना को मेवाड़ की ओर अजमेर से ही रवाना किया था। ब्रिटिश प्रतिनिधि सर टामस रो ने जनवरी, 1616 ईस्वी में मुगल सम्राट जहांगीर से इसी किले में भेंट की थी। शाहजहां के दो शहजादों का जन्म भी इसी किले में हुआ था। इस लिहाज से यह स्थल इतिहास के नजरिये से काफी महत्वपूर्ण है। सरकार की ओर से उपलब्ध कराई गई विशेष राशि से अकबरी किले में जीर्णोद्धार व मरम्मत के कार्य प्रगति पर हैं। इन कार्यों के तहत किले की बायीं बुर्ज के मरम्मत कार्य करवाये जा रहे हैं। इस बुर्ज में संग्रहालय को जीवन्त व आकर्षक बनाने हेतु प्रदर्शनी व सेमीनार आदि का आयोजन किया जायेगा।
ज्ञातव्य है कि राजकीय संग्रहालय, अजमेर की स्थापना अकबरी किले में सन् 1908 ई. में राजपूताना म्यूजियम के नाम से हुई। यहां पुरातात्विक वस्तुओं यथा शिलालेख, प्रतिमाएं, अस्त्र-शस्त्र, लघु रंग चित्र व अन्य सामग्री संग्रहित है, जिन्हें विभिन्न प्रमुख दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है।
म्यूजियम में में सिन्धु घाटी सभ्यता को प्रदर्शित करने के लिए अलग से कक्ष बनाया हुआ है। सन् 1920 ई. में प्रकाश में आयी सिन्ध सभ्यता के अवशेषों के नमूने यथा मोहरंे, मृद-भांड, आभूषण, मृद प्रतिमाएं व खिलौने आदि इस कक्ष में प्रदर्शित हैं, जिन्हें देख कर दर्शक दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हो जाता है।
light and sound sonu nigam 01यह सर्वविदित है कि शिलालेख इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण व विश्वसनीय स्रोत हैं। यहां स्थापित शिलालेख कक्ष में ग्राम बरली, अजमेर से प्राप्त शिलालेख दूसरी शताब्दी ईस्वी पूव समय का है। इसी कक्ष में ढ़ाई दिन का झोंपड़ा से प्राप्त महत्वपूर्ण शिलालेख भी दिग्दर्शित हैं। इसी प्रकार म्यूजियत के प्रतिमा कक्ष में 8-9 शताब्दी ईस्वी से 16-17वीं शताब्दी ईस्वी काल की प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं। यहां प्रदर्शित प्रतिमाएं शैव, वैष्णव व जैन प्रतिमा शिल्प की उत्कृष्ठ कृतियां हैं, जो साबित करती हैं कि शिल्प कला में प्राचीन काल से हम कितने संपन्न रहे हैं।
राजस्थान की धरा शूर वीरों की धरा रही है। म्यूजियम के अस्त्र-शस्त्र कक्ष में मध्य काल में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र-शस्त्र यथा भाले, तलवार, ढाल, कटार, जिरह-बख्तर, बन्दूकें आदि दर्शकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र हैं। रियासत काल में राजपूताना के राजा-महाराजाओं ने अन्य कलाओं के साथ-साथ चित्रकला को भी आश्रय प्रदान किया। राजाश्रय में बने चित्र तत्कालीन दरबारी व्यवस्था हमारी धार्मिक मान्यताओं तथा रीति रिवाजों का दर्पण है। यहां लघु रंग चित्र-कक्ष में प्रदर्शित मुल्ला दो प्याजा के कथानक पर आधारित लघु रंग चित्र मेवाड़ चित्र शैली के नायाब नमूने हैं।
सरकारी नौकरी की औपचारिता की सीमाओं से बाहर निकल कर अजमेर के लिए कुछ कर गुजरने की उनकी उत्कट इच्छा को सलाम। आने वाले अधीक्षकों के लिए वे सदैव प्रेरणा के स्रोत रहेंगे।
-तेजवानी गिरधर

सैयद आज हुसैन पर देखिए स्वामी न्यूज की एक रिपोर्ट इस लिंक पर
http://youtu.be/l0mBJEO9HeU

2 thoughts on “सैयद आजम हुसैन : इतिहास के सहेजते-सहेजते वे स्वर्णिम इतिहास हो गए”

  1. Syed Azam Hussain Sahib ke akhlaq bahut acche the wo har ek bade chote ko izzat dete the allah un ko iss mubarak mahine ke wasile se jannat main aala muqam ata farmaye ameen

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