वाह री राजनीति

Ayush Laddha
Ayush Laddha
यह तो मानना पड़ेगा कि आज का युग, तकनीक का युग है। ग्राहम बेल साहब के टेलीफोन से शुरू हुई दूरसंचार क्रांति अब अपने चरम पर है, टेलीफोन से मोबाइल और मोबाइल से इंटरनेट की दुनिया ने अपना शिकंजा पूरे विश्व पर कस दिया है। आज घर बैठे इंटरनेट की मदद से आप कई काम साध सकते हैं, ई-कॉमर्स वेबसाइटों के सौजन्य से हर चीज आपके एक क्लिक पर घर उपलब्ध है, ऐसे में राजनीति का ऑनलाइन होना कोई बड़ी बात तो नही। कुछ वर्ष पूर्व, जब ढोल ढ़माकों से, गूंजते नारों से, घर पर लगी झंडियों से चुनाव की आहट महसूस होती थी, आज व्हाट्सएप्प के संदेशों से उसका अंदाज़ा लग जाता है।
कुछ दिनों से व्हाट्सएप्प पर हिन्दू एकता के संदेश पढ़ रहा हूँ, समझ आ रहा है कि चुनावी ख़ाका तैयार कर लिया गया है, और चंद जोशीले युवक जिनको 1 GB इंटरनेट मुफ्त में दिया गया है, इस अवसर का जमकर लुत्फ ले रहे हैं। कभी किसी कवि का काव्य, कभी किसी सैनिक का देश के नाम संदेश। कभी किसी हिन्दू की करुण पुकार, तो कभी किसी अल्पसंख्यक की बर्बरता के किस्से। मीनू कार्ड तैयार है साहब, आप पर प्रभाव छोड़ने वाली हर भावना उसमे उपस्थित है, दरकार है तो बस आपको अंधता से उस संदेश को पढ़ने की। माहौल बन चुका है, जैसे अंग्रेज़ी में कहते हैं न, “स्टेज इज़ सेट”, तवा गर्म हो चुका है, रोटियां सेकी जा रही है, तंदूर लग चुका है, लच्छे परांठे परोसे जा रहे हैं। जैसी जिसकी श्रद्धा, वैसा उसका भोजन।
आप सब के पास ये संदेश आते होंगे, और सामान्य तौर पर व्हाट्सएप्प ग्रुप में आते होंगे। आप कभी पढ़ते हैं, कभी अनदेखा कर देते हैं, 10 में से 1 भी आपने पढ़ा तो आपके मस्तिष्क पटल में वह बात घूमने लगती है, क्या वाकई ऐसा हो रहा है, क्या वाकई हिन्दू बटेगा तो हिन्दू कटेगा। और आपका मन इन राजनीति-प्रेरित कुंठाओं से आकर्षित होने लगता है, मानो जैसे चीज़ बर्स्ट पिज़्ज़ा विथ एक्स्ट्रा चीज़ हो, आप मानते हैं कि ये सेहत के लिए नुकसानदेह है, पर आपका मन लालच में आ जाता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस के जवाब में भी काफी संदेश आ रहे हैं, मीनू कार्ड हर तरह के प्रभाव से लैस है।
आलम यह है कि अगर आप साम्प्रदायिक सद्भाव की बात करते हैं, तो आपको “अपना चश्मा” हटाने की सलाह दी जाती है और जब कोई तर्क नही बचता, तो “चाहे कुछ भी हो, वोट तो मोदी को ही देंगे” सरीखे संदेश आने शुरू हो जाते हैं। मेरी समझ मे यह नही आता कि सद्भावना की बात करने वाले व्यक्ति को मोदी विरोधी कैसे मान लिया जाता है।
अपनी उच्च प्राथमिक शिक्षा के समय एक बात पढ़ी थी, “भारत एक पंथ निरपेक्ष राष्ट्र है, हमारा संविधान सभी धर्मों का आदर करता है, अनेकता में एकता भारत की विशेषता है”। लगता है कुछ लोगों की बचपन की पढ़ाई धुंधली हो गई है और इस हिसाब से हमें साक्षरता के आंकड़े की समीक्षा करनी चाहिए। असाक्षर और साक्षर के बीच एक और वर्ग लाना चाहिए “राजनीति से प्रेरित साक्षर”।

माफ कीजिए, एक सीधे तौर पर उपसंहार इस लेख में नही दे रहा, आप समझदार हैं, मतलब निकाल सकते हैं।

CA Ayush Laddha

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