तर्कसंगत : राष्ट्रीय प्रेस दिवस

Ayush Laddha
Ayush Laddha
आज है राष्ट्रीय प्रेस दिवस, मतलब मीडिया की आजादी और जिम्मेदारी का एहसास दिलाने वाला दिन। आजकल राष्ट्रीय और वैश्विक दिवस मनाने का चलन अपने चरम पर है, योग दिवस पर सब योग करते हैं, कैंसर दिवस पर सिगरेट को हाथ नहीं लगाते, मातृ दिवस पर माताओं बहनों के सम्मान में कसीदे पढ़े जाते हैं (सिर्फ फेसबुक और ट्विटर पर), तो आइए क्यों न प्रेस दिवस भी अच्छे से मनाएं, वैचारिक मतभेद और राजनीतिक निष्ठा भूल कर, स्वच्छ पत्रकारिता करें, अन्यथा आज प्रेस दिवस मनाना किसी अपहृत बालक का जन्मदिन मनाने से बढ़कर नहीं होगा।
आज के इस दौर में सूचना तंत्र अपनी विश्वसनीयता लगभग खो चुका है, राजनीति के हाथों बिककर पत्रकारिता को चंद जयचंदों ने चाटुकारिता बना दिया है। “सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरा मकसद है कि सूरत बदलनी चाहिए” ऐसे वक्तव्यों को आदर्श बनाने वाले पत्रकार खो से गए हैं, और “सिर्फ हंगामा खड़ा करने” वाले पत्रकार हर चैनल पर भारी संख्या में मौजूद हैं। कुछ शक्तिशाली व्यक्तियों के डर और ढ़ेर सारे रुपयों के एहसान तले सच दब गया है, और ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब सच्चाई का गला पूरी तरह से घोंट दिया जाएगा। आज सूचना तंत्र आपको सिर्फ वही दिखाता है, जो इनके आका आपको दिखाना चाहते हैं। मसलन आपको पता भी नहीं होगा कि वाराणसी देश के प्रदूषित शहरों में अव्वल आया है, गुरुग्राम दूसरे और गाजियाबाद तीसरे स्थान पर है(तीनों जगह सरकार किसकी है, आपको शायद बताने की जरूरत नहीं), परंतु आपके मष्तिस्क में यह बात सूचना तंत्र फिट कर चुका है कि सिर्फ दिल्ली में प्रदूषण ज्यादा है और वहां की सरकार कुछ नहीं कर रही। समूचे विश्व में जहाँ आज “पेरेडाइज़ पेपर्स” की चर्चा हो रही है, और हमारा सूचना तंत्र आपका ध्यान “फॉग” की तरफ खींच रहा है, अगर केंद्र में कोई और सरकार होती, तो सुबह शाम आपको घोटलों से जुड़ी खबरें दिखाई जाती और हज़ारों स्टिंग आपरेशन कर दिए जाते। एक और ज्वलंत उदाहरण लें, आपको चीख चीख कर ये बताया जा रहा है कि रेस्तराँ में खाना अब सस्ता हो गया है, जीएसटी 12/18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है, पर यह नहीं बताया जा रहा कि 5 प्रतिशत जीएसटी लगाने वाले रेस्तराँ को इनपुट टैक्स का क्रेडिट नहीं दिया जाएगा (मतलब उसके द्वारा दिया गया जीएसटी उसका खर्च बन जाएगा) आगे आप समझदार हैं, समझ सकते हैं कि आपका खर्च कम करने के लिए अपनी जेब पर मार कौन सहेगा। मीडिया राजनीतिक पार्टी के व्हाट्सएप्प ग्रुप की तरह काम कर रहा है, जहाँ कहानियाँ सत्ता के हुक्मरानों के आदेश पर बनाई और परोसी जाती है।
मेरी उम्र और अनुभव काम है, शायद ग़ुलामी और आजादी का मतलब सही से नहीं समझ पा रहा, परन्तु मेरी नजर में तो यही ग़ुलामी है, जब आपको मिलने वाली सूचनाओं को हैक कर लिया जाता है और उन्हें अपने फायदे के अनुसार आपको परोसा जाता है, यह आपकी स्वतंत्रता से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है?
लोकतंत्र में, परोक्ष रूप में, सरकार, विपक्ष, न्यायपालिका या प्रशासन से भी ज्यादा ताकत सूचना तंत्र में मानी जाती है क्योंकि आवाम से सबसे ज्यादा “कनेक्शन” मीडिया का ही होता है, समूचा देश इनकी बात सुनता है और विश्वसनीय मानता है, ऐसे में इस तंत्र की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि जनता के विश्वास पर खरे उतरे और “सच” दिखाए। जय हिंद, जय प्रेस दिवस।

CA Ayush Laddha
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