मोदी की हवा निकालने के लिए राजनाथ का यूपी गेमप्लान

rajnath editभाजपा के लिए कहा जाता है कि उसे दुश्मनों की जरूरत नहीं है। यह काम पार्टी के नेता ही पूरा कर लेते हैं। इस बार यह काम पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कर दिया है। मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने और खुद को दावेदार पेश करने के लिए उन्होंने यूपी की एक दर्जन सीटों पर ऐसे लोगों को टिकट दे दिए जिनके जीतने की उम्मीद नहीं है।

राजनाथ सिह को लगता है कि अगर भाजपा की 200 सीटों से कम सीटें आईं तो उनको प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल सकता है। अच्छी खासी मोदी लहर को भाजपा नेताओं ने आपस में लड़कर बरबाद कर दिया। राजनाथ सिंह पहले भी यूपी में भाजपा को तब बरबाद कर चुके हैं, जब वह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। अब प्रदेश के सभी नेताओं को हाशिये पर धकेल कर राजनाथ सिंह फिर यहां मोदी का खेल बिगाड़ना चाहते हैं। यह सब वह बातें हैं जो पार्टी के अदने से लेकर बड़े नेता तक करने लगे हैं।

दिल्ली में अपनी सरकार बनाने का सपना देखने वाली भाजपा में इस तरह की बातचीत चुनाव से ठीक पहले शुरू हो जायेगी इसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। मगर जिस तरह टिकट बंटवारे को लेकर भाजपा में जंग शुरू हुई है उसने मोदी के सपनों को चूर-चूर कर दिया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को इस विरोध की कल्पना भी नहीं थी। दरअसल नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के साथ ही पार्टी में गुटबाजी शुरू हो गयी थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने तब भी नरेन्द्र मोदी का विरोध किया था। इस विरोध के बाद उग्र भाजपा कार्यकर्ताओं ने आडवाणी के घर पर पथराव करके भविष्य की राजनीति के साफ संकेत दे दिये थे। संघ और भाजपा दोनों जान गये थे कि भाजपा कार्यकर्ताओं की भावनायें उफान पर हैं। ऐसे में मोदी को आगे करके ही चुनावी जंग जीती जा सकती है।

इसमें कोई दोराय नहीं कि नरेन्द्र मोदी की पूरे देश में हवा बन गयी है। मगर इस हवा से कांग्रेस से ज्यादा परेशान खुद भाजपा के नेता हो गये। इसमें कोई दोराय नहीं कि भाजपा में मोदी को मोदी के अलावा काई दूसरा नेता पसंद नहीं करता है। शुरूआती दौर में जिस तरह मोदी के पक्ष में हवा बनती नजर आयी उससे अंदाजा लग गया कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को लगभग 230 से ज्यादा सीटें मिल सकती हैं। कई न्यूज चैनलों के सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आयी।

मगर भाजपा की पहली पंक्ति के नेता इससे बेहद परेशान हो गये। 240 तक संख्या पहुंचने का मतलब साफ था कि नरेन्द्र मोदी आसानी से इस देश के प्रधानमंत्री बन जाते अगर मोदी इस कुर्सी तक पहुंच जाते तो भाजपा के कई बड़े नेताओं का जिंदगी भर का सपना टूट जाता। इन स्थितियों में सिर्फ एक यही उपाय था कि किसी भी कीमत पर भाजपा 200 से ज्यादा सीटें हासिल नहीं कर सके। ऐसा तभी संभव था कि जब ज्यादा से ज्यादा सीटों पर टिकट ऐसे लोगों को दिया जाये जिनको लेकर पार्टी में विरोध हो।

