योग प्रदर्शन की वस्तु नहीं है ?

sohanpal singh
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आज यानि कि २१ जून २०१५ वर्ष का सबसे बडा दिन साथ ही प्रधान मंत्री के प्रयासों से आज का दिन संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर विश्व योग दिवस के रूप में स्थापित किया गया और आज ही भारत के नेतृत्व में विश्व के लगभग दो सौ देशो में सार्वजनिक रूप से पार्कों / बडे हाल यहाँ तक कि दिल्ली के राजपथ सहित विभिन्न स्थलों पर योग का सार्वजनिक प्रदर्शन किया गया गया ।

चूंकि योग आसन जिसका प्रदर्शन आज प्रधानमंत्री और केन्द्रीय मंत्रियों सहित लाखों लोगो ने सार्वजनिक रूप से किया वह समाचारों और टी वी मीडिया का मुख्य आकर्षण तो अवश्य बन गया है । साथ ही छोटे मोटे ठेकेदार व्यापारियों और उनसे जुडे मजदूरों की रोजी रोटी साधन बन गया । लेकिन स्वयं योग का कितना नुकसान इस भोंडे आयोजन और प्रदर्शन के कारण हुआ है उसका आंकलन और नुकसान तो आने वाली पीढी को ही भुगतना होगा ।

यह आशंका निर्मूल भी नही है वह इस कारण से कि योग आसन वगैरा भारतीय अध्यात्म का आठंवा भाग ही है ।उसी आध्यात्म को जानने समझने के लिये लाखों विदेशी प्रयटक के रूप में हर वर्ष मारत की यात्रा पर आते है। जिस कारण से अरबों रुपये की विदेशी मुद्रा भारत मे आती है । और भारत आध्यात्मिक गुरु भी कहलाता है। योग भारतीय पुरातन योग जिसके सूत्रधार तो महाऋषि पतंजलि कहे जाते हैं लेकिन चूँकि भारत में सभी कुछ धर्म से जोड़ने की प्रथा है उस कारन से भी अधार्मिक कृत्य भी धार्मिक बना दिए जाते इस लिए योग को धर्म से नत्थी न किया जय तो फिर धर्म के नाम पर रोजी रोटी चलाने वाले तो बेरोजगार ही हो जायेंगे ! इसलिए ऐसे कुतर्क अगर सरकारी स्तर पर न किये जायं तो हिन्दू वादी सरकार की छवि कैसे स्थापित होगी ? आयुष मंत्रालय की ओर योग दिवस पर जारी बुकलेट में भगवन शिव को योग का प्रणेता कहा गया है ! जब की सरकारी योग गुरु वर्षों से यस्थापित करने में लगे हुए हैं की योग के प्रणेता महाऋषि पतंजलि थे ! भगवान शिव का तो निवास ही हिमालय था जहां रह कर वे ध्यान मुद्रा में लीं रहते थे ! ध्यान मुद्रा भी योग के अष्ठांगयोग का ही एक भाग ही है! अष्ठांगयोग आठ क्रियायों का योग है ! ( 1) यम (2) नियम (3) आसन (4) प्राणायम (5)प्रत्याहार (6) धारणा (7) ध्यान और (8)समाधि ! 21 जून को जिस आयोजन को योग दिवस के रूप में मनाया गया है वह केवल आसान की क्रियाओं का प्रदर्शन मात्र है आसन की सभी क्रियाओं में केवल शरीर को प्राण वायु से भरपूर करने के उपाय होते हैं ! इसीलिए अनुलोम विलोम क्रिया का पालन किया जाता आसन के प्रत्येक सोपान में प्राणवायु (आक्सीजन )को स्वास् के द्वारा फेफड़ों लेने और स्वास् छोड़ने की प्रक्रिया का निरंतर पालन करना होता है । इस लिए यह केवल स्कूल कालेज में होने वाली पी टी क्रिया के अतिरिक्त कुछ नहीं है ! हमारे फौजी जवान और अधिकारी प्रातः चार बजे उठ कर जो पी टी करते है वह सब भी इशी आसान पद्धति का मॉडिफाइड रूप ही तो है जब वह दौड़ लगते है तो स्वाभाविक रूप से उनकी स्वास् भी तेज चलने लगती है जिस कारण से अधिक प्राण वायु उनके फेफड़ों जाती है । लेकीन योग के नाम पर जिस प्रकार धार्मिक उन्माद फैलाया जा रहा है वह उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि योग केवल आसन नही है योग की आठों विधा मिल कर सम्पूर्ण योग बनती हैं !
इसलिए सरकारी स्तर पर योग का विकृत रूप पेश करना उचित नही है । क्यों कि जब जब राजनीतिक हितों का टकराव होता है यानि कि राजनीतिक समस्याओं का समाधान नही निकल पाता उस समय राजनीतिक पार्टियां इसी प्रकार के टोटके किया करती है। हितों के टकराव सबसे बडा कारण यह है कि आज भारत में सबसे बडे दो ही ब्रान्ड है एक बाबा राम देव दूसरे नरेन्द्र मोदी । यूपीए शासन के समय बाबा रामदेव ने योग के कार्यक्रम की आड में काले धन को वापस लाने के लिए एक बहुत बडे आन्दोलन को चलाने की कोसिस की थी लेकिन सरकार ने उस आन्दोलन को कुचल दिया था । अभी हाल के दिनो में बाबा रामदेव ने काले धन के विरूद्ध कुछ हलचल की कोसिस की थी लेकिन प्रधानमंत्री ने शीघ्र ही उनसे यह मुद्दा ही सदा के लिए छीन लिया है और उनको योग तक ही सीमित कर दिया है और हो सकता है कि उनको विश्व भर के लिए योग का भारतीय ब्रान्ड एम्बेसडर ही बना दिया जाय ।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारतीय राजनीति के सबसे सफलतम राजनैतिक है जो अपने विरूद्ध हो रही किसी भी कानाफूसी को अपने लाभ में बदल लेने की कला के अब तक के सफलतम खिलाडी माने जाते है । इसलिए उन्होंने एक तीर से कितने ही निशाने लगाने का कार्य किया है ।

