हुकुमरानों की फरियाद

14199288_1374505495912212_5735138451880863273_nजयपुर के पूर्व राजघराना का परिवार लोकतंत्र में सडक पर उतर आया है। एक दौर था जब जयपुर राजघराने से हुक्म जारी हुआ करता था और राजदरबारी उस पर अमल करते थे और आम जनता उसे स्वीकार करती थी। सोलहवी सदी से लेकर बीसवीं सदी में देश के स्वतंत्र होने से पूर्व तक जयपुर राजघराने ने शासन किया है। जयपुर एक रियासत हुआ करती थी और इसके स्थापना राजपूत घराने के महाराजा सवाई सिंह ने की थी। स्व सवाई सिंह का परिवार ही राजघराना कहलाता आया है और स्वतंत्रता से पूर्व और बाद तक राजघराने के परिवार के सदस्यों को आम जनता पूरा सम्मान देती आई है। राज्य में अनेक रियासतों के दौर के राजपरिवार भी जनता से भरपूर स्नेह व लगाव पाते रहे हैं। अनेक गांवों की पुरानी पीढी के लिए तो राजपरिवार आज भी माई बाप कहलाते हैं। आज इक्कीसवीं सदी में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई राज्य सरकार के आदेश ने जयपुर राजपरिवार को सडक पर आम जनता के साथ आम जनता के रुप में विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर कर दिया है। यह एक मायने में लोकतंत्र की जीत भी है तो दूसरे मायने में बदले समय की मार भी। लेकिन यह किसी से छुपा नहीं है कि जयपुर राजपरिवार ने सदैव देशहित में सोचा है। 1956 में जब देश की रियासतों का राज्यों में विलय किया जा रहा था तब अनेक रियासतें भारत गणराज्य में मिलने को झिझक रहीं थी जिनमें उत्तर भारत में कश्मीर रियासत के राजा हरि सिंह और हैदराबाद रियासत के निजाम शामिल थे, लेकिन जयपुर राजघराने ने देश की मजबूती को प्राथमिकता देते हुए राजस्थान राज्य के लिए सबसे पहले अपनी रियासत को विलय करवाया और भारत सरकार से संधि की, साथ ही जनहित में बेकीमती संपत्तियां सरकार को भी सौंप दीं। राजपरिवार के सदस्यों ने फिर लोकताङ्क्षत्रक तरीके से चुनावों में हिस्सा लिया और जनप्रतिनिधी बनें। वही राजपरिवार आज अपने जयपुर की सडक पर अपने हक के लिए राज्य सरकार के विरोध में आवाज लगा रहा है। विशेष बात यह है कि राज्य सरकार की मुखिया भी गवालियर के सिंधिया राजघराने से है। मगर यह लडाई दो राजपरिवार के बीच नहीं बल्कि जयपुर में राज्य सरकार के विरोध में उस भूमि के एक हिस्से को लेकर है जिसे राज्य सरकार ,राजपरिवार का अतिक्रमण मानती है , जिसका कभी पूरे जयपुर पर मालिकाना हक था। आठ बीघा कुछ बिस्वा भूमि को यदि राज्य सरकार ले भी ले तो क्या राजपरिवार द्वारा राज्य हित में सौपीं गई अनेक संपत्ंितयों को भूला जा सकता है।
-मुजफ्फर अली

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