हारे तो मोदी की हार, जीते तो भी मोदी की हार

n modi 450-320पांच राज्यों में चल रहे सत्ता के सेमीफाइनल में दो और राज्य मध्य प्रदेश और मिजोरम ने अपने उम्मीदवारों की तकदीर ईवीएम बक्सों में बंद कर दी। सूदूर मिजोरम के इतर देश के दिल मध्य प्रदेश में भी 25 दिसंबर को मतदान किया गया। मध्य प्रदेश में 70 फीसदी मतदान होने की खबर है जिससे कम से कम चुनाव आयोग चैन की बंसी बजा सकता है। छत्तीसगढ़, मिजोरम और मध्य प्रदेश में मतदान संपन्न कराने के बाद अब चुनाव आयोग राजस्थान और दिल्ली में मतदान की तैयारियां कर रहा है। तो फिर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने की तैयारी में कौन है?

वोटिंग के दौरान होनेवाले निजी सर्वेक्षणों पर चुनाव आयोग पहले ही रोक लगा चुका है नहीं तो अब तक कुछ अंदाज तो लग ही गया होता लेकिन जैसी खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश दोनों ही जगहें बीजेपी को कांग्रेस से टफ फाइट मिली है। खुद बीजेपी के नेता कार्यकर्ता इस बात को स्वीकार करते हैं कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में राह उतनी आसान नहीं रही जितनी कि समझी जा रही थी। जो रुझान और बयान आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि बीजेपी के लिए मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ से बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। छत्तीसगढ़ मे जहां खींच तान कर बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में नजर आ रही है, मध्य प्रदेश में स्थिति ज्यादा कमजोर हो सकती है। कारण सिर्फ ज्योतिरादित्य की मौजूदगी भर नहीं है बल्कि बीजेपी की आंतरिक राजनीति भी है।

मध्य प्रदेश की 230 सीटों वाली विधानसभा में सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 115 सीटों का आंकड़ा चाहिए होगा। निलंबित निवर्तमान विधानसभा में भाजपा के पास 143 विधायक थे तो विधानसभा में कांग्रेस की ताकत भाजपा के मुकाबले बहुत कमजोर 71 विधायकों की थी। 2003 से 2013 के बीच राज्य में भाजपा की सरकार के दौरान कांग्रेस सशक्त विपक्ष होने की बजाय राजनीति की कमजोर कड़ी ही बनी रही। बीच बीच में कांग्रेस नेताओं को शिवराज सरकार द्वारा उपकृत किये जानेवाली खबरों ने भी कांग्रेस को कमजोर कर रखा था तो नेतृत्व के अभाव ने भी कांग्रेस को सशक्त विपक्ष नहीं बनने दिया। कमलनाथ और दिग्विजय के अपने अपने राजनीतिक दांव पेंच के बीच कांग्रेस कहीं से भाजपा को टक्कर देती नजर नहीं आ रही थी। लेकिन ज्योतिरादित्य को मैदान में उतारकर कांग्रेस ने शिवराज सरकार के खिलाफ वहीं दांव चला जैसा दांव 2003 में बीजेपी ने उमा भारती को मैदान में उतारकर दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश से दरबदर कर दिया था।

अब ज्योतिरादित्य कांग्रेस के उमा भारती साबित हुए या नहीं, यह तो चुनाव परिणाम बताएंगे लेकिन खुद उमा भारती इस बार बीजेपी के लिए उमा भारती नहीं रहीं। बीजेपी की राजनीतिक तिकड़मों का शिकार होकर दरबदर हुईं उमा भारती को इस इस बार मध्य प्रदेश में प्रवेश की मनाही तो नहीं थी लेकिन उन्होंने खुद बहुत उत्साह से न तो चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया और न ही पार्टी ने उन्हें कोई कमान सौंपी। इस बार चुनाव प्रचार में जो चेहरा दिखाया गया वह नरेन्द्र मोदी का था और कमान खुद शिवराज, तोमर और मेनन की तिकड़ी के हाथ में थी। तो क्या उमा भारती का चेहरा चमकाकर बीजेपी ने जिस मध्य प्रदेश को कांग्रेस से छीना था, मोदी का चेहरा दिखाकर उसे तीसरी बार अपने पास रख पायेगी?

यह भी परिणाम बताएगा लेकिन मध्य प्रदेश में अगर बीजेपी इतिहास को उलटकर तीसरी बार सत्ता में आती है तो भी बीजेपी के स्टार प्रचारक मोदी की हार ही होगी। मोदी ने जिन नेताओं (सुषमा, आडवाणी, संजय जोशी) को गुजरात से दरबदर कर रखा है वे सब मध्य प्रदेश में ही अपनी जमीन तलाश रहे हैं। अगर मध्य प्रदेश में बीजेपी तीसरी बार जीतती है तो पहले ही मोदी का विकल्प बनाये जा रहे शिवराज का राजनीतिक पलड़ा मोदी पर भारी कर दिया जाएगा। यह प्रचारित करते देर नहीं लगेगी कि विकास के मोदी मॉडल को ही नहीं बल्कि विकास के शिवराज मॉडल को भी जनता तीसरी बार अपना विकल्प मानती है। और अगर ऐसा नहीं होता है तो मध्य प्रदेश में हार का ठीकरा मोदी के सिर फोड़ दिया जाएगा क्योंकि मध्य प्रदेश में वही सबसे बड़े रोल मॉडल बनाकर पेश किये गये थे।

और खुद मोदी के लिए मध्य प्रदेश का क्या मायने है? अगर राजनीतिक रूप से देखें तो मध्य प्रदेश की हैट्रिक मोदी की अपनी राजनीति के लिए बहुत मददगार नहीं होगी। भला मोदी क्यों चाहेंगे कि सफल शिवराज उन्हें भविष्य में संकट के रूप में मिलें? http://visfot.com

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