१) ललित गेट यानिकि कानून से भागते फिर रहे ललित मोदी और दो महिला मंत्रियों द्वारा भगोडे ललित मोदी की मददगार होने पर भी अभी तक त्याग पत्र न देना ।
२) बढती महंगाई से जनता का ध्यान हटाना ।
३)पार्टी में बढ रहे असंतोष को देखते हुए अपनी स्वीकारता को योग के माध्यम से बढाना ।
४) काले धन को वापस लाने की असफलता से जनता ध्यान बांटना । आदी आदी ।।।।।।।
सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि योग के नाम पर भोंडा प्रदर्शन
फिर भी महिमामंडन के सारे मानदंड ध्वस्त हो गए हैं । एक प्रदेश के मुख्य मंत्री योग के नाम पर केवल अपना पेट ही हिला पा रहे थे । शिक्षा की मंत्री जमीन पर बैठ कर ऊठ भी नही पा रही थी । दिल्ली में राजपथ के अतिरिक्त बाकी सभी स्थानो पर केवल औपचारिकता भर निभाई गई । चूंकि योग महज एक जीवनोपयोगी विधा जिसके पर्वर्तक पदपर्दर्शक हिन्दु वादी धार्मिक ऋषि और योगी ही रहे है जिस कारण से हिन्दुस्तान में हिन्दुओं की धार्मिक धरोहर से आगे नही बढ सका है । योग की मिमांशा करते समय योगियों ने अष्टागं योग की सभी क्रियाओं/विधाओं को एकांत में करने की सलाह दी है । इसीलिए भोजन और भजन की तरह ही योग भी एकांत मे करना चाहिए ।इस कारण यह प्रदर्शन की वस्तु नही है ।

s.p.singh

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