सूत्रों का कहना है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इस प्रयोगशाला की शुरूआत उत्तर प्रदेश से ही करने की ठानी। यूपी में भाजपा के रणनीतिकार मान रहे थे कि थोड़े प्रयासों से पार्टी को 40 से 50 सीटें मिल सकती हैं। मगर जब टिकट घोषित हुए तो भाजपा कार्यकर्ता भौचक्के रह गये। अब तक घोषित उम्मीदवारों में से 23 ऐसे प्रत्याशियों को टिकट दे दिये गये जो अपना दल बदल कर पार्टी में शामिल हुए। यही नहीं कुछ तो ऐसे प्रत्याशी थे जो पिछले लंबे समय से मोदी और पार्टी को हत्यारा तक कहते रहते थे। कार्यकर्ता हैरान थे कि आखिर जो लोग सालों तक भाजपा को कोसते रहे वह 24 घंटे में आखिर टिकट पाने में कैसे कामयाब हो गये?

दरअसल यही रणनीति मोदी की टीम भी अपना रही थी। यह लोग भी समझ रहे थे कि अगर कुछ सीटें कम रह गयीं तो भाजपा में प्रधानमंत्री पद के कई दावेदार उभर सकते हैं। यही सोच ध्यान में रखकर पहले उन लोगों को किनारे लगाने का काम शुरू किया गया जो खुद प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं या फिर उनके समर्थन में आ सकते हैं। भाजपा के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी नरेन्द्र मोदी की राजनीति को भली-भांति जानते थे। वह गुजरात की गांधीनगर सीट से लगातार चुनाव जीतते रहे थे। मगर इस बार वह नरेन्द्र मोदी का विरोध करके समझ गये थे कि अब गांधी नगर की सीट उनके लिए सुरक्षित नहीं है। मोदी अपने विरोधियों को किस तरह निपटाते हैं यह बात भाजपा के सभी नेता जानते हैं।

लिहाजा आडवाणी ने भोपाल से चुनाव लडने की इच्छा जताई। मोदी भला इतना अच्छा अवसर कहां चूकने वाले थे उन्हें लगा कि अगर आडवाणी को ही निपटा दिया तो बाकी नेता इस हैसियत में नहीं रहेंगे कि वह मोदी का विरोध कर सकें। लिहाजा पहली सूची में आडवाणी का नाम ही नहीं था। जो शख्स कभी पूरी पार्टी का टिकट बांटता था उसी का नाम शुरुआती सूची में नहीं था। बाद की सूची में आडवाणी का नाम गांधीनगर सीट से घोषित हुआ। आडवाणी कोप भवन में गये। संघ ने हस्तक्षेप किया। आडवाणी को बताया गया कि उनका सम्मान सिर्फ इसी में है कि राजनाथ सिंह कहेंगे कि आडवाणी जी जहां से चाहें चुनाव लडें और उनको कहना होगा कि वह गांधीनगर से ही चुनाव लड़ेगे। आडवाणी जानते थे कि जिस समय पूरी पार्टी मोदी के सामने नतमस्तक हो रही हो उस समय ज्यादा विकल्प भी नहीं हैं। कड़वा घूंट पीते हुए आडवाणी ने इस प्रस्ताव को मान लिया।

टीम मोदी ने इसके बाद आडवाणी समर्थकों को निपटाना शुरू किया। गुजरात से सात बार सांसद रहे हरेन पाठक का टिकट सिर्फ इसलिए काट दिया गया क्योंकि वह आडवाणी के भक्त हैं। जसवंत सिंह को नीचा दिखाने और पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए उनके कट्टर दुश्मन सोनाराम को कांग्रेस से लाकर टिकट थमा दिया गया। मजबूर जसवंत सिंह ने निर्दलीय चुनाव में उतरने का मन बनाया। सुषमा स्वराज जो आडवाणी समर्थक मानी जाती हैं उन्हें भी उनकी हैसियत बताने के लिए कर्नाटक में श्रीरामूलू और येदुरप्पा को पार्टी का टिकट दिया गया। इन दोनों नेताओं का सुषमा लगातार विरोध करती रही हैं।
जब नरेन्द्र मोदी की टीम इन सब वरिष्ठ नेताओं को निपटाने में जुटी थी तब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह मन ही मन प्रफुल्लित हो रहे थे।

