तो मोदी जी का राजतिलक कराएंगे श्रीयुत् केजरीवाल !

n modi 450-320-अमलेन्दु उपाध्याय- अंततः ईमानदार शिरोमणि श्रीयुत् अरविंद केजरीवाल जी दिल्ली के मुख्यमंत्री बन ही गए। …और हमारा कॉरपोरेट मीडिया उनके स्वागत में बिछ-बिछ जा रहा है कि बस अब भगवान् का अवतरण हो गया, भ्रष्टाचार खत्म ही समझो अब। 2007 में यही मीडिया मायावती के लिए इसी तरह बिछ गया था और यूपी में उनकी सरकार बनने को दूसरी आजादी बता रहा था। 2012 में भी यही मीडिया अखिलेश यादव के लिए भी ऐसे ही बिछ गया था। एक अखबार ने तो बाकायदा नारा दे दिया था “राजनीति खत्म/ काम शुरू”। पूरे दो महीने उसने अपने अखबार के यूपी के पन्नों का स्लग ही उत्तम प्रदेश कर दिया था। वही मीडिया अब केजरीवाल को मोदी और राहुल दोनों का विकल्प बता रहा है।
दरअसल कॉरपोरेट घराने मोदी और केजरीवाल के बीच लड़ाई केन्द्रित करके मोदी का रास्ता साफ करना चाहते हैं। क्योंकि कॉरपोरेट घरानों का एक जम्हूरा मोदी अगर हार भी जाए तो कॉरपोरेट घरानों का दूसरा जम्हूरा आ जाए। इसी लिए कॉरपोरेट मीडिया दिल्ली में आप की सरकार को बहुत ऐतिहासिक घटना की तरह पेश कर रहा है और आप को तीसरा विकल्प गढ़ने की कोशिश कर रहा है। क्योंकि वे जानते हैं कि केजरीवाल को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी बताओ और भाजपा विरोधी मतों को और बाँट दो… और केजरीवाल के कंधों पर मोदी का दिल्ली फतह।
कॉरपोरेट घराने समझ रहे हैं कि अगर 2014 में मुकाबला मोदी बनाम राहुल ही हुआ तो उनका जम्हूरा मोदी कहीं ठहरेगा नहीं। वे यह भी देख चुके हैं कि केजरीवाल ने दिल्ली में भाजपा को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया बल्कि भाजपा विरोधी मतों को ही अपने खेमे में खींचा। इसलिए कॉरपोरेट घराने निश्चिंत हैं कि केजरीवाल लोकसभा चुनाव में भी नुकसान सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस और तीसरे मोर्चे को ही पहुंचाएंगे। लिहाजा यह स्थिति तो मोदी के अनुकूल ही रहेगी और केजरीवाल तो मोदी का ही मार्ग प्रशस्त करेंगे।
वैसे भी केजरीवाल का मोदी से कोई बैर कभी रहा ही नहीं और न उन्होंने कभी कहा कि वे मोदी को रोकेंगे, ऐसा वे आज भी नहीं कह रहे हैं भले ही मीडिया कह रहा हो। 2002 के गुजरात जनसंहार की आज तक उन्होंने न कभी भर्त्सना की और न कभी 2002 पीड़ितों के समर्थन में कहीं दिखाई दिए। न वो इशरतजहां फर्जी एंकाउंटर पर कभी कुछ बोले न साहेब प्रकरण पर उनके श्रीमुख से दो शब्द निकले जबकि 16 दिसंबर प्रकरण पर तो उछलकर आए थे। बल्कि उनके साथी कुमार विश्वास तो कहते हुए पाए गए हैं कि मोदी जी को वह व्यतिगत तौर पर काफी पसंद करते हैं, वह काफी लोकप्रिय नेता हैं उन (मोदी) का, उन (विश्वास) के ऊपर काफी समय से उपकार भी रहा है उनका कद आज भारतीय जनता पार्टी से काफी बड़ा हो गया है उन्हें भी अमेठी से चुनाव लड़ना चाहिए। ऐसे में मोदी हों या केजरीवाल, कॉरपोरेट घरानों के दोनों हाथों में लड्डू हैं।
प्रश्न है कि कॉरपोरेट घराने राहुल के खिलाफ क्यों हैं जबकि 2009 में यही कॉरपोरेट घराने डॉ. मनमोहन सिंह के साथ खड़े हुए थे? साफ है कि वैसे तो राहुल की अभी तक कोई समझ लोगों के सामने आई नहीं है, लेकिन जो थोड़ा बहुत भी उनका काम सामने आया है वह कम से कम मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों के खिलाफ ही गया है। अभी तक लगता यही है कि राहुल, मनमोहन के विपरीत खड़ा होने की कोशिश कर रहे हैं। चाहे भट्टा पारसौल पर उनकी सक्रिय़ता रही हो या दागी जनप्रतिनिधियों के सवाल पर उनका गुस्सा। उनकी टीम में भी जो लोग मुखर हैं वे भी समय-समय पर मनमोहन सिंह की नीतियों के खिलाफ ही खड़े होते आए हैं, भले ही वे दिग्विजय सिंह हों या मणिशंकर अय्यर।
देखने की बात है कि मनमोहन सरकार रसोई गैस, डीजल से सब्सिडी खत्म करती है और बड़े पूंजीपतियों का कई हजार करोड़ कर्ज माफ कर देती है, लेकिन सोनिया-राहुल के दबाव में ही मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, आरटीआई, किसानों के कर्ज़ माफी जैसे फैसले लेने को यही सरकार बाध्य भी होती है। इसलिए कॉरपोरेट घरानों के मन में राहुल को लेकर शंकाएं हैं जबकि मोदी और केजरीवाल तो उनके अपने ही हैं।
हालाँकि ईमानदारी से कहा जाए तो दिल्ली में सरकार बनाने की घोषणा करते ही जीत का पहला हार पहनने के साथ ही केजरीवाल की हार प्रारम्भ हो गई है। केजरीवाल की पहली हार यही हुई कि उन्होंने ऐलान किया था कि न किसी से समर्थन लेंगे न देंगे, लेकिन उसी कांग्रेस के रहमो-करम पर सरकार बनाई जिसे गली-गली घूमकर चोर कहा था। तो क्या अब उन कथित चोरों के सहयोग से ही चोरी खत्म करेंगे श्रीयुत् केजरीवाल?

