भाजपा की पराजय का कारण उसके झूठे वायदे और अनियंत्रित भाषा

चौधरी मुनव्वर सलीम
चौधरी मुनव्वर सलीम

१९४७ से हिन्दुस्तानी अवाम लगातार सरकारों से गरीबी, बेरोजगारी, रोटी, कपड़ा और मकान,देहातों की सम्पन्नता,दवा,पढ़ाई जैसी बुनियादी समस्याओं के निराकरण की उम्मीद के साथ अपने समर्थन का ऐलान करती रही हैं !
अंग्रेज़ की बरबरियत और हिन्दुस्तानियों को दोयम दर्जे का नागरिक माने जाने के रवैये ने एक इंकिलाब का ऐलान किया और 15 अगस्त १९४७ को आज़ादी के सूरज की पहली किरण जब नमूदार हुयी तब करहाते हुए हिन्दुस्तान ने इतमिनान की सांस लेते हुए सोचा था कि अब वास्तविक रूप से हिन्दुस्तान सोने की चिड़िया बनेगा ! लेकिन अर्थशास्त्री आईने में अगर देखा जाये तो १९४७ में हमारे बजट का आयडियल यानी डालर और हिन्दुस्तानी रुपया दुनिया के बाज़ार में बराबर था ,लेकिन वक़्त गुज़र गया और मेरे देश का रुपया नीचे तथा डालर ऊपर चढ़ता चला गया उसी के साथ अवामी ख्वाब भी चकनाचूर होते चले गए !
बात को बहुत लंबा न करते हुए मैं मौजूदा सियासी हालात पर यह कहना चाहता हूँ कि हिन्दुस्तानी वजीर-ए-आज़म नरेन्द्र मोदी जब कांग्रेस मुक्त और भाजपा युक्त भारत बनाने का नारा लेकर निकले तब हिन्दुस्तानी अवाम के सीने में एक बार फिर व्यवस्था परिवर्तन के वह ख्वाब बेदार हुए थे जिनको शाहकार देखने के लिए पिछले 60 साल से अधिक समय से जनता को इंतज़ार था !
बेरोजगारी से सिसकते लगभग 15 करोड़ हिन्दुस्तानी नौजवान को मोदी जी के उन ऐलानात पर विशवास हो गया जिसमे उन्होंने कहा था कि मैं हिन्दुस्तान का काला धन मुल्क में वापस लाकर 15-20 लाख रुपया हर व्यक्ती की जेब में पहुंचा दूंगा और जीवन यापन के लिए एक सम्मानजनक रास्ता बना दूंगा ,सीमाओं की सुरक्षा और किसानों की सम्पन्नता के साथ भ्रष्टाचार मुक्त भारत का ऐलान यानी सामग्र परिवर्तन का तात्कालिक भाजपा के स्टार प्रचारक और वर्तमान भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी की भाषा शैली से समझ आया था मोदी जी के क्रांतिकारी उद्बोधन से देश की मासूम जनता को यह विशवास हो गया था कि शायद 56 इंच के सीने का ऐलान करने वाला यह शख्स आर्थिक असमानता की खाई को कम कर देगा और अब ज़मीन पर खडा मुरझाया हुआ चेहरा खिलेगा और आसमान पर उड़ने वाले लोग थोड़ा नीचे आयेंगे और वह 75% पूंजी जो 2 दर्जन घरानों ने अपने दौलत खानों में बंद कर रखी है सड़कों गलियों और खेतों-झोपड़ों तक पहुंचेगी लेकिन जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यह कह दिया कि 15 लाख प्रतीव्यक्ती को दिए जाने का नारा सिर्फ चुनावी था तब देश की जनता ने अपने साथ होने वाले धोखे का आक्रोश व्यक्त करते हुए दील्ली में जवाब देने का तय कर लिया !
दरअसल मोदी समर्थकों की जीत के अहंकार की डूबी सोच ने भारतवासियों की वैचारिक प्रतिबद्धता को समझने में उस समय बुनियादी भूल कर दी जब स्वतंत्रता आन्दोलन में कहीं नहीं दिखाई देनी वाली और अपने आपको राष्ट्रवादी विचारधारा का स्वयंभू महान स्तंभ बताने वाली आर.एस.एस. के मुखिया मोहन भागवत जी ने यह कह दिया कि हमें हिन्दू राष्ट्र चाहिए !
यहाँ से भाजपा नेताओं के भाषाई नफरत से लबरेज़ नारे इस हद तक पहुँच गए कि भाजपा सरकार की एक मंत्री साधवी होते हुए उर्दू डिक्शनरी की सबसे गंदी गाली यानी हरामजादे तक का प्रयोग इसी दिल्ली की सड़कों पर कर रही थी !
शायद भाजपा और मोहन भागवत जी इस सच को जानने और मानने में असमर्थ रहे कि सुलतान टीपू ,पंडित पूनिया,बहादुर शाह ज़फर,लक्ष्मी बाई,तात्या टोपे,बेगम हज़रत महल,महात्मा गांधी ,सीमान्त गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान,अली ब्रादरान और बी अम्मा का हिन्दुस्तान दुनिया में समरसता और सदभाव का मार्गदर्शक कल भी था और आज भी है ! इसी कारण पड़ोस में बसे नेपाल में धर्म विशेष की बाहुलता होते हुए भी वहां हिन्दू राष्ट्र का नारा स्वीकार नहीं किया गया लेकिन देश की जनता यह जान चुकी है कि मोदी समर्थक अपने नारों और विचारों से लोगों का ध्यान बांटने के लिए बाकायदा घर वापसी और लव जिहाद जैसे नारों को बुलंद कर रहे हैं !