सब कुछ वैसा ही हो रहा था जैसा वह चाह रहे थे। अब उनकी टीम के सामने सिर्फ एक ही लक्ष्य था कि भाजपा की सीटें 200 से ज्यादा नहीं होने पायें। राजनाथ सिंह ने बड़ी सफाई के साथ यह काम उसी प्रदेश में कर दिया जहां से मोदी को सबसे ज्यादा उम्मीद थी। नरेन्द्र मोदी शुरूआती दौर में खुद लखनऊ से लड़ना चाह रहे थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह जानते थे कि आम आदमी के पार्टी के प्रभाव के चलते अब गाजियाबाद की सीट उनके लिए सुरक्षित नहीं रह गयी है। वह खुद लखनऊ के रास्ते लोकसभा पहुंचना चाहते थे। उन्होंने तर्क दिया कि वाराणसी से मोदी के लड़ने से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की काफी सीटों पर भाजपा को फायदा होगा। यह बात कहकर उन्होंने मोदी को उस बनारस से लड़वा दिया। जहां से मुरली मनोहर जोशी मात्र सत्रह हजार वोटों से जीते थे।

ऐसा करके राजनाथ सिंह ने जोशी से भी अपना हिसाब बराबर कर लिया। राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने से पहले मुरली मनोहर जोशी अध्यक्ष बनना चाहते थे। राजनाथ सिंह ने उन्हें कानपुर भेजकर अपना हिसाब चुकता कर लिया। अब कानपुर से जोशी को जीतने के लाले पड़े हैं। राजनाथ सिंह ने भी मोदी की लाइन पर चलते हुए अपने दुश्मनों को निपटाने की कामयाब योजना बना डाली। एक समय में कलराज मिश्रा ने उनका बहुत विरोध किया था। कलराज मिश्रा को देवरिया से टिकट देकर उसका हिसाब किताब राजनाथ सिंह ने बराबर कर लिया। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही समेत भाजपा के दर्जनों वरिष्ठ नेता कलराज मिश्रा का खुलेआम विरोध कर रहे हैं। कोई चमत्कार ही उनको देवरिया से जीत दिला सकता है।

यही नहीं राजनाथ सिंह ने एक और जबरदस्त खेल खेलकर मोदी की फजीहत कराने की पूरी रणनीति बना ली है। एक ओर भाजपा दावा कर रही है कि नरेन्द्र मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने पर उसे पूर्वांचल की सभी सीटों पर फायदा मिलेगा तो दूसरी ओर अपने दखल से राजनाथ सिंह ने वाराणसी के आस-पास सभी सीटों से ऐसे लोगों को टिकट दिला दिए जिनकी जीतने की आशा बेहद कम है। ऐसा होने पर यह बहुत आराम से कहा जा सकेगा कि मोदी अपने आस-पास की सीटें ही नहीं जितवा पाये तो फिर कैसा उनका प्रभाव?

उदाहरण के लिए जौनपुर से रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े रहे पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानन्द चुनाव लड़ना चाहते थे। वह यहां से पहले भी सांसद रह चुके हैं। माना जा रहा था कि वह आसानी से इस सीट को निकाल भी लेंगे। मगर राजनाथ सिंह सीट पर पहले तो बसपा सांसद धनंजय सिंह को ही पार्टी में लाना चाहते थे मगर उसकी आपराधिक छवि और जेल में होने के कारण उनका यह मंसूबा पूरा नहीं हो सका। तब उनके खास माने जाने वाले केपी सिंह को टिकट दे दिया गया जो बेहद कमजोर प्रत्याशी माने जा रहे हैं। साधू संत भी इस फैसले से आग बबूला हैं।