अमलेन्दु उपाध्याय
अमलेन्दु उपाध्याय

वैसे ‘ईमानदार’ शिरोमणि की दाद देनी होगी जो उन्हीं बेईमानों के सहयोग से सरकार बना रहे हैं जिन्हें कल तक गली-गली कोसा था और अब उन्हीं बेईमानों की मदद से अब बेईमानी दूर करने का दावा भी कर रहे हैं। अब केजरीवाल कांग्रेस के समर्थन के दम पर घोषणा कर रहे हैं कि घूस लेने वालों को रंगे हाथों पकड़वा देंगे। लेकिन केजरीवाल जी यह नहीं बता रहे कि घूसखोरों के पकड़वाने के लिए उनके पास पुलिस नहीं है, वह पकड़वाएंगे मनमोहन सिंह की पुलिस से ही।
मंत्री बनने के बाद मनीष सिसौदिया ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा-“आज अगर संतोष होती तो शायद बगल की सीट पर बैठी होती. सचिवालय में कदम रखते वक्त आज बहुत याद आई संतोष…. दो साल पहले मुझे और संतोष को इसी सचिवालय से बाहर निकलवा कर फिंकवाया था, पूर्व मुख्यमंत्री और उनके सचिव पी. के. त्रिपाठी ने….. मैं और संतोष राशन की जगह कैश दिए जाने की स्कीम पर चर्चा करने आये थे… विरोध करते ही भडक गई थीं मैडम… पहले पुलिस बुलाकर मीटिंग से बाहर निकलवा दिया… और फिर सचिवालय से ही बाहर निकलवा दिया. इसके बाद दो साल तक यहां आना ही नहीं हुआ…. सचिवालय की बिल्डिंग आज भी वही है लेकिऩ, आज जनता ने उन मैडम को ही सचिवालय से बाहर निकाल दिया है…”
यह हद दर्जे की असभ्यता और कृतघ्नता है। मनीष जी यह भूल गए कि वे मैडम की पार्टी के सहयोग से ही मंत्री बने बैठे हैं और जिन मैडम को जनता ने सचिवालय से बाहर निकाल फेंका उस जनता ने केजरीवाल को भी सचिवालय के अंदर बैठने का जनादेश नहीं दिया था। मनीष जी को सचिवालय के अंदर बैठाया तो मैडम ने ही है, “आप” मानो या न मानो, क्या फर्क पड़ता है। http://www.hastakshep.com
अमलेन्दु उपाध्याय: लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं। http://hastakshep.com के संपादक हैं

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