सिर्फ रूप नहीं दादी के गुण भी हैं प्रियंका में

priyanka-ghandhiप्रियंका गांधी को पहली दफा 1999 में देखा था।  तारिख ठीक से याद नहीं। रायबरेली में लोकसभा चुनाव पिता राजीव गांधी के बालसखा कैप्टन सतीश शर्मा लड़ रहे थे।  सामने थे अपने ही खानदान के अरुण नेहरू। नेहरू (अब दिवंगत ) गांधी परिवार से दूर हो चुके थे।  उन पर गांधी परिवार  के साथ विश्वासघात के आरोप थे। प्रियंका कैप्टन शर्मा के चुनाव प्रचार में रायबरेली आई।  शायद अपनी दादी स्व इंदिरा गांधी के निधन के बाद वह पहली बार ही रायबरेली आई होंगी। बछरावां में पहली मीटिंग थी।  उस मीटिंग में जिन तेवरों के साथ प्रियंका ने  परिवार की पीठ में छुरा घोंपने वाला बताते हुए अरुण नेहरू को हारने की अपील की उसीका असर था कि नेहरू चुनाव बुरी तरह हार गए।
रायबरेली में  प्रियंका को कई रूपों में देखने के अवसर हमें मिले। कामयाबी और नाकामयाबी दोनों ही उनके हिस्से में दर्ज हैं लेकिन उनकी क्षमताओं पर संदेह करने वालों को जान लेना चाहिए कि प्रियंका का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग है।  कुदरत ने उन्हें केवल दादी वाला रूप ही नहीं दिया है उनके गुण भी उन्हें प्रदान किये हैं। कार्यकर्ताओं कि नाराजगी को भी वह मुस्कराती हुई सुनती हैं।  सिर्फ सुनती ही नहीं उसकी वाजिब बात को तरजीह भी देती हैं।  यह गुण इंदिरा जी में कूट-कूट कर भरा था।  मैंने देखा तो नहीं हाँ बुजुर्गों के मुह से सुना है कि साधारण से साधारण कार्यकर्ता अपनी नेता को प्रधानमंत्री के रूप में भी विरोध और अनुरोध दोनों अंदाज में रोक लेता था।  इंदिरा जी उसकी बात गम्भीरता से लेती थी और उस पर अमल भी होता था।
दादी का यह गुण प्रियंका में भी कुदरत ने ट्रान्सफर किया है।  वे वरिष्ठों को प्रिय हैं तो कार्यकर्ताओं और आम आदमी को भी उतनी अच्छी लगती हैं।  पढ़ने वालों को भाल इस तर्क में कुछ अतिश्योक्ति लगे लेकिन यह हकीकत है कि प्रियंका का स्वभाव लोकोन्मुखी है। वह नाराज होना भी जानती हैं और मनाना भी।  उन्हें अपने उन सभी कि फिक्र रहती जो उनके लिए निष्ठां से लगे रहते हैं और उनकी भी जो दूर-दूर रहते हैं। तभी तो उनसे मिलने वाला हर कोई उनका होकर ही रह जाता है। कोई बिरला ही मिलेगा जो उनसे असंतुष्ट होकर लौटे। एक किस्सा देखिये। वर्ष 2006 का उपचुनाव था।  सोनिया जी चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार थी और प्रचार की कमान प्रियंका संभाले थी।  उस समय रायबरेली के एक बाहुबली विधायक कांग्रेस के विरोध में थे।  ऐसे-वैसे नहीं पूरी ताकत के साथ।  उनके गृह ब्लाक में कांग्रेस को बूथ एजेंट मिलने मुश्किल थे।  कोई तैयार ही नहीं था। कांग्रेस ने अपने विशेष कार्यकर्ता उन बूथो पर भेजे।  उनकी हिफाजत के लिए प्रियंका खुद मतदान ख़त्म होने के पहले उस क्षेत्र में पंहुची और एक-एक बूथ पर जाकर अपने एजेंटों को गाड़ी पर बिठाकर साथ लाई। इतने बड़े कद का कोई भी नेता (पुरुष हो या महिला) इन व्यवस्थाओं के लिए शायद ही खुद कष्ट उठाये लेकिन प्रियंका ने यह काम  किसी विश्वस्त पर नहीं छोड़ा बल्कि खुद किया।
देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की सदस्य होने के नाते वह भी कुछ काम सन्देश देने के लिए भी  करती हैं लेकिन कुछ काम अपने स्वभाव के अनुरूप करना उनकी फितरत में शामिल है। प्रियंका एक अच्छी राजनीतिज्ञ भी हैं लेकिन अच्छी बेटी, धैर्यवान बहन, गुणवान माँ और आम लोगों की अच्छी शुभचिंतक भी। माँ के चुनाव में बेटी की भूमिका निभाने के बाद प्रियंका माँ की भूमिका में आती हैं। यह  वर्ष 2009  की बात है।  मतदान ख़त्म होने के बाद प्रियंका रिलैक्स हुईं और रिक्शे पर बच्चो रेहान और मिराया को घूमने निकल पड़ी। प्रियंका की मेहनत अब भी दिखाई पद रही है।  विधानसभा चुनावों में पार्टी प्रत्याशियों कि पराजय के बाद उन्होंने ओ मेहनत संघठन को दुरुस्त करने में की उसकी मिसाल भारतीय राजनीति में कम ही देखने को मिलती है।  गांव-गांव संघठन हकीकत में खड़ा करना वाकई काफी कठिन है लेकिन प्रियंका ने पसीना बहाकर यह काम कर दिखाया।
प्रियंका गांधी की क्षमताओं पर संदेह करने वालों को जान लेना चाहिए कि वे जादुई व्यक्तित्व कि धनी हैं।  उनमे लोगो को सम्मोहित करने के गुण है। वे संवाद शैली में भाषण करती हैं। उनका भाषण लिखे से ज्यादा कढ़ा होता है।  वे बोझिल बयान नहीं देती। झल्लाती भी नहीं। एक बार माँ के चुनाव प्रचार में वे फुर्सतगंज हवाई अड्डे पर उतरी। तब सोनिया गांधी के विदेशी होने का मुद्दा गरम था।  किसी पत्रकार ने पूछ लिया कि आपकी माँ विदेशी हैं।  इस सवाल पर बिना झल्लाए उनका एक लाइन का जवाब था -” क्या मैं आपको विदेशी लगती हूँ ” मेरा मानना है कि वे  लोगो के दिलों को छूना जानती हैं।  कार्यकर्त्ता का मनोबल बढ़ाना जानती हैं। सबसे खास गुण तो उनकी मुस्कराहट है। वे जो ठान लेती हैं करके रहती हैं। ये सही है कि अब चुनाव में रिजल्ट जनता को ही देना है। आज की कांग्रेस की स्थिति परख लें और जो रिजल्ट आये उसे तोलियेगा यदि प्रियंका सक्रिय राजनीति में आ जाएँ। भले इस लिखे पर आप यकींन न करें लेकिन चुनाव में आप खुद उनकी प्रभावी भूमिका को खुद देख-परख लीजियेगा तब हमारी मानियेगा। खुदा  हाफिज….                                                                                            -गौरव अवस्थी   
 09415034340

1 thought on “सिर्फ रूप नहीं दादी के गुण भी हैं प्रियंका में”

  1. Mujhe yaad hai shaam ho Ravi thi aur code of conduct ka bhoot mandala raha tha ,meeting me priyanka ne kaha apni Perth ki Taraf Ba’ath ghuma kar ki aapne kaise inhe aapne diyarbakir jisne mere papa ki Perth me churn ghopa……….bus Arun Nehru ne pack up announce kar Diya……….yeh charismatic personality hai

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