दिल्ली चुनाव का फैसला कौन जीतेगा इस पर कम किस को हराना है इस पर अधिक रहा इन राजनैतिक परिस्थितियों में जब चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल लड़ा जा रहा था ! तब इसे केवल एक राज्य का चुनाव बोलकर छोटा नहीं किया जा सकता यह एक ऐसा बड़ा राजनैतिक फैसला है जैसा कभी स्वर्गीय देवीलाल जी की हरियाणा में जीत के पश्चात देश में कांग्रेस के विरुद्ध एक मज़बूत राजनैतिक विकल्प की शुरूवात हुयी थी दिल्ली चुनाव से सदभावी भारत को विशवास और इतमिनान होना चाहिए कि देश के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की कीमत पर हिन्दुस्तानियों को कुछ भी स्वीकार नहीं है !
अगर इस आलेख में मोदी जी की ओबामा भक्ती का ज़िक्र नहीं किया गया तो बात अधूरी रह जायेगी ओबामा के सफर पर खर्च होने वाला गरीब अवाम का अनुमानित १००० करोड़ रुपया बेमानी सत्कार के रूप में स्वाभिमानी भारतवासियों की आत्मा को हमेशा झिंझोड़ता रहेगा ! डरे,घबराये और कमज़ोर ओबामा ने इस देश के नागरिको का,फौजियों का और सरकार का कदम-कदम पर अपमान किया था जब ओबामा के कुत्तों को 5 सितारा होटलों में ठहराया गया ,हमारी फौजियों की सुरक्षा पर अविश्वास व्यक्त किया गया,महान भारत के राष्ट्रपती की कार में बैठने से इनकार कर दिया गया ! मैं यहाँ ओबामा के सत्कार में पहने गए मोदी जी के 9.75 लाख के सूट का तजकिरा ज़रूर करना चाहता हूँ बात सिर्फ 9.75 लाख के सूट की नहीं है बात यह है कि वह हिन्दुस्तान जहाँ 43 करोड़ लोग 32-33 रूपये रोज़ पर जीवन यापन करते हैं,जहाँ 62% खेत प्यासे है जो आसमानी वर्षा पर निर्भर हैं,जहाँ 15 करोड़ पढ़े लिखे नौजवान डिग्रियों को हाथ में लेकर तनहाई में इनसे रोज़गार की बाते करते हैं,जहाँ 2 करोड़ बच्चे स्कूल जाने के बजाये मजदूरी पर जाकर अपनी पेट की आग को बुझाते हैं,जहाँ दुनिया की सबसे बड़ी झोपड़ों की तादाद है जिस भारत में कुपोषण से मरने वालों की तादाद दुनिया में सबसे अधिक है उस गरीब भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ओबामा को दिखाने के लिए 9.75 लाख का सूट पहनते हैं लेकिन काश मोदी जी यह देख सकते कि उनके मेहमान-ए-ख़ास बराक हुसैन ओबामा सरज़मीन-ए-हिन्द पर आने के बाद अर्धनग्न महात्मा गांधी की समाधी पर जब माथा टेकने गए तब उन्होंने यह कह कर बापू को श्रद्धांजली दी कि अगर गांधी नहीं होते तो ओबामा अमरीका का राष्ट्रपती नहीं होता इस युग के मानवता के सबसे बड़े प्रतीक बापू को मोदी जी के ख़ास मेहमान ओबामा ने इन ऐतिहासिक अल्फाजों के साथ श्रद्धांजली इस लिए पेश की थी चूंकी गांधी ने नस्ल भेद के खिलाफ न सिर्फ हिन्दुस्तान बल्की दुनिया के एनी देशों में भी बराबरी और सद्भावना की लड़ाई लड़ कर इंसानी सैद्धांतिकता का सन्देश देने का साहस किया था ! लेकिन मोदी समर्थक तो ऐसे महान इंसान के हत्यारे की प्रतिमाएं पूरे देश में लगाने की गैर ज़रूरी बहस को चलान का काम कर रहे थे ! तब देशवासियों को तलाश थी एक ऐसे मौके की जहाँ वोह अपने मन में धधक रहे गुस्से के ज्वालामुखी के लावे से इस अहंकार को भस्म कर सकें तभी दिल्ली चुनाव ने दस्तक दी और देशवासियों ने दिल्ली चुनाव में मत के माध्यम से अपनी राष्ट्रभक्ती तथा देशप्रेम का ऐलान करने का फैसला लिया ! मैं दिल्ली के इस चुनाव को सियासी तौर पर इस निगाह से देखता हूँ कि जनता ने मोदी को अस्वीकार करने की शुरुवात कर दी है इसके दूरगामी परिणामों का इंतज़ार करना होगा ! चूंकी मौजूदा सियासी हालत बिलकुल वैसे ही नज़र आ रहे हैं जैसे अब से लगभग एक साल पूर्व नजर आये थे यानी दिल्ली ने ही सबसे पहले कांग्रेस नीत केंद्र सरकार को उखाड़ फैंकने का सन्देश दिया था और आज एक बार फिर दिल्ली की जनता ने केंद्र की भाजपायी सरकार के खिलाफ अपना मत व्यक्त कर आगामी सियासत के चेहरे पर से वक़्त से पहले ही नकाब उतार दिया है ! देखना यह है कि मोदी समर्थक और स्वयं मोदी जी दिल्ली की इस हार से क्या शिक्षा लेते हैं !
-चौधरी मुनव्वर सलीम
सांसद

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