खुद राजनाथ सिंह चंदौली के रहने वाले हैं। वह खुद चंदौली से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। यहां वीरेन्द्र सिंह का भाजपा से टिकट तय था। वह चंदौली से सबसे मजबूत प्रत्याशी थे। मगर अप्रत्याशित रूप से वहां टिकट महेन्द्र नाथ पांडेय को दिया गया। भाजपा कार्यकर्ता खुलेआम कह रहे हैं कि यहां सिर्फ इसलिए टिकट गलत दिया गया जिससे निर्दलीय प्रत्याशी सुशील सिंह जीत जायें। सुशील सिंह कुख्यात अपराधी बृजेश सिंह के भतीजे हैं और बृजेश सिंह पर राजनाथ की कृपा मानी जाती है। जिन वीरेन्द्र सिंह की जीत चंदौली से तय मानी जा रही थी उन्हें भदोही से टिकट दे दिया गया। भदोही में कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं क्योंकि वह यहां से रामरती बिंदु को ही प्रत्याशी मान रहे थे।

सलेमपुर सीट से भी भाजपा ने रवीन्द्र कुशवाहा को प्रत्याशी बना दिया जबकि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे पंकज शेखर यहां से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाह रहे थे। भाजपा कार्यकर्ता भी इसकी तैयारी कर रहे थे मगर बाजी किसी और के हाथ लग गयी। पूर्वांचल की अन्य कई सीटों पर भी भाजपा का यही हाल है। डुमरियागंज के भाजपा नेता हैरान हैं कि सालों से जो जगदबिंका पाल भाजपा को दिनरात कोसते थे उन्हें भाजपा में शामिल क्यों किया गया? और अगर किया भी गया तो उन्हें आनन फानन में टिकट क्यों दे दिया गया। कुछ ऐसी ही पीड़ा इलाहाबाद के वरिष्ठ नेता केसरी नाथ त्रिपाठी की है। उनका कहना था कि सपा के नेता श्यामाचरण गुप्त को अचानक पार्टी में शामिल करवाकर उन्हें टिकट किस आधार पर दे दिया गया। जबकि उनकी छवि विवादित है। उल्लेखनीय है श्यामाचरण गुप्ता कुख्यात डकैत ददुआ को संरक्षण देने के आरोप में खासे विवादित रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ता उनके डकैतों के समर्थन को लेकर उनका कई बार विरोध कर चुके हैं। मगर अब वह इलाहाबाद से भाजपा के उम्मीदवार हैं। कार्यकर्ता समझ ही नहीं पा रहे कि डकैतों को संरक्षण देने वाले लोग रातों रात पार्टी ज्वाइन करके उम्मीदवार कैसे बन जाते हैं।

कुछ ऐसी ही हालत गोंडा की भी है। यहां भी कार्यकर्ताओं को सारी तैयारियों को दर किनार करते हुए अन्तिम समय में पार्टी की ओर से कीर्तिवर्धन सिंह को टिकट थमा दिया गया। जिसके चलते भाजपा कार्यकर्ताओं में खासा रोष व्याप्त है। इनके पिता एक महीने पहले तक सपा सरकार में काबीना मंत्री थे। राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के सचिव व वरिष्ठ पत्रकार सिद्घार्थ कलहंस का कहना है कि जब मोदी लहर है तब भाजपा चोरों, लुटेरों और दल बदलुओं को टिकट दे रही है अगर लहर न होती तो क्या हाल होता? जाहिर है भाजपा अध्यक्ष ऐसे सवालों का जवाब नहीं देना चाहेंगे।

लेखक संजय शर्मा लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और वीकएंड टाइम्स के संपादक हैं
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3 thoughts on “मोदी की हवा निकालने के लिए राजनाथ का यूपी गेमप्लान”

  1. modi k alawa dusra koi vikalp nahi h ,ye modi ki takdeer me bharat ka p.m. hona nahi likha h balki bharat ki takdeer me modi-raaj likha h ,ye mahasay jo likh rahe h plan-172 koi bakwas h ,dash ki janta modi ko p.m. maan chukee h ,log m.p. candidate ko nahi modi ko vote daingey

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