पंचायतीराज चुनाव : शैक्षिक योग्यता लागू करने के मायने

pachayat chunavसूबे की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपनी दूसरी पारी में ताबड़तोड़ निर्णय ले रही हैं, जिनमें अभिजात्य एवं सम्पन्न वर्ग की वर्चस्ववादी नीति का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई दे रहा है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देकर सुराज की बात कर सत्ता में आई वसुन्धरा सरकार को शायद यह ज्ञात नहीं कि ऐसा करने से बहुसंख्यक मेहनतकश समाज की जनतांत्रिक आकांक्षाओं का निरादर हो रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस अब वसुन्धरा सरकार को कठघरे में खडा करने का कोई मौका गंवाना नहीं चाहती, तभी पंचायतीराज चुनावों में शैक्षणिक योग्यता को लेकर प्रदेश कांग्रेस ने न्यायालय का दरवाजा खटखटा दिया है।
सुराज यात्रा के दौरान और लोकसभा चुनाव में भी ‘सबका साथ और सबका विकास’ का नारा देने वाली वसुन्धरा सरकार द्वारा वर्तमान में पंचायतीराज चुनाव में प्रदेश के मेहनतकष लोगों की आकांक्षाओं का निरादर किया गया है। दरअसल, सरपंच के लिए आठवीं एवं जिला परिषद व पंचायत समिति सदस्यो के लिए दसवीं पास की शैक्षणिक योग्यता लागू करने को कबिनेट मंजूरी मिलने के बाद कई नेताओं के पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई है। महिला आरक्षित सीट पर स्थिति विकट है, क्योंकि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की आठवी पास महिलाएं मिलना टेढी खीर साबित हो रही है, लेकिन इतना जरूर है कि भाजपा-कांग्रेस समर्थित युवाओं में इस बात को लेकर उत्साह है कि अब गांवों में भी शिक्षित जनप्रतिनिधियों को चुना जाएगा।
प्रदेश में हो रहे पंचायतीराज आम-चुनाव को लेकर राजस्थान सरकार द्वारा तय की गई शैक्षिक अर्हता कांग्रेस के गले नहीं उतर रही है। कांग्रेस इसे असंवैधानिक निर्णय मानती है, तो वहीं भाजपा का कहना है कि शिक्षित जनप्रतिनिधि होना जनभावना के अनुरूप है। राजस्थान सरकार के मन्त्री गुलाबचन्द कटारिया के बयान के बाद कांग्रेस का मानना है कि साजिश के तहत सरकार द्वारा यह कदम उठाया गया है। नगर निकाय चुनावों के दौरान ऐसी योग्यता क्यों नहीं की गई।
सरकार के मन्त्री गुलाबचन्द कटारिया ऐसे ब्यान देते है कि शैक्षणिक अर्हता के कारण आधी कांग्रेस का खत्म हो जायेगी, इससे साफ हो जाता है कि इनके द्वारा राजनीतिक विद्वेश के चलते यह कदम उठाया है। अचानक इसे लागू करके लोगों के चुनाव लड़ने के संवैधानिक अधिकार का हनन किया है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए राज्य सरकारों को पंचायतों के कामकाज में हस्तक्षेप करने की बड़ी छूट दे दी गई, इसके चलते पंचायती राज व्यवस्था राज्य सरकारों की दया पर निर्भर हो गई है। इसलिए कभी मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार दो बच्चों से ज्यादा होने पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा देती है, तो कभी राजस्थान की भाजपा सरकार शैक्षणिक योग्यता की बात को लेकर ऐसा निर्णय ले लेती है।
आदिवासी, दलित और महिलाओं के साक्षर-शिक्षित होने का लक्ष्य पाने के लिए तो अभी लंबा सफर तय करना है। ऐसे में जहां इन वर्गों के लिए पंचायती राज में आरक्षण है, वहां आठवीं पास उम्मीदवार कहां से आएंगे? इस व्यवहारिक पहलू पर वसुंधरा सरकार का ध्यान शायद नहीं गया। दुर्भाग्य से राजस्थान का अनुसरण छत्तीसगढ़ भी कर रहा है, जहां पंचायती राज चुनाव के लिए प्रत्याशियों के लिए साक्षर होना अनिवार्य कर दिया गया है। प्रदेश में ऐसे अनगिनत गांव हैं, जिनका विकास निरक्षर सरपंचों द्वारा करवाया गया है, बात शिक्षित होने या नहीं होने की नहीं है, ब्लकि सरंपच ऐसा व्यक्ति चुना जाना चाहिए जो अपने गांव की मूलभूत समस्याओं और उनके समाधान से वाकिफ हो।
भाजपा के मत्रिंयों का कहना है कि वित्तीय लेन-देन में सरपंच, प्रधान और जिला प्रमुख के हस्ताक्षर से ही चेक जारी होते हैं। शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य करने के पीछे तर्क है कि हस्ताक्षर करने से पहले ये जनप्रतिनिधि खुद पढ़कर समझ सकेंगे। चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं विधि मन्त्री राजेन्द्र राठौड का कहना है कि यह प्रोग्रेसिव कानून है, इस मन्त्रिमण्डल द्वारा अनुमोदित किया गया है। संवैधानिक तौर पर राज्य मन्त्रिमण्डल को अधिकार है कि वो निर्णय लें। आज पंचायतीरात में सरपंच व पदाधिकारियों को चेक पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं, लोगो पर बडी संख्या में आनन-फानन में मुकदमें बनते हैं, इसलिए आज के युग में आठवीं और दसवी पास की अर्हता रखना जायज है।
– राकेश पंवार, चुरू
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2 thoughts on “पंचायतीराज चुनाव : शैक्षिक योग्यता लागू करने के मायने”

  1. Educated leaders are essential for development of india. Litrate person will encaurage the uneducated person for their own skil development.

  2. Education bill should be paased & education should must be compulsoey to every person upto 12